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Film Review : फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है ”सई रा नरसिम्हा रेड्डी”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म : सई रा नरसिम्हा रेड्डी निर्माता : राम चरण निर्देशक : सुरेंद्र रेड्डी कलाकार : चिरंजीवी, तमन्ना,किच्चा सुदीप,नयनतारा, रेटिंग : ढाई आज़ादी की पहली लड़ाई इसका जिक्र होते ही 1857 की क्रांति का जिक्र आम है. साउथ सुपरस्टार चिरंजीवी की फ़िल्म सई रा नरसिम्हा रेड्डी आज़ादी के पहले नायक की […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म : सई रा नरसिम्हा रेड्डी

निर्माता : राम चरण

निर्देशक : सुरेंद्र रेड्डी

कलाकार : चिरंजीवी, तमन्ना,किच्चा सुदीप,नयनतारा,

रेटिंग : ढाई

आज़ादी की पहली लड़ाई इसका जिक्र होते ही 1857 की क्रांति का जिक्र आम है. साउथ सुपरस्टार चिरंजीवी की फ़िल्म सई रा नरसिम्हा रेड्डी आज़ादी के पहले नायक की बात करने के साथ साथ यह बात भी रखती है कि 1857 की क्रांति के 10 साल पहले नरसिम्हा रेड्डी ही थे जिन्होंने 1847 में अपने राज्य उलयपाड़ा से अंग्रेजों की हुकूमत के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाया था. जिसमें उनकी प्रजा भी शामिल थी. इसी ऐतिहासिक कहानी से इस फ़िल्म की कहानी उपजी है.

फ़िल्म की शुरुआत रानी लक्ष्मीबाई (अनुष्का शेट्टी) से होती है जो बताती हैं कि 1857 की क्रांति की प्रेरणा नरसिम्हा रेड्डी की लड़ाई थी और फिर कहानी नरसिम्हा रेड्डी (चिरंजीवी) पर चली जाती है. नरसिम्हा रेड्डी बचपन में मौत को मात देकर वापस आया था.

उयाल वाड़ा का वो पालेगार (राजा) है लेकिन अपने राज्य के आसपास के लोगों से भी उसे विशेष लगाव है. उनकी भलाई के लिए वो कुछ भी कर सकता है. ईस्ट इंडिया कंपनी कर वसूली के नाम पर प्रजा पर अत्याचार कर रही थी. नरसिम्हा इसके खिलाफ आवाज़ उठाता है लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी हड़प नीति के तहत दत्तक पुत्र नरसिम्हा को पालेगार मानने से इनकार कर देती है.

नरसिंहा चुप नहीं बैठता वो अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करता है और फिर कैसे यह बगावत स्वन्त्रता संग्राम का आंदोलन बन जाती है. जिसमें दक्षिण के दूसरे पालेगार ही नहीं बल्कि आम प्रजा भी शामिल हो जाती है. नरसिम्हा अंग्रेज़ी हुकूमत के लिए एक चुनौती बन चुका है लेकिन नरसिम्हा के दुश्मनों की कमी नहीं है. सिर्फ अंग्रेज़ ही नहीं बल्कि उसके कुछ अपने भी उसके खिलाफ हो गए हैं. क्या अपनों के धोखे की कीमत नरसिंहा रेड्डी ने अदा की थी.

यही फ़िल्म की आगे की कहानी है. फ़िल्म की कहानी असल घटना से प्रेरित है लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा नाटकीय प्रसंगों को फ़िल्म की कहानी को कम प्रभावी बना जाते हैं. फ़िल्म का लुक और एक्शन बहुत ही भव्य है. प्रभावी एक्शन के साथ कहानी को बयां किया गया है. जिस वजह से कहानी बोझिल नहीं हुई है. एक्शन की वजह से स्टोरी लाइन बेहतर लगी है।ये कहना गलत होगा।फ़िल्म का भव्य लुक भी इसकी एक यूएसपी कह सकते हैं.

अभिनय की बात करें तो स्क्रीन पर मंझे एक्टर्स इस कमज़ोर स्क्रीनप्ले को अपने परफॉर्मेंस से संभाल लेते हैं. 64 वर्षीय चिरंजीवी पूरी तरह से तेज़ तरार जाबांज़ योद्धा नरसिम्हा रेड्डी के किरदार में रच बस गए हैं. इस उम्र में भी उनका बेहतरीन एक्शन काफी खास बना है. किच्चा सुदीप अपनी छाप छोड़ते हैं. नयनतारा और तम्मन्ना के लिए फ़िल्म को कुछ खास नहीं था हां तम्मन्ना का आखिरी दृश्य प्रभावी बना है।अमिताभ बच्चन का रोल बहुत छोटा है. बाकी कलाकारों का काम भी अच्छा है.

फ़िल्म के कमजोर पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म की लंबाई बहुत ज़्यादा हो गयी है. फ़िल्म को आधे घंटे कम करना फ़िल्म को औऱ ज़्यादा कनेक्टिंग बना सकता था. फ़िल्म के हिंदी डायलॉग बहुत ही कमज़ोर रह गए हैं. कई संवाद डब करने में अजीबोगरीब से बन गए हैं. भारत माँ के माथे पर तुम्हे सिंदूर लगाना है जैसे संवाद सुनते हुए बहुत अटपटे से लगते थे. गीत संगीत की भी बात लुक में ज़्यादा अच्छा है कानों को अपील नहीं करता है. भव्यता के साथ साथ अगर इन बातों का भी ख्याल रखा जाता तो फ़िल्म खास बन जाती थी.

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