अनुप्रिया अनंत
फिल्म : शुद्ध देसी रोमांस
कलाकार : परिणीति चोपड़ा, सुशांत सिंह राजपूत, वानी कपूर
निर्देशक : मनीष शर्मा
रेटिंग : 3 स्टार
फिल्म का नाम तो है शुद्ध देसी रोमांस. लेकिन शायद फिल्म उन शुद्ध लोगों को या यूं कहें उन शुद्ध सोच रखने का दावा करनेवाले लोगों को हजम न हो. चूंकि फिल्म में शुद्ध देसी स्टाइल का कुछ भी नहीं है. निर्देशक अपने दृष्टिकोण से शुद्ध देसी रोमांस परोस रहे हैं. मतलब जो है वह दिखा रहे हैं. लेकिन यह शुद्धता उन मिलावटी लोगों को हजम नहीं होगी. जो आमतौर पर यह कहते फिरते हैं कि जी हम तो शुद्ध शाकाहारी हैं.
शराब को हाथ भी नहीं लगाते और रात के अंधेरे में बैठ कर कब टल्ली हो जाते हैं. पता ही नहीं चलता. शुद्ध देसी रोमांस शुद्ध हिंदी सिनेमा भी नहीं है. इस लिहाज से कि फिल्म में जो दर्शाने की कोशिश की गयी है. वह आमतौर पर हिंदी सिनेमा की शुद्ध सोच से बिल्कुल अलग है. एक बात स्पष्ट कर दूं फिल्म लीव इन रिलेशनशीप पर बिल्कुल नहीं है.
बल्कि फिल्म प्यार और कमिटमेंट के बीच कंफ्यूज होती दो जवां दिलों की कहानी है. रघु है. वह बिंदास है. यहां शादी होती है. फिर नहीं होती, क्यों नहीं होती. यह तो फिल्म देखने के बाद ही आप जान पायेंगे. फिल्म के माध्यम से निर्देशक मनीष शर्मा और लेखक जयदीप सहानी ने एक अहम सवाल खड़ा किया है कि क्या कुछ सालों के बाद भारत में विदेशों की तरह शादियां जरूरी रह जायेंगी? रघु गायत्री और तारा के बीच उलझी ये प्रेम कहानी और प्रेम कहानी के कई हिस्से से आप कनेक्ट कर पायेंगे.
चूंकि हर किसी की जिंदगी में शादी से पहले वैसी स्थितियां आती ही हैं. खासतौर से उन लोगों के लिए, जिनके लिए जिंदगी में प्यार की अहमियत हो. रघु गायत्री एक ही मिजाज के दो अलग लोग हैं. लेकिन दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं. दोनों के बीच कोई दुश्मन नहीं. न परिवार न जमाना. फिर दोनों शादी नहीं कर पाते. फिल्म में ऋषि कपूर एक संवाद कहते हैं कि आंखों पर ताला न लगे तो आप जिंदगी को कंट्रोल नहीं कर सकते. फिल्म का अंतिम दृश्य है. रघु गायत्री से कहता है कि उसे वह घर तभी तक अच्छा लगता है. जब तक उसमें उसकी भी मर्जी चले. ताला लग जाये तो उसे चलना मंजूर नहीं. शायद रघु गायत्री के लिए शादी उस ताले का नाम है. और वह किसी बंधन में बंधना नहीं चाहते हों. बहरहाल, युवा दर्शक फिल्म को काफी पसंद करेंगे.
फिल्म में ऋषि कपूर का अभिनय बेहद उम्दा है. आज की जेनरेशन, आनेवाली जेनरेशन और गुजरे जमाने की पीढ़ी के बीच वे बेहतरीन कड़ी बनते हैं और वे लगातार हर फिल्म में अपने किरदार में खास छवि स्थापित करते जा रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत की यह दूसरी फिल्म है. इस फिल्म के बाद सुशांत से बॉलीवुड की और अपेक्षाएं बढ़ जायेंगी. चूंकि काय पो चे से उन्होंने बिल्कुल अलग किरदार निभाया है और उसे बखूबी निभाया है. फिल्म में ज्यादा डॉयलॉगबाजी नहीं है. लेकिन उन्होंने अपने एक्सप्रेशन से कमाल किया है.
दर्शक उनकी इस अदा के मुरीद हो जायेंगे. वाणी कपूर बहुत कांफीडेंट दिखी हैं. ऐसा महसूस नहीं हुआ कहीं भी कि उनकी पहली फिल्म है. परिणीति ने अपने हिस्से का अभिनय अच्छा किया है. लेकिन उन्हें जरूरत है कि वे और भी अलग तरह के किरदार निभायें. वरना, वह टाइपकास्ट हो जायेंगी. और हां, फिल्म में गुप्ता का किरदार भी है. जो रुढ़िवादी और ओछी सोच के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है.
कहानी कहीं कहीं किरदारों की तरह कंफ्यूज करती है. लेकिन ज्यादा हिस्से आपको लुभाते हैं. फ्रेश कहानी है. फ्रेश चेहरे हैं . सो, पूरी फ्रेशनेस के साथ फिल्म देखी जा सकती है.
नोट: हां, मगर वे लड़कियां जिनकी शादी जल्द ही होनेवाली है. वे अपने ब्वॉयफ्रेंड या अपने होनेवाले पति को इस फिल्म से दूर ही रखें.