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prabhat khabar exclusive : मौलाना आजाद और महाभारत पर फिल्म बनाना मेरा सपना- आमिर खान

हम समय-समय पर राजनीति, धर्म-अध्यात्म, साहित्य, कला आदि क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियों के साक्षात्कार आपके लिए लेकर आते हैं. खास कर वैसी हस्तियों के, जिनके पास अपने विचार हों, अपना चिंतन हो, सामाजिक सरोकार हो. इसी क्रम में प्रभात खबर की अनुप्रिया अनंत ने मुंबई में बातचीत की फिल्मी जगत के सबसे चमकदार सितारों में […]

हम समय-समय पर राजनीति, धर्म-अध्यात्म, साहित्य, कला आदि क्षेत्रों की जानी-मानी हस्तियों के साक्षात्कार आपके लिए लेकर आते हैं. खास कर वैसी हस्तियों के, जिनके पास अपने विचार हों, अपना चिंतन हो, सामाजिक सरोकार हो. इसी क्रम में प्रभात खबर की अनुप्रिया अनंत ने मुंबई में बातचीत की फिल्मी जगत के सबसे चमकदार सितारों में से एक, आमिर खान से. आमिर खान सिर्फ अभिनेता नहीं हैं, उन्होंने हिंदी फिल्मों की दशा-दिशा बदलने में बड़ी भूमिका निभायी है. ‘सत्यमेव जयते’ जैसे कार्यक्रमों से उन्होंने बुद्धू बक्सा कहलाने वाले टेलीविजन को भी नये मायने दिये हैं.

आज आप जहां हैं वहां से पीछे मुड़ कर देखते हैं, तो कैसा लगता है?

एक दौर था, जब मैं इस स्थिति में नहीं था कि किसी निर्देशक को न बोल पाऊं. बुरी फिल्में भी करता गया. लेकिन एक लम्हा ऐसा आया जब मुझे महेश भट्ट साहब की बड़ी फिल्म मिल रही थी, लेकिन मुझे स्क्रिप्ट पसंद नहीं आ रही थी. मुझे लगा कि यह फिल्म नहीं करनी चाहिए. पर मेरे पास फिल्में थी नहीं, तो मैं असमंजस था कि क्या करूं. चूंकि मैं ऐसे परिवार से हूं जहां फिल्में बनायी जाती रही हैं इसलिए स्क्रिप्ट की अहमियत पता थी. सो, मैं उस फिल्म को हां या ना कुछ भी नहीं कह पा रहा था. तब भट्ट साहब ने मुझसे कहा- आमिर, कोई दिक्कत नहीं. तुम्हें समझौता करके काम करने की जरूरत नहीं. आज जब मैं पीछे देखता हूं तो लगता है कि अगर मैं उस वक्त ‘न’ कहना नहीं सीखता, तो शायद आज इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाता. मैं उन्हीं फिल्मों को हां कहता हूं जिनको मैंने अपना दिल दिया हो. स्क्रिप्ट मायने रखती है मेरे लिए.

आज आप बहुत सफल और श्रेष्ठ अभिनेता हैं, पर आपने भी तो कभी बुरा दौर देखा होगा?

कई लोग जो आज मुझे देख रहे हैं, शायद ही अनुमान लगा सकें कि मुझे भी बुरे दौर से गुजरना पड़ा है. कई लोगों के जेहन में यह बात होती है कि अरे फलां तो फिल्मी परिवार से है, उसका क्या है, उसको तो काम मिलता ही रहेगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारी फिल्मी दुनिया में यह संभव है. यहां तो किस्मत हर शुक्रवार को बदलती है. मुझे पहली फिल्म कयामत से कयामत तक से कामयाबी मिली तो लोगों की आशाएं बढ़ीं, लेकिन फिर लगातार मेरी फिल्में फ्लॉप होने लगीं. दो सालों तक मैंने काफी बुरा दौर देखा. कई लोगों ने तो कहना शुरू कर दिया था कि मेरा ‘पैकअप’ का समय आ गया है, तो कुछ ने कहा कि आमिर तो ‘वन फिल्म वंडर’ है. मेरे पास फिल्मों के ऑफर आने बंद हो गये थे. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं करूं क्या. अपने से सवाल भी करता था कि क्या मैं गलत फिल्मों का चुनाव कर रहा हूं. मैं जिन फिल्मों को हां कह चुका था, उन फिल्मों से अब हट भी नहीं सकता था. सच कहूं तो मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं था वह दौर, जब न चाह कर भी मैंने फिल्में कीं.

पहली फिल्म को लेकर कितनी उत्सुकता थी?

पहला हमेशा खास होता है. मैंने भी पूरी शिद्दत से कयामत से कयामत तक में काम किया था. मैं ऑटो में अपने दोस्तों के साथ जाता था, बेस्ट की बस में घूमता था और फिल्म का पोस्टर दिखा कर लोगों से कहता था कि मेरी पहली फिल्म आ रही है, जरूर देखना. ऑटोवाले बोलते थे- अरे मेरा वक्त बर्बाद मत करो! जाओ यहां से! ..लेकिन फिर मैं दूसरे ऑटोवाले को बोलता. सड़क पर चल रहे लोगों से कहता था. उस दौर में फिल्म प्रोमोशन के इतने जरिये नहीं थे.

क्या हमेशा से एक्टर बनना चाहते थे?

इस सवाल का जवाब बिल्कुल हां या न में देना मुश्किल है. पढ़ाई तो मैंने कॉमर्स में की थी. 11 वीं और 12 वीं की. मगर पढ़ाई से अधिक घूमने-फिरने में दिलचस्पी थी. लिंकिंग रोड और जूहू के काफी चक्कर काटे हैं मैंने अपने दोस्तों के साथ. क्लास में देर से आने पर टीचर नाराज होते थे. लेकिन मुझ पर खास फर्क नहीं पड़ा. मैं स्ट्रीट शॉपिंग भी खूब किया करता था. उस दौर में प्रिंटेड शर्ट मिलते थे. तो खरीद लेता था. कटिंग चाय पीने की लत थी, वो भी खूब पीता था. लेकिन फिर मैं अपने चाचा के साथ बतौर अस्टिेंट डायरेक्टर मदद करने लगा. शायद वहीं से फिल्मों से लगाव शुरू हुआ. मंजिल मंजिल और जबरदस्त, इन दो फिल्मों में मैंने अस्टिेंट डायरेक्टर के रूप में काम किया था. तो यह कह सकते हैं कि फिल्मों की मेकिंग से मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं. इसलिए मैं जब किसी फिल्म से जुड़ता हूं तो सिर्फ अभिनय में नहीं, पूरी मेकिंग से जुड़ता हूं.

कौन सी चीजें हैं जो आपको सबसे ज्यादा परेशान करती हैं?

मुझे अपनों से बिछुड़ने की बात हमेशा परेशान करती है. मैं इस बात से डरता हूं कि अरे कहीं किसी को कुछ हो तो नहीं गया. मैं भावुक हूं काफी. इसलिए रोता भी जल्दी हूं. काम के वक्त पास में फोन नहीं रखता. काम के बाद फोन पर अगर किरण (पत्नी) का मेसेज दिखे, तो जब तक उससे बात न कर लूं तसल्ली नहीं मिलती कि परिवार में सब ठीक है. मैं परिवार को लेकर असुरक्षा बोध रहता है. मैं कभी-कभी यों ही बच्चों को फोन करके पूछता रहता हूं कि सब ठीक तो है. वे भी सोचते हैं कि अचानक मुझे क्या हो गया. सत्यमेव जयते के दौरान मुझे आम लोगों से जुड़ने का मौका मिला. उनकी काफी परेशानियों को सुना मैंने. वे हम सेलिब्रिटिज से कई आशाएं रखते हैं. यह भी सच है कि उनकी हर आशा पर हम खरे नहीं उतर सकते. इस बात से तकलीफ होती है कि चाह कर भी हम सबकी मदद नहीं कर सकते. मुझे इन बातों से भी तकलीफ होती है कि हम सेलिब्रिटिज को लोग कभी-कभी कुछ ज्यादा ही बुरा समझ लेते हैं. हम अगर कैमरे के सामने वाकई में भावुक हैं तो उन्हें लगता है कि हम ऐक्टिंग कर रहे होते हैं. हम एक्टर भी तो इनसान ही होते हैं.

खुशी किन चीजों से होती है?

मुझे अच्छा लगता है, जब मेरी बेटी और बेटे मेरी तरह ही अपने स्तर से सोसाइटी को कुछ देने की कोशिश करते हैं. जैसे इरा ने एनिमल शेल्टर के लिए कुछ दिनों पहले मैच किया था. जुनैद ने भी एक मैच कराया था और उससे चैरिटी की थी. अच्छा लगता है, जब अपने बच्चों में भी मैं वह संवेदना देखता हूं. मुङो कई लोगों के जब खत आते हैं और वह मुझसे कहते हैं कि मेरे किरदार ने या मेरे शो सत्यमेव जयते ने उन्हें सकारात्मक तरीके से प्रभावित किया है तो मुङो खुशी मिलती है. क्योंकि मैंने भी अपनी अम्मी से यही सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी है कि सिर्फ अपने बारे में मत सोचो, दूसरों के बारे में भी सोचो और यही बात मैंने अपने बच्चों को भी कहा है कि पैसे सबकुछ नहीं हैं.

दुख के क्षणों में किससे प्रेरणा लेते हैं?

मां से. मुझे लगता है कि मैं बिल्कुल अम्मी की तरह हूं. उनकी तरह ही जिद्दी आदमी हूं और उनकी तरह ही दिल से बिल्कुल मोम हूं. सो, कभी दुखी हुआ तो मां से सारी बातें बांटता हूं.

जीवन की कोई साध जो अब भी पूरी नहीं हुई हो?

बतौर ऐक्टर तो लगता है कि अभी बहुत कुछ करना है. मेरी इच्छा है कि कभी मैं महाभारत पर फिल्म बनाऊं. लेकिन मुझे पता नहीं यह इच्छा पूरी होगी कि नहीं.

खुद को इतना ऊर्जान्वित कैसे करते हैं?

मुझे लोगों से मिलना-जुलना पसंद है. आम लोगों से मिल कर खुशी होती है. मैं पढ़ता खूब हूं उससे भी ऊर्जा मिलती है. लोग आपके काम को सराहते हैं उससे ऊर्जा मिलती है.

अपने पेशे में नयी पीढ़ी को कैसे देखते हैं?

मुझे नयी पीढ़ी से बहुत उम्मीद है. खास तौर पर रणबीर कपूर और नवाजुद्दीन सिद्दिकी जैसे कलाकारों से. इन कलाकारों से आप हर तरह की फिल्म और हर तरह के परफॉरमेंस की उम्मीद कर सकते हैं. नयी पीढ़ी के लोग अधिक समझदार हैं. उन्हें इस दुनिया को जानने-समझने के लिए काफी गाइड मिल गये हैं. वे पहली फिल्म में भी अनुभवी नजर आते हैं. वे तैयारी से आते हैं और सजग हैं. प्रियंका चोपड़ा और रणबीर कपूर की फिल्म बर्फी मुङो बहुत पसंद आयी थी और इस फिल्म को मैं बार बार देख सकता हूं. इसकी वजह है, फिल्म में कलाकारों की मेहनत व समर्पण. कंगना, दीपिका, परिणीति का काम मुझे पसंद है. मुझे लगता है कि आनेवाले समय में अभिनेत्रियां राज करेंगी. क्वीन की कंगना को देखें. किस तरह उनके चर्चे हैं. मैं उनकी प्रशंसा करता हूं.

मीडिया के बारे में क्या कहना चाहेंगे?

मीडिया से मैं हमेशा फ्रेंडली रहा हूं और मीडिया ने हमेशा मेरा और मेरी फिल्मों का साथ दिया है. मेरा मानना है कि अच्छे पत्रकार वही हैं जो निष्पक्ष काम करें. किसी के प्रभाव में बिल्कुल न आयें. मैं अपने करीब वैसे लोगों को रखना कतई पसंद नहीं करता जो मीडिया का व अपने काम का भी अनादर करते हैं. फिल्मी पत्रकारों को भी कभी सितारों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए. वरना वे निष्पक्ष नहीं रह पायेंगे. इसके अलावा हर मुद्दे को सनसनीखेज बना कर परोसना भी गलत है. जो भी हो, यह हकीकत है कि मीडिया के जरिये ही हम आम लोगों तक पहुंच सकते हैं. एक दौर था, जब मुझे मीडिया का साथ बिल्कुल पसंद नहीं था. तब मेरे बारे में सिर्फ गलत खबरें प्रकाशित हो रही थीं. हर अंगरेजी अखबार मेरे पैकअप के बारे में ही लिख रहा था. अब तो मैं शांत हो गया हूं. धैर्य आया है मुझमें वक्त के साथ साथ. लेकिन उस दौर में बहुत गुस्सैल था. तो मैंने तय कर लिया था कि कभी इंटरव्यू नहीं दूंगा. मीडिया से बात नहीं करूंगा. लेकिन फिर अम्मी ने मुझे समझाया और वक्त के साथ मैंने इस बात को समझा कि मीडिया का काम क्या है और वह क्यों है. हां, मगर कई बार मीडिया गलत खबरों को भी सही मान लेता है. हाल ही में, किसी आतंकवादी समूह ने यह दावा किया था कि मेरी आवाज में इंटरव्यू प्रसारित किये जा रहे हैं. हालांकि कई लोगों ने इस पर भरोसा नहीं किया. और मुङो खुशी है कि कई मीडिया के दोस्तों ने मुझे खबर दी कि मुझे एक आधिकारिक बयान देना चाहिए कि वह मैं नहीं हूं. अगर मेरी छवि खराब नहीं हुई तो वह मीडिया की वजह से ही क्योंकि सभी जानते हैं कि मैं ऐसा कोई काम नहीं कर सकता.

आपको समाज सेवा में दिलचस्पी है, फिर राजनीति का हिस्सा क्यों नहीं बनना चाहते?

मुझसे यह सवाल हमेशा पूछा जाता रहा है. मैं यही कहूंगा कि जरूरी नहीं कि मैं जो योगदान देना चाहता हूं वह सिर्फ राजनेता बन कर संभव है. अभिनय मेरी पसंद का क्षेत्र है, तो लिहाजा मैं यहीं खुश हूं. कई बार लोग मुझे क्रांतिकारी कह देते हैं. एक्टिविस्ट कह देते हैं, क्योंकि मैं सत्यमेव जयते जैसे शो लेकर आता हूं. लेकिन मेरा उनसे भी कहना है कि मैं कोई एक्टिविस्ट नहीं हूं. एंटरटेनर ही हूं. हां, मगर मैं इस बात को समझ पाता हूं कि लोग मुझसे मेरी फिल्मों की वजह से ही कनेक्ट होते हैं और मुझसे उम्मीद करते हैं, तो मेरी कोशिश होती है कि इसी माध्यम से कम से कम उनकी मानसिकता को थोड़ा सकारात्मक तरीके से मोड़ पाऊं. जब मैं सत्यमेव जयते जैसे शो बनाता हूं, तो मुझे लगता है कि मैं खुद को भी बदल रहा हूं. शो में जिस तरह के विषय उठाये जाते हैं, जिस तरह की बातें होती हैं, वे मुङो और अधिक संवेदनशील बनाते हैं. मुझे जमीन पर रहने के लिए प्रेरित करते हैं. वे बातें मुझे जिंदगी की हकीकत से सामना कराती हैं कि दुनिया सिर्फ वही नहीं है, जिसमें हम आराम से जी रहे हैं. मेरी कोशिश कभी भी फिल्मों के माध्यम से संदेश देने की नहीं होती है. मैं फिल्मों का चुनाव सिर्फ इस आधार पर करता हूं कि कहानी पढ़ते वक्त उसे अपना दिल दे पाया कि नहीं. बस! हो सकता है कि वह फिल्म संदेश दे या हो सकता न दे.

खेल और शिक्षा को लेकर आपकी क्या सोच है?

मुझसे अक्सर ये सवाल भी पूछे जाते हैं कि मैं कोई आइपीएल टीम क्यों नहीं खरीदता. तो मेरा जवाब यही है कि मुझे क्रिकेट देखने में दिलचस्पी है. मैं खुद खेल भी लेता हूं. लेकिन वे मेरे शौक हैं, उसे मुङो बिजनेस नहीं बनाना. मेरा मानना है कि हमारे देश में खेल को शिक्षा से जोड़ना चाहिए. आमतौर पर स्पोर्ट्स को हम एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी मान लेते हैं. मतलब कि वह पढ़ाई से इतर गतिविधि है. पर कोशिश यह करनी चाहिए कि हम स्पोर्ट्स को भी पढ़ाई से जोड़ें. हर दिन स्पोर्ट्स का एक क्लास हो. जैसे आप बाकी विषय पढ़ते हैं. उसी तरह आप स्पोर्ट्स भी पढ़ें. मुङो टेनिस, फुटबॉल, क्रिकेट सब खेलना पसंद है और मैं इन्हें बचपन से खेलता हूं. यह जीवन का हिस्सा है. इससे आप न केवल फिट रहते हैं, बल्कि सकारात्मक हो जाते हैं. हर खेल को बढ़ावा मिलना जरूरी है. सिर्फ क्रिकेट की फैंटेंसी में न जायें. अगर टेनिस में अच्छे हैं तो उसे अपना करियर बनायें.

हाल ही में आपने चीन की यात्रा की. वहां का अनुभव कैसा रहा? वहां के दर्शकों से भारतीय फिल्मों के बारे में क्या प्रतिक्रिया मिली?

चीन की यात्रा काफी सुखद रही. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वहां के गांवों तक के लोग हमारी फिल्में देखते हैं. हमारी सारी फिल्में वहां रिलीज नहीं होतीं, लेकिन लोगों में फिल्मों को लेकर इस कदर उत्सुकता है कि वे इंटरनेट से हमारी फिल्में डाउनलोड करके देख रहे हैं. इसका मतलब है कि वे आपकी फिल्मों को पसंद कर रहे हैं. आपको पसंद कर रहे हैं. वहां के लोग जब मुझसे मिलने आये तो वे आजाद (मेरे बेटे) के लिए भी तोहफे लेकर आये थे. स्पष्ट है कि वे हमारी दुनिया से बाखबर हैं. हमें उनसे सीखना चाहिए कि वे किस तरह से खुद का दायरा बढ़ा रहे हैं. हम चीनी फिल्में कितनी देखते हैं, दावे के साथ कहें? मैं खुद बहुत फिल्में नहीं देखता. मैंने सिर्फ जैकी चैन की फिल्में देखी हैं और उन्हें ही जानता हूं. लेकिन आप चीन के लोगों को देखें, तो उन्हें हमारे यहां की हर तरह की फिल्मों की जानकारी है. यह बताता है कि हम अपनी ही फिल्में बना कर खुश हैं. हम बाकी दुनिया की फिल्मों पर ध्यान नहीं दे रहे. जबकि हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए. हमारे देश के गांव के दर्शक भी वर्ल्ड सिनेमा से रूबरू हों. दूसरे देशों की संस्कृति को जानें. आखिर फिल्म इसी का तो माध्यम है. इस बहाने हम करीब आयें. यह जो हमारी सोच है कि चीन के लोग हमारे बारे में गलत सोचते हैं, यह सब गलत अवधारणा है. हम जब तक उन्हें जानेंगे, समङोंगे नहीं, यह सोच बनी रहेगी. मेरी फिल्म 3 इडियट्स के सारे गाने उन्हें याद थे. उन्होंने उस फिल्म को काफी पसंद भी किया. अब मेरी कोशिश होगी कि मैं अपनी फिल्मों के साथ भारत-चीन सहयोग जैसी कुछ चीजें करूं.

ऐसी कोई शख्सीयत जिससे आप प्रभावित हों और चाहते हों कि आप उन पर फिल्म बनायें?

जी हां, मैं चाहता हूं कि कभी अगर मैं फिल्म मेकिंग के क्राफ्ट को सही तरीके से इस्तेमाल करने लायक हो जाऊंगा तो मेरी कोशिश होगी कि मैं मौलाना आजाद साहब पर फिल्म बनाऊं. दरअसल, मेरे चाचा ने जब सोचा था कि वे फिल्म बनायेंगे तो वह आजाद साहब ही थे जिन्होंने उपदेश की बड़ी-बड़ी बातें कहने की बजाय सिर्फ यह कहा था कि वही करें जो आपका दिल करता हो. मैं मानता हूं कि अगर मौलाना साहब ने सपोर्ट न किया होता तो शायद ही नसीर साहब फिल्मों में आते. अगर मेरे चाचा नहीं आते तो शायद मेरे पिता भी नहीं आते और शायद मैं खुद इससे जुड़ा नहीं होता. तो कहीं न कहीं श्रेय मौलाना आजाद को जाता है कि उन्होंने मेरे परिवार को फिल्मों की दुनिया में आने के लिए प्रेरित किया. मैं उनकी बुद्धिमत्ता, उनकी ईमानदारी, उनके प्रगतिशील विचारों का अनुयायी हूं. आज भी मैं उनके सारे इंटरव्यू पढ़ना पसंद करता हूं. मैं उन बातों को पढ़ कर उस दौर की स्थिति को समझ पाता हूं कि समाज की क्या संरचना थी, क्या समस्याएं थीं. उन्होंने 1946 में एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उन्होंने बताया था कि जब विभाजन होगा तो क्या-क्या होगा. और उन्होंने जिन-जिन बातों के बारे में कहा था, लगभग वो सारी बातें हुईं. इसलिए मुङो लगता है कि लोगों के सामने ऐसी शख्सियत की कहानियां आनी चाहिए और मुझे कभी मौका मिला तो मैं बनाना चाहूंगा. वह मेरी ड्रीम फिल्म होगी.

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