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Bihar Election 2025: शशिभूषण कुंवर, पटना. बिहार की राजनीति में कांग्रेस का लगातार घटता हुआ प्रभाव अब किसी आकस्मिक पराजय की कहानी नहीं, बल्कि लंबे समय से जारी संरचनात्मक विफलताओं का परिणाम बन चुका है. कभी आधी सदी तक सत्ता पर काबिज रहने वाली यह राष्ट्रीय पार्टी आज इस मुकाम पर खड़ी है, जहां कई विधानसभा क्षेत्रों में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने की बात कौन कहे, अब उसका झंडा उठाने वाला कार्यकर्ता भी ढूंढ़ना मुश्किल हो गया है. राहुल गांधी के अथक प्रयास के बाद भी इस विधानसभा चुनाव में दो अंकों की भी सफलता नहीं मिली.
Bihar Election 2025: सामाजिक न्याय की राजनीति ने नये नेताओं को जन्म दिया
कांग्रेस की गिरावट का सूत्रपात 1990 के दशक में तब शुरू हुआ, जब राज्य की राजनीति नये सामाजिक ध्रुवीकरण से गुजर रही थी. सामाजिक न्याय की राजनीति ने नये नेताओं को जन्म दिया. कांग्रेस इन समीकरणों को पढ़ने में न केवल असफल रही , बल्कि उसने अपने कैडर की पुनर्रचना पर भी ध्यान नहीं दिया. नतीजा यह हुआ कि नयी सदी तक पहुंचते-पहुंचते वह राजद के सहारे चलने वाली कमजोर सहयोगी पार्टी के रूप में सीमित हो गयी. 2005 में जब एनडीए सत्ता में आया तब कांग्रेस के भीतर यह स्वीकार्यता लगभग स्थापित हो गयी कि बिहार में स्वतंत्र चुनावी लड़ाई की उसकी क्षमता खत्म हो चुकी है. पार्टी की रणनीति गठबंधन के भरोसे टिकट हासिल करने और जीतने की बनकर रह गयी. यह रणनीति भी उसे मजबूती की ओर नहीं ले गयी.
बिहार में कांग्रेस का सिकुड़ता जनाधार
2015 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अपवाद साबित हुआ. महागठबंधन के तहत नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की जोड़ी ने उसे राजनीतिक ऑक्सीजन दिया. 47 सीटों पर लड़कर 27 सीट जीतना कांग्रेस के लिए दो दशकों की सबसे बड़ी सफलता थी. यह सफलता पार्टी के अपने संगठन की नहीं, बल्कि गठबंधन की ताकत का प्रतिफल थी. 2020 में 71 सीटें मिलने के बावजूद कांग्रेस केवल 19 सीटें ही जीत सकी. यह उसकी कमजोर जमीनी पकड़ की सबसे स्पष्ट तस्वीर थी. ताजा चुनाव ने पार्टी की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया है. कई क्षेत्रों में कांग्रेस को मिले मत नोटा से भी कम रहे ,जो यह दर्शाता है कि मतदाताओं के मन में पार्टी अब ‘विकल्प’ के रूप में भी मौजूद नहीं है.
क्या गठबंधन पर निर्भरता रणनीति का हिस्सा?
स्थानीय स्तर पर नेतृत्व का अभाव, निष्क्रिय संगठन और लगातार घटते जनाधार ने कांग्रेस को बिहार में लगभग अप्रासंगिक बना दिया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के लिए अब चुनौती सीटें बढ़ाने की नहीं, बल्कि अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने की है. इसके लिए उसे तत्काल संगठनात्मक पुनर्निर्माण, सक्रिय कैडर तैयार करने और नये सामाजिक समीकरणों में अपनी भूमिका तय करने की जरूरत है. गठबंधन पर निर्भरता उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकती है, लेकिन उसके आधार पर पार्टी का पुनर्जीवन संभव नहीं. बिहार कांग्रेस आज ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां आगे का कोई भी कदम न केवल उसके भविष्य, बल्कि राज्य की राजनीति में उसकी बची-खुची जगह को भी तय करेगा.
1980 से चुनाव-कांग्रेस को मिली सीटें
- 1980 अविभाजित बिहार-169
- 1985,अविभाजित बिहार-196
- 1990,अविभाजित बिहार-71
- 1995,अविभाजित बिहार-29
- 2000,अविभाजित बिहार-23
- 2005 फरवरी-10
- 2005 अक्तूबर-09
- 2010-04
- 2015- 27
- 2020-19

