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Girish Karnad Profile : एक लेखक जिसने समावेशी भारत के विचार की लड़ाई लड़ी

बेंगलुरू : उनके नाटक पौराणिकता और इतिहास का बेजोड़ मिश्रण होते थे लेकिन वे हमेशा समकालीन हकीकत की बात करते थे. वह कोई और नहीं, बल्कि बहुआयामी शख्सियत गिरीश कर्नाड थे, जिन्होंने अपने जीवन और कार्य के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी और समावेशी भारत के विचार की लड़ाई लड़ी. कर्नाड का सोमवार को 81 […]

बेंगलुरू : उनके नाटक पौराणिकता और इतिहास का बेजोड़ मिश्रण होते थे लेकिन वे हमेशा समकालीन हकीकत की बात करते थे. वह कोई और नहीं, बल्कि बहुआयामी शख्सियत गिरीश कर्नाड थे, जिन्होंने अपने जीवन और कार्य के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी और समावेशी भारत के विचार की लड़ाई लड़ी.

कर्नाड का सोमवार को 81 वर्ष की उम्र में बेंगलुरू स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. अपने पांच दशक से अधिक के करियर में उन्होंने लेखक, रंगमंच कलाकार, अभिनेता और निर्देशक के रूप में खूब ख्याति अर्जित की.

एक नाटककार के तौर पर यह उनकी पहचान ही है कि वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के बारे में कहानियां बुनते समय उन्हें अक्सर देश की समृद्ध पौराणिक एवं ऐतिहासिक विरासत से जोड़ा जाता है.

कर्नाड एक मेधावी छात्र थे. उन्होंने गणित में स्नातक की डिग्री ली थी लेकिन उन्होंने कला को अपना कार्यक्षेत्र चुना. कर्नाड ने अपना पहला नाटक ‘ययाति’ 23 साल की उम्र में 1961 में लिखा था.

उन्होंने और थिएटर की चर्चित हस्ती रहे इब्राहिम अल्काजी ने काफी हद तक एक-दूसरे को प्रभावित किया. चौदहवीं सदी के दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक पर आधारित उनका नाटक ‘तुगलक’ चर्चित मंचनों में शुमार है. ‘तुगलक’ नेहरूवादी विचारों से भी मोहभंग को दर्शाता है.

इसे आज के समय में काफी प्रासंगिक समझा जाता है. कर्नाड के चर्चित नाटकों में ‘हयवदन’, ‘अंगुमलिगे’, ‘हित्तिना हुंजा’, ‘नगा-मंडाला’, ‘ताले-डंडा’, ‘अग्नि मट्टू माले’ और ‘द ड्रीम्स ऑफ टीपू सुल्तान’ शामिल हैं.

वर्ष 1998 में उन्हें साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. कन्नड़ नाटक में उनका योगदान हिंदी में मोहन राकेश, मराठी में विजय तेंदुलकर और बंगाली में बादल सरकार के समानांतर है.

उन्होंने श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म ‘निशांत’ और ‘मंथन’ में भी काम किया. उन्होंने बासु चटर्जी की फिल्म ‘स्वामी’ में शबाना आजमी के साथ काम किया. आर के नारायण की ‘मालगुडी डेज’ में कर्नाड ने स्वामी के पिता की भूमिका निभायी और विज्ञान कार्यक्रम ‘टर्निंग प्वाइंट’ की मेजबानी की.

उन्होंने हिंदी में ‘गोधूलि’ और ‘उत्सव’ सहित कई कन्नड़ फिल्मों का निर्देशन भी किया. कर्नाड का जन्म महाराष्ट्र में 1938 में हुआ था. वह डॉ रघुनाथ कर्नाड और कृष्णाबाई की तीसरी संतान थे.

बाद में उनका परिवार कर्नाटक के सिरसी और धारवाड़ में रहा. कर्नाड ने 1963 से 1969 तक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के साथ काम किया. कर्नाड ने कई कन्नड़ और हिंदी व्यावसायिक फिल्मों में भी काम किया.

उनकी हालिया फिल्म 2017 में आयी ‘टाइगर जिंदा है’ थी. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक थे और उन 600 रंगमंच हस्तियों में शुमार थे जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले ‘भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को सत्ता से बाहर करने की लोगों से की गई अपील वाले पत्र पर हस्ताक्षर किये थे.’

उन्होंने पत्रकार-कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या के बाद प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया था. कर्नाड को मिले प्रमुख सम्मानों में 10 राष्ट्रीय पुरस्कार, फिल्मफेयर पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभूषण, संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं.

वह भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टिट्यूट (एफटीआईआई) के निदेशक तथा संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष भी रहे.

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