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अमेरिकी फर्म क्रॉल ने कहा : भारत में विदेशी निवेशकों के लिए भ्रष्टाचार अभी भी दुखती रग

नयी दिल्ली : भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार मुहिम चलाये जाने के बाद भी विदेशी निवेशकों के लिए यह बड़ी चुनौती बना हुआ है. जोखिम प्रबंधन क्षेत्र में काम करनेवाली अमेरिकी कंपनी क्रॉल ने कहा कि निवेशकों के लिए भारत में निवेश का निर्णय करते समय भ्रष्टाचार अभी एक बड़ी चुनौती है. इसके अलावा वे कंपनी […]

नयी दिल्ली : भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार मुहिम चलाये जाने के बाद भी विदेशी निवेशकों के लिए यह बड़ी चुनौती बना हुआ है. जोखिम प्रबंधन क्षेत्र में काम करनेवाली अमेरिकी कंपनी क्रॉल ने कहा कि निवेशकों के लिए भारत में निवेश का निर्णय करते समय भ्रष्टाचार अभी एक बड़ी चुनौती है. इसके अलावा वे कंपनी के संचालन की गुणवत्ता और परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए जोखिम जैसे मसलों को लेकर भी सोच विचार करते हैं. सलाहकार फर्म ने कहा कि 2014 में स्थिर सरकार आने के बाद से निवेशकों को महत्वपूर्ण बदलावों की उम्मीद थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक चीजें नहीं निकली.

विदेशी निवेशकों के निवेश निर्णयों को प्रभावित करनेवाले कारकों में सरकार की ओर से पूर्व में की गई कार्रवाई भी शामिल हो सकती है. इसमें खासकर कर से संबंधित कार्रवाई, उच्च बेरोजगारी के कारण सामाजिक अशांति, राज्य स्तर की राजनीति और कम-पूंजीकृत बैंकिंग प्रणाली शामिल है. यह पूछे जाने पर कि नरेंद्र मोदी सरकार के पद संभालने के बाद भारत से जुड़े जोखिमों के संदर्भ में गिरावट आयी है, इस पर क्रॉल के प्रबंध निदेशक तरन भाटिया ने सकरात्मक जवाब दिया, लेकिन आगे कहा कि इसमें और अधिक काम किया जा सकता था.

भाटिया ने कहा, लोगों से किए गये वादों के आधार पर वर्तमान सरकार को वोट मिले हैं, विदेशी निवेशक भारत में व्यवसाय में ठोस परिवर्तन की उम्मीद कर रहे थे. दुर्भाग्यवश यह प्रत्याशित स्तर तक नहीं हुआ. सरकार द्वारा कई सुधारों को पेश किया गया जो उसके मजूबत इरादों का संकेत देते हैं. हालांकि, अभी उनका परीक्षण होना बाकी है. साल की शुरुआत में जारी क्रॉल की रपट के मुताबिक भ्रष्टाचार और अन्य वजहों के चलते करीब 20 प्रतिशत निवेशकाकंपनियां भारत में निवेश की योजना से पीछे हट गयीं.

वहीं, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशल सर्वे की ओर से इस साल जारी रपट के मुताबिक एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत में रिश्वत का चलन सबसे ज्यादा है. देश में दो-तिहाई से अधिक लोगों को सरकारी कर्मचारियों से काम कारने के लिए उन्हें चाय-पानी के लिए पैसा देना पड़ा या उनकी जब गरम करनी पड़ी. सर्वेक्षण में पाया गया कि 69 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने रिश्वत दी. उसके बाद वियतनाम (65 प्रतिशत) का नंबर है. चीन में 26 प्रतिशत और पाकिस्तान में 40 प्रतिशत लोगों को काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ी.

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