दरभंगा. देश के पूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का दरभंगा से गहरा संबंध रहा है. 1878 में स्थापित राज हाई स्कूल, दरभंगा के छात्रों को एक शिक्षक के रूप में एस राधाकृष्णन से एक बार पढ़ने का अवसर भी प्राप्त हुआ है. 1942 में राज हाई स्कूल के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर आये एस राधाकृष्णन ने जब अपना भाषण शुरू किया तो वो एक शिक्षक की भूमिका में आ गये और वहां उपस्थित छात्रों को पढ़ाने लगे. एक शिक्षक की भूमिका में राधाकृष्णन को देख मंच पर मौजूद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अमरनाथ झा और स्कूल के प्रधानाचार्य विभूति भूषण मुखोपाध्याय ने कहा था कि कोर्स पूरा जरुर कर लिया गया था, लेकिन राधाकृष्णन की इस कक्षा के बाद सही मायने में छात्रों का दीक्षांत हुआ है.
उस दिन उन्होंने कई प्रेरणादायक वचन कहे
दरभंगा के 55 वर्षीय अब्दुल रहमान कहते हैं कि उस दीक्षांत समारोह में उनके पिता एक छात्र के रूप में शामिल थे. रहमान कहते हैं कि डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और शिक्षा को जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानते थे. उन्होंने उस दिन कई प्रेरणादायक वचन कहे, जो सफलता के मार्ग पर चलने के लिए वहां उपस्थित छात्रों को प्रेरित किया. रहमान कहते हैं कि उनके पिता कहा करते थे कि राधाकृष्णन और अमरनाथ झा दोनों उस कालखंड के बेहतरीन शिक्षक थे. दोनों के जीवन में छात्र पैदा करने की ललक थी और दोनों छात्रों के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे. छात्र बनाने के लिए वैसी ललक अब न स्कूलों में दिखती है ना कॉलेजों में.
दरभंगा महाराज से थे गहरे संबंध
इतिहास पर शोध करनेवाले एस कुमार कहते हैं कि राधाकृष्णन का दरभंगा से संबंध काफी गहरा था. 1939 में जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के लिए मदन मोहन मालवीय का उत्तराधिकारी खोजा जा रहा था तो यूनिवर्सिटी के प्रति कुलाधिपति दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह के सामने राधाकृष्णन का नाम रखा गया और तभी से दोनों के संबंध मजबूत होते गये. डॉ कुमार बताते हैं कि 1939 से 1945 के दौरान राधाकृष्णन करीब आधा दर्जन बार दरभंगा आये. 1942 में वो राज स्कूल के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आये थे. डॉ कुमार कहते हैं कि राधाकृष्णन और महाराजा कामेश्वर सिंह बीएचयू में तो एक साथ पदाधिकारी थे ही, राज्यसभा में भी दोनों एक साथ सदस्य बने और 1962 तक रहे.
शिक्षक की भूमिका को लेकर नजरिया था साफ
डॉ राधाकृष्णन को शिक्षक की भूमिका को लेकर नजरिया एकदम साफ था. उनका कहना था कि शिक्षक वो नहीं, जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन डाले, बल्कि वास्तविक शिक्षक वो है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे. उनका यह भी कहना था कि अच्छा टीचर वो है, जो ताउम्र सीखता रहता है और अपने छात्रों से सीखने में भी कोई परहेज नहीं दिखाता. सच्चा गुरु वह है जो हमें खुद के बारे में सोचने में मदद करता है. शिक्षा के द्वारा ही मानव के मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. इसलिए संसार को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.
शिक्षा को लेकर थी ये राय
डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है. जब हम ये सोचते हैं कि हम सब जानते हैं तब हमारा सीखना बंद हो जाता है. शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. इसलिए विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए. वो कहते थे कि हर्ष और आनंद से परिपूर्ण जीवन केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है. राधाकृष्णन का मानना था कि किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है. पुस्तकें वो साधन हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं.