श्याम बेनेगल हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध निर्देशकों में से एक हैं. साल 1934 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्याम बेनेगल समानांतर फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अंकुर, निशांत, मंथन, मंडी, आरोहण, सुस्मन और भूमिका जैसी फिल्में बनाई जिसे देखकर आलोचक भी उनकी प्रतिभा के कायल हुए बिना नहीं रह पाये. इन फिल्मों से वे निरंतर समाज की सोई हुई चेतना जगाने की प्रयास करते रहे. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत विज्ञापन जगत से की थी. एक तरह से देखा जाये तो सत्यजीत रे के निधन के बाद श्याम बेनेगल ने ही उनकी विरासत को संभाल रखा है.
विज्ञापन जगत से की शुरुआत
श्याम बेनेगल का सिनेमा के साथ एक पुराना रिश्ता था. उनकी दादी और मशहूर फिल्मी हस्ती गुरुदत्त की नानी सगी बहनें थीं. हालांकि श्याम बेनेगल ने अपने करियर की शुरुआत विज्ञापनों के स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर की. फिल्में बनाने से पहले वह करीब 900 विज्ञापन फिल्में बना चुके थे.
राहें थी मुश्किल
श्याम बेनेगल की भारतीय सिनेमा में शुरुआत बहुत ही नाजुक वक्त पर हुई. अर्थपूर्ण सिनेमा जब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था उस दौर में श्याम बेनेगल की फिल्मों ने फिल्मकारों को प्रेरित किया. ये वो वक्त था जब देश में न्यू सिनेमा की शुरूआत हो रही थी. उनकी फिल्मों ने दर्शकों को तो आकर्षित किया ही और फिल्मकारों ने सिनेमा को जनचेतना का माध्यम मानते हुए फिल्मों का निर्माण किया. उनके पथ प्रदर्शक बनकर उभरे श्याम बेनेगल, जो फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं मानते थे.
अनमोल सितारे दिये
श्याम बेनेगल ने ने सिर्फ समानांतर फिल्मों को एक खास पहचान दिलाने में मदद की बल्कि भारतीय सिनेमा को नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी और स्मिता पाटिल जैसे अनमोल रत्न भी दिये. अंकुर, निशांत और मंथन जैससी उनकी फिल्में आज भी मील का पत्थर साबित हुई हैं. उनकी हर फिल्म का एक अलग ही अंदाज और मिजाज होता था. 'अंकुर' के लिए के लिए बेनेगल और शबाना दोनों को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया था. श्याम बेनेगल ने 1200 से भी अधिक फिल्मों का सफल निर्देशन किया है.
चर्चित फिल्में
श्याम बेनेगल ने निशांत, अंकुर, मंथन, मंडी, सरदारी बेगम, मम्मो, सूरज का सातवां घोड़ा, वेल्कम टू सज्जनपुर, हरी भरी और आरोहण जैसे कई खास फिल्में बनाकर कामयाबी की बुलंदियों को छुआ. 'मंडी' फिल्म बनाकर उन्होंने इस बात को साबित कर दिया कि वे इतनी बोल्ड फिल्म भी बना सकते हैं और सरदारी बेगम में उन्होंने समाज से लड़कर संगीत सिखने वाली एक महिला की कहानी पेश की जिसे समाज स्वीकार नहीं करता.
टीवी की दुनिया में बिखेरी चमक
श्याम बेनेगल ने न सिर्फ सिनेमा बल्कि टेलीविजन के छोटे पर्दे पर भी ऐसी छाप छोड़ी है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उनके 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे पौराणिक कथाओं वाले धारावाहिकों ने दर्शकों को बांधे रखा. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा आजादी से पहले जेल में लिखी गई 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' को आधार बनाकर 'भारत एक खोज' के नाम से एक ऐसी टेलीविजन सीरीज भी पेश की जिसने भारतीय टेलीविजन के इतिहास में एक नया आयाम हासिल किया.
पुरस्कार
श्याम बेनेगल को हिंदी सिनेमा में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए 1976 में पद्मश्री और 1961 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया. साल 2007 में वे अपने योगदान के लिए भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी नवाजे गये. उनकी फिल्म आरोहण, जुनून, मंथन, निशांत और अंकुर को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.