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…तो क्या 17 जून को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये ईजीएम नहीं कर सकेगा SBI, जानिए आखिर क्यों?

एसबीआई ने कोरोना वायरस महामारी के बीच 17 जून को ईजीएम (असाधारण आम बैठक) के लिए अपने शेयरधारकों को संदेश भेजा है. इसको लेकर इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (आईआईएएस) ने बैंक के संचालन से जुड़ कायदे कानून को लेकर आलोचना की है.

मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के कंपनी संचालन के तौर-तरीकों की आलोचना हो रही है. निवेशकों को परामर्श सेवाएं देने वाली एक कंपनी का कहना है कि देश का यह सबसे बड़ा बैंक अपने ही पुराने पड़ चुके कायदे-कानून के बोझ से दबा है और इससे सार्वजनिक शेयरधारकों के हितों का मजाक बन रहा है. दरअसल, एसबीआई ने कोरोना वायरस महामारी के बीच 17 जून को ईजीएम (असाधारण आम बैठक) के लिए अपने शेयरधारकों को संदेश भेजा है. इसको लेकर इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (आईआईएएस) ने बैंक के संचालन से जुड़ कायदे कानून को लेकर आलोचना की है.

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दरअसल, एसबीआई का गठन भारतीय स्टेट बैंक कानून, 1955 के तहत हुआ. इस कानून में बैंक को ईजीएम डिजिटल/इलेक्ट्रॉनिक के जरिये कराने की अनुमति नहीं है. इसमें ई-वोटिंग का भी प्रावधान नहीं है. आईआईएएस ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘एसबीआई में बेहतर संचालन वाली कंपनी बनने की क्षमता है और यह दूसरों के लिये एक आदर्श हो सकता है, लेकिन यह आधी सदी से अधिक पुराने स्टेट बैंक कानून, 1955 के बोझ से दबा है. बैंक 16 जून को भौतिक रूप से ऐसे समय ईजीम कराने को मजबूर है, जब कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं.

संस्थान ने बैंक के निदेशक मंडल से सरकार को एसबीआई कानून में संशोधन की सलाह देने को कहा है. उसने कहा कि एसबीआई के शेयरधारकों के पास अन्य कंपनियों के शेयरधारकों के मुकाबले कम अधिकार हैं. एसबीआई कानून में जरूरी बदलाव नहीं कर पुराने ढर्रे पर काम कर रहा है. कानून में बदलाव होने से शेयरधारकों को उनका अधिकार मिलता.

उसने कहा कि हालांकि, पिछले लगभग आधी सदी में एसबीआई कानून में संशोधन किया गया, लेकिन इसमें निवेशकों को जो अधिकार मिलने चाहिए थे, नहीं दिये गये. एसबीआई में निवेशकों की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है. हिस्सेदारी के हिसाब से इनका मूल्य 27,300 करोड़ रुपये बैठता है.

आईआईएएस ने कहा कि एसबीअई कानून सुनिश्चित करता है कि सेबी या अन्य नियाममक सूचीबद्ध कंपनियों के लिए जो प्रगतिशील बदलाव लाते हैं, स्टेट बैंक को उसके अनुकरण की जरूरत नहीं है. एक सूचीबद्ध कंपनी होने के नाते वह अपने सार्वजनिक शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह है, और इसीलिए उसे अलग-थलग रह कर काम करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.

उसने कहा कि एसबीआई निदेशक मंडल को सरकार को यह सलाह देनी चाहिए कि सार्वजनिक शेयरधारकों को वही अधिकार मिले जैसा की अन्य सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में है. उल्लेखनीय है कि एसबीआई कानून के तहत वोट हाथ उठाकर या मतदान के जरिये किया जा सकता है. कानून के तहत वह डाक मत पत्र जारी नहीं कर सकता. उसे ई-वोटिंग का भी अधिकार नहीं है और न ही वह वीडियो कांफ्रेन्सिसंग के जरिये बैठक कर सकता है.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘लेकिन ये सब अब बीते दिनों की बात है. ई-वोटिंग की जो सुविधा है, वह काफी अधिक है. इस व्यवस्था ने वोटों की गिनती के तरीके को भी बदल दिया है. यह आम निवेशकों को अपनी राय देने का मौका देता है. आईआईएएस ने कहा, ‘ई-मतदान एक महत्वपूर्ण बदलाव हो सकता है.

भारतीय स्टेट बैंक ने शेयरधारकों की 17 जून को यहां ‘ऑडिटोरियम’ में बैठक बुलायी है. यह बैठक तब बुलायी गयी है, जब कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय अन्य सूचीबद्ध कंपनियों को ‘लॉकडाउन’ के कारण इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बैठक की अनुमति दे रहा है. आईआईएएस के अनुसार, ‘इसका कारण यह है कि एसबीआई पुरातनपंथी कानून के बोझ से दबा है और उसमें इस प्रकार की बैठक की कोई व्वस्था नहीं है. ऐसे में ईजीएम शेयरधारकों और वरिष्ठ प्रबंधकों के स्वाथ्य और सुरक्षा के लिए अनवाश्यक जोखिम पैदा कर सकता है.

इतना ही नहीं, एसबीआई कानून में कुछ ऐसे भी प्रावधान है, जो शेयरधारकों को खिन्न कर चुके हैं. एसबीआई शेयरधारक लाभांश पर वोट नहीं करते. यह आरबीआई के दिशानिर्देश पर निर्भर है और केवल निदेशक मंडल की मंजूरी पर निर्भर है. इसी प्रकार, सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों की तरह एसबीआई को ऑडिटरों की नियुक्ति के लिए शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं है.

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