9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

#InternationalWomensDay: राजधानी पटना के रंगमंच की कई महिलाएं पा चुकी हैं बेहतर मुकाम

पटना : आज महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए किसी पर आश्रित नहीं हैं. अब महिलाएं अपनी शिक्षा और कला के बल पर बिना किसी का सहारा लिये हर क्षेत्र में बेहतर मुकाम हासिल कर रहा रही हैं. हम रंगमंच की ही बात करें, तो पटना रंगमंच से जुड़ी कई ऐसी महिलाएं हैं, जो वर्षों से […]

पटना : आज महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए किसी पर आश्रित नहीं हैं. अब महिलाएं अपनी शिक्षा और कला के बल पर बिना किसी का सहारा लिये हर क्षेत्र में बेहतर मुकाम हासिल कर रहा रही हैं. हम रंगमंच की ही बात करें, तो पटना रंगमंच से जुड़ी कई ऐसी महिलाएं हैं, जो वर्षों से रंगमंच से जुड़ी हुई हैं और अपने बेहतरीन अभिनय कला के बल पर कला की दुनिया में नाम दर्ज करा चुकी हैं. प्रभात खबर ने महिला दिवस पर कुछ ऐसी ही महिला कलाकारों से बातचीत की और जाना कि वे किन-किन परिस्थितियों का सामना करते इस क्षेत्र में आगे बढ़ी हैं. इन कलाकारों ने अपनी बात तो बतायी ही, साथ ही अन्य महिलाओं को भी उनकेे अधिकार और सशक्तीकरण को लेकर जागरूक होने की बात कही.

रिश्तेदारों के ताने सुनी, लेकिन मंजिल पाकर ही मानी

जब छोटी बच्ची थी, तो कला और रंगमंच को बिना समझे डांस और एक्टिंग में दिलचस्पी रखती थी. यह कहना है लंगरटोली की रहने वाली अर्चना सोनी का, जो पहली बार 1989 यानी तीस साल पहले रंगमंच से जुड़ी थी. इस बारे में वे कहती हैं कि मेरे घर का बहुत सपोर्ट मिला. घरवालों के कारण ही हम नाटक में काम किये. मैंने कत्थक में एमए भी किया है. मुझे फोक डांस काफी पसंद है. इसलिए मैं इन सब चीजों में हमेशा से आगे रही हूं. इन तीस साल में कभी ब्रेक नहीं लिया. इस दौरान हमारी शादी भी हुई, लेकिन शादी के बाद भी रंगमंच से जुड़ी रही. इन परिस्थितियों में अलग-बगल और रिश्तेदारों का ताना भी सुनी, लेकिन मैंने इन सब बातों को इग्नोर किया और अपनी मंजिल को पाकर माना.

माता और पिता से मिली प्रेरणा

रंगमंच की दुनिया में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली उज्ज्वला गांगुली कहती हैं कि मेेरे माता-पिता इस क्षेत्र से जुड़े थे. इसलिए मैं भी बचपन से ही जुड़ गयी, लेकिन बाद में जाना की रंगमंच क्या होता है. इस दौरान मैंने 2004-06 में डिप्लोमा भी किया. पटना के अलावा बाहर में रंगमंच में काम करने का मौका मिला. मैं फोक डांस भी करती हूं. इसलिए डांस के क्षेत्र में भी हमेशा से आगे रही हूं. मेरे काम की बदौलत मुझे 2016-17 में भिखारी ठाकुर नाट्य पुरस्कार मिला था. मुंबई में भी सीरियल में काम करने का मौका मिला था, लेकिन घर परिवार और अपने शहर से लगाव के कारण नहीं जा सकी, लेकिन यहां ही बेहतर करने का हमेशा से सोचा है. दो साल पहले शादी की हूं, लेकिन शादी के बाद भी मेरे शौक और मेरे रंगमंच पर कोई असर नहीं पड़ा.

बचपन के शौक ने दिलायी सफलता

रंगमंच के बारे में आनंदपुरी की मोना झा का कहना है कि बचपन से ही रंगमंच से जुड़ी हुई हूं. शुरू से यहां काफी अच्छा माहौल मिला. इसे जुड़े रहने के लिए फैमिली का बहुत सपोर्ट मिला है. मैं एक्टिंग के साथ-साथ डांस भी सिखती थी. ऐसे में शादी के बाद ससुराल में आस-पास के लोग मेरी अम्मा से कहती थी बहू डांस करती है, लेकिन अम्मा इसे प्राउड फिल हो कर कहती थी कि हां मेरी बेटी डांस और अभिनय करती है. परिवार का साथ मिला इसलिए अभी तक जुड़ी जुड़ी हुई हूं. यह मेरा शौक है. इसलिए शौक को हमेशा से जिंदा रखा है. इसके अलावा मैं एक एनजीओ के तहत बच्चे और महिलाओं के लिए काम करती हूं.

खुद को कम नहीं समझें
कदमकुआं की रहने वाली रूबी खातून महज आठ साल की उम्र से ही रंंगमंच से जुड़ी हैं. उन्होंने बताया कि मैं मुस्लिम परिवार से हूं और घर की इकलौती बेटी हूं. हमारे समाज में किसी लड़की को रंगमंच से जुड़ने का कम ही मौका मिलता है. खास कर रिश्तेदार और मोहल्लेवाले तरह-तरह की बातें करते हैं. रंगमंच से जुड़ने के लिए मुझे अपने पापा को काफी कन्वींस करना पड़ा. पहले वे उतना खुश नहीं थे, लेकिन अब इतने सालों में मुझे रंगमंच के अलावा कई टीवी सीरियल में काम करते देख उन्हें प्राउड फिल होता है. इस दौरान मुझे नूर फातिमा सम्मान, अनवर वर्सी स्मृति सम्मान भी मिला है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें