Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण के नामांकन के बाद अब दोनों प्रमुख गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन के बीच सीट बंटवारे का गणित पूरी तरह बदल चुका है. इस बार का राजनीतिक समीकरण न सिर्फ पिछले चुनाव से अलग है बल्कि इसमें नए सहयोगियों की एंट्री और पुराने दलों की स्थिति में बड़ा फेरबदल भी देखने को मिला है. जहां महागठबंधन के सहयोगी दलों में उत्साह है, वहीं एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों में कटौती ने नाराजगी की स्थिति पैदा कर दी है.
एनडीए के लिए सीटों में कमी, सहयोगियों को करना पड़ा समायोजन
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के तहत जदयू को 115 और बीजेपी को 110 सीटें दी गई थीं. लेकिन इस बार दोनों प्रमुख दलों ने बराबर-बराबर 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. इसका मतलब है कि जदयू को 14 और बीजेपी को 9 सीटों की हानि हुई है. एनडीए के घटक दलों के बीच यह समझौता सहयोगी पार्टियों को समायोजित करने की मजबूरी में किया गया.
मांझी को 7, उपेंद्र कुशवाहा को 6 सीटों पर करना पड़ा संतोष
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को इस बार 7 की जगह 6 सीटें मिली हैं. वहीं उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) को 6 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. दिलचस्प यह है कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), जो पिछले चुनाव में एनडीए से अलग होकर 134 सीटों पर लड़ी थी, इस बार फिर गठबंधन में शामिल हुई है. लेकिन, उसे सिर्फ 29 सीटें मिली हैं. यानी एनडीए में वापसी के बावजूद लोजपा (रा) को अपनी राजनीतिक सीमाओं को काफी घटाना पड़ा है.
महागठबंधन में ‘संतुलन का खेल’, कांग्रेस ने दी बड़ी कुर्बानी
महागठबंधन में सीटों का बंटवारा भी आसान नहीं रहा. राजद और कांग्रेस के बीच लंबे समय तक चली खींचतान के बाद आखिरकार फॉर्मूला तय हुआ. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को इस बार 143 सीटें मिली हैं, जो पिछली बार से सिर्फ एक कम है. वहीं कांग्रेस को 61 सीटें दी गई हैं, जबकि 2020 में वह 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. यानी कांग्रेस ने गठबंधन को मजबूत रखने के लिए 9 सीटों का बलिदान दिया है. हालांकि पार्टी के अंदर कुछ जिलों में असंतोष की खबरें हैं, लेकिन नेतृत्व इसे “साझा लक्ष्य के लिए आवश्यक त्याग” बताकर शांत करने में जुटा है.
वाम दलों और वीआईपी को मिला फायदा
महागठबंधन में इस बार वामपंथी दलों की स्थिति पहले से कहीं बेहतर हुई है. 2020 में भाकपा-माले, सीपीआई और सीपीएम को कुल 29 सीटें दी गई थीं, जबकि इस बार यह संख्या बढ़कर 35 हो गई है.
- भाकपा-माले को 19 से बढ़ाकर 20 सीटें
- सीपीआई को 6 से बढ़ाकर 9 सीटें
- सीपीएम को 4 से बढ़ाकर 6 सीटें मिली हैं.
इसके अलावा, इस बार विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने भी पाला बदलते हुए महागठबंधन का दामन थामा है. वीआईपी को पहले एनडीए से 11 सीटें मिली थीं, जबकि अब महागठबंधन में उसे 15 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया गया है.
नए चेहरों की एंट्री, दोनों गठबंधनों में असंतोष
इस बार के चुनाव में दोनों ही गठबंधनों में नए दलों की आमद और पुराने समीकरणों की उलटफेर ने माहौल को दिलचस्प बना दिया है. जहां एनडीए ने लोजपा (रा) के लिए जगह बनाई है, वहीं महागठबंधन ने वीआईपी को शामिल करके नई सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है. हालांकि, कुछ सीटों पर उम्मीदवार चयन को लेकर असंतोष और विरोध अब भी जारी है.

