Munger Vidhaanasabha: गंगा किनारे बसा मुंगेर, बिहार का वो शहर है जिसने सदियों तक सत्ता के खेल, युद्ध, धर्म और विद्रोह की कहानियों को अपनी आँखों से देखा. कभी यह मोदगिरि कहलाता था, जहाँ महाभारत का भीम और कर्ण आमने-सामने आए. फिर यही धरती बौद्ध भिक्षुओं की साधना का केंद्र बनी. आगे चलकर मीर क़ासिम ने इसे अपनी राजधानी बनाया और अंग्रेज़ों से टक्कर ली. आज भी इसके किले, गर्म पानी के झरने और बंदूक़ बनाने की परंपरा बीते युगों की दास्तान कहते हैं.
बिहार के मध्य में गंगा तट पर बसा मुंगेर, जिसे कभी मोंगिर और मोदगिरि कहा गया, केवल एक शहर नहीं बल्कि इतिहास का जीवंत दस्तावेज़ है. इसकी गाथा महाभारत से लेकर मौर्य, गुप्त, पाला, तुर्क, अफगान, मुगल और अंग्रेज़ों तक फैली हुई है. यहाँ की धरती ने न केवल महान साम्राज्यों के उत्थान-पतन को देखा, बल्कि धर्म, संस्कृति और राजनीति के कई अध्याय भी लिखे.
प्राचीन मुंगेर: महाभारत से बौद्धकाल तक
महाभारत में जिस मोदगिरि का उल्लेख है, इतिहासकार उसे मुंगेर से जोड़ते हैं. कहा जाता है कि भीम ने अंगराज कर्ण को हराने के बाद यहां युद्ध किया और इस भूमि को जीत लिया. बाद में बौद्ध भिक्षु मौदगल्य ने यहां के समृद्ध व्यापारियों को बौद्ध धर्म की ओर अग्रसर किया.
यही नहीं, मुदगल ऋषि का आश्रम भी यहीं माना जाता है. आज भी कई परंपराएं और लोककथाएं इस तथ्य को जीवित रखती हैं. गुप्तकालीन ताम्रपत्र और बौद्ध साहित्य मुंगेर को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताते हैं.
सातवीं शताब्दी में जब चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां पहुंचे, तो उन्होंने लिखा – “यहां की भूमि उपजाऊ है, फल-फूल प्रचुर मात्रा में हैं, लोग ईमानदार और सरल हैं, और यहां बौद्ध मठों की भरमार है.”
पाला शासक देवपाल और धरमपाल के समय में मुंगेर का महत्व और बढ़ गया. यहां के शिलालेख इस बात की गवाही देते हैं. परंतु .13वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर कब्ज़ा किया और मुंगेर भी उसके अधीन हो गया. इसके बाद दिल्ली और बंगाल सल्तनत के बीच खींचतान में यह इलाका अक्सर सत्ता बदलता रहा.
शेरशाह और मुग़लकाल
हुमायूँ और शेरशाह के संघर्ष में मुंगेर की क़िलेबंदी एक महत्वपूर्ण सैन्य रणनीति थी. अकबर और जहाँगीर के दौर में यह क्षेत्र विद्रोहियों को शांत कराने का गढ़ बना. जहाँगीर के समय के बाद, शाहजहाँ और औरंगज़ेब के शासन में भी मुंगेर का किला कई बार सत्ता संघर्ष का केंद्र बना रहा.
1762 में मीर क़ासिम अली खान ने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया. उन्होंने यहाँ भव्य शस्त्रागार और बंदूक़ निर्माण केंद्र स्थापित किया. आज भी मुंगेर “भारत का बर्मिंघम” कहा जाता है क्योंकि यहाँ बंदूक़ बनाने की परंपरा सदियों से जीवित है.
मीर क़ासिम ने अंग्रेज़ों की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया. लेकिन अंततः 1763 में मुंगेर का किला अंग्रेज़ों के कब्जे में आ गया. इसके साथ ही पटना नरसंहार और फिर बक्सर के युद्ध ने बंगाल और बिहार की किस्मत अंग्रेज़ों के हाथों सौंप दी.

औपनिवेशिक दौर: विद्रोह और बदलाव
ब्रिटिश शासन में मुंगेर का महत्व एक सैन्य छावनी और अस्पताल के रूप में बना रहा. 1766 में यहां अंग्रेज़ अधिकारियों का विद्रोह भी हुआ, जिसे दबा दिया गया. 19वीं शताब्दी में यह शहर अंग्रेज़ अधिकारियों और यात्रियों के लिए स्वास्थ्य लाभ का केंद्र माना जाने लगा. वॉरेन हेस्टिंग्स की पत्नी से लेकर अंग्रेज़ यात्रियों तक ने इसकी हवा, जलवायु और किलेबंदी की तारीफ़ की.
आज का मुंगेर न केवल अपने किले और हॉट स्प्रिंग्स के लिए मशहूर है, बल्कि यह योग और स्वास्थ्य की परंपरा से भी जुड़ गया है. “बिहार स्कूल ऑफ योगा” ने इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. मुंगेर का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक शहर समय-समय पर धर्म, राजनीति, युद्ध और संस्कृति का केंद्र बनता रहा और आज भी अपनी धरोहर को गर्व से संजोए हुए है.
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