SIP: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से छेड़े गए टैरिफ वॉर और पहलगाम आतंकी हमले के बीच भारतीय शेयर बाजार बेफिक्र बना हुआ है. हालांकि, शेयर बाजार में लिवाली और बिकवाली बढ़ने से उतार-चढ़ाव का दौर जारी है. इसके बावजूद, दुनिया के दूसरे शेयर बाजारों के मुकाबले इसमें स्थिरता बरकरार है. इसकी दीर्घकालिक स्थिरता और बेफिक्री के पीछे सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) मिसाइल बनकर खड़ा है, जो चौतरफा हमले को अकेले संभाल रहा है.
बाजार में उतार-चढ़ाव जारी
सोमवार 5 मई 2025 को शुरू हुए कारोबारी सप्ताह के पहले दिन फॉरेन फंडों का निवेश जारी रहने और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट की वजह से शेयर बाजारों में लगातार दूसरे कारोबारी सत्र में तेजी जारी रही. हालांकि, मंगलवार के शुरुआती कारोबार में शेयर बाजार के दोनों प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी में उतार-चढ़ाव भरे रुझान देखने को मिले. हालांकि, कारोबार के आखिर में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 155.77 अंक या 0.19% गिरकर 80,641.07 अंक और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 81.55 अंक या 0.33% टूटकर 24,379.60 अंक पर बंद हुए.
ऑटो कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन रहा बेहतर
मंगलवार को शेयर बाजार के कारोबार में ऑटो कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन बेहतरीन रहा. प्रोग्रेसिव शेयर के निदेशक आदित्य गग्गर के अुनसार, मंगलवार को शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव भरा सेशन देखने को मिला. इसकी शुरुआत सपाट रही. उसके बाद गिरावट का दौर शुरू हो गया. सीमित दायरे में उतार-चढ़ाव भी देखने को मिला. उन्होंने कहा कि सेक्टर के हिसाब से देखें, तो ऑटो कंपनियों के शेयरों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है, जबकि बाकी सेक्टरों के शेयर गिरावट के साथ बंद हुए. इसमें पीएसयू बैंक और रियल्टी सबसे ज्यादा गिरावट रही.
बाजार की सुरक्षा में मिसाइल बना एसआईपी
अमेरिकी टैरिफ वॉर और भारत-पाकिस्तान के बीच गहराते तनाव के बीच भी भारतीय शेयर बाजार पर कोई खास प्रभाव नहीं देखने को नहीं मिल रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि एसआईपी (SIP) भारतीय शेयर बाजार के लिए मिसाइल बनकर खड़ा है. प्रसिद्ध पत्रकार मिलिंद खांडेकर लिखते हैं कि जब अक्टूबर 2008 में अमेरिकी आर्थिक महामंदी की वजह से विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भारतीय शेयर बाजार से करीब 16,000 करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए, तो बाजार 25% गिर गया था. साल 2025 के जनवरी महीने में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 87,000 करोड़ रुपये की बिकवाली की, तो बाजार 2 से 3% तक गिरा. इतनी बड़ी बिकवाली के बाद भी बाजार पर कम असर पड़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण एसआईपी (SIP) है, जो बाजार के लिए मिसाइल का काम कर रहा है.
शेयर बाजार के लिए मजबूत स्तंभ कैसे है एसआईपी
अंग्रेजी के अखबार द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ( NSE) में सूचीबद्ध शेयरों में से करीब 17.6% घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) के पास है जबकि 17.2% विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास है. यह आंकड़े मार्च 2025 तक के है. अब एसआईपी (SIP) म्यूचुअल फंड में खुदरा निवेशकों के आने वाले पैसों ने विदेशी संस्थागत और घरेलू संस्थागत निवेशकों के सारे खेल को ही पलटकर रख दिया है. साल 2010 में घरेलू संस्थागत निवेशकों के पास 11% और विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास 14% शेयर थे. अप्रैल 2025 तक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने 1.12 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की, मगर एनएसई का निफ्टी मजबूत बना हुआ है. इसका मतलब यह है कि भारतीय शेयर बाजार के लिए एसआईपी (SIP) मजबूत स्तंभ बना हुआ है और बाजार को अब विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है.
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बाजार को संभाले रहते हैं घरेलू निवेशक
विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) के आने से शेयरों की मांग बढ़ती है और भाव ऊपर जाते हैं, लेकिन उनकी बिकवाली से बाजार धराशायी भी हो जाता है. घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) बाजार को संभाले रहते हैं. अगर घरेलू संस्थागत निवेशक न होते, विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार का हाल बुरा कर देते. मिलिंद खांडेकर आगे कहते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था वैसे भी घरेलू खपत से चलती है और अब शेयर बाजार में भी यही बात लागू हो रही है कि एसआईपी (SIP) के जरिए म्यूचुअल फंडों में आने वाले खुदरा निवेशकों के पैसों ने बाजार को संभाल रखा है.
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