Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक समीकरणों का रंग गहराता जा रहा है. हर दल अपनी रणनीति को नई दिशा देने में जुटा है. इसी क्रम में गुरुवार को महागठबंधन ने एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला. महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया. यह फैसला न सिर्फ गठबंधन की एकजुटता का प्रतीक बताया जा रहा है, बल्कि इसे सामाजिक समीकरणों को साधने की बड़ी कोशिश भी माना जा रहा है.
डिप्टी सीएम पद की मांग पर अड़े थे मुकेश सहनी
पिछले कई हफ्तों से मुकेश सहनी खुले तौर पर डिप्टी सीएम पद की मांग कर रहे थे. उनके समर्थक लगातार दबाव बना रहे थे कि मल्लाह समाज को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिया जाए. हालांकि, महागठबंधन की ओर से अब तक इस पर चुप्पी थी. लेकिन जब चुनावी माहौल तेज हुआ और भीतरघात व नाराजगी की खबरें आने लगीं, तब महागठबंधन ने आखिरी वक्त में यह फैसला लेकर सियासी संतुलन बनाने की कोशिश की.
तेजस्वी और सहनी के बीच डील कैसे हुई?
सूत्रों के अनुसार, बीते कुछ दिनों से तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी के बीच लगातार बातचीत हो रही थी. सहनी निषाद समाज के सबसे प्रभावशाली चेहरे हैं और उत्तर बिहार के कई जिलों- दरभंगा, मधुबनी, सीवान और मुजफ्फरपुर बेल्ट में उनका ठोस जनाधार माना जाता है. बिहार में आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मल्लाह या निषाद समुदाय की आबादी करीब 34,10,093 है. जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 2.6 प्रतिशत हिस्सा है.
10 से अधिक सीटों पर सहनी निभा सकते हैं अहम भूमिका
हालांकि, सहनी खुद अक्सर यह दावा करते हैं कि निषाद और उससे जुड़े मछुआरा समुदायों की वास्तविक जनसंख्या 10 से 12 प्रतिशत के बीच है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भले ही सहनी के दावे में अतिशयोक्ति हो, लेकिन इतना जरूर है कि 10 से अधिक सीटों पर निषाद मत निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. यही कारण है कि तेजस्वी यादव ने इस समुदाय को साथ जोड़ने में देर नहीं की.
अशोक गहलोत की भूमिका अहम
जानकारी के अनुसार, इस बड़े फैसले से एक दिन पहले राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत की मुलाकात लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से हुई थी. यह मुलाकात महज औपचारिक नहीं थी. इसके बाद ही सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने पर सहमति बनी. बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने गठबंधन में एकजुटता का संदेश देने के लिए यह कदम उठाने की सलाह दी थी ताकि महागठबंधन में चल रही अंदरूनी खींचतान पर विराम लगाया जा सके.
तेजस्वी का ‘सोशल इंजीनियरिंग’ प्लान
तेजस्वी यादव ने यह समझ लिया है कि 2025 का बिहार चुनाव केवल यादव-मुस्लिम (Y-M) समीकरण के भरोसे नहीं जीता जा सकता. एनडीए लगातार सोशल इंजीनियरिंग के जरिए पिछड़े, अतिपिछड़े और दलित वोट बैंक को साधने में लगी है. ऐसे में तेजस्वी ने महागठबंधन के जातिगत दायरे को बढ़ाने की रणनीति बनाई है. मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम फेस बनाकर वे यह संदेश देना चाहते हैं कि महागठबंधन अब “हर वर्ग की भागीदारी” का प्रतिनिधित्व करता है.
यह फैसला सहनी के लिए भी राजनीतिक पुनर्जीवन का मौका है. एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल होने के बाद उन्हें नई पहचान की जरूरत थी. अब उन्हें न सिर्फ सम्मानजनक पद मिला है बल्कि उन्हें अपने समुदाय के बीच “राजनीतिक प्रभाव” साबित करने का भी मौका मिलेगा.
विश्वसनीयता पर सवाल और आगे की राह
राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि मुकेश सहनी कितने भरोसेमंद सहयोगी साबित होंगे. उनका राजनीतिक करियर कई बार पाला बदलने के लिए जाना जाता है. वे पहले एनडीए के साथ थे, फिर विपक्षी खेमे में आ गए. अब महागठबंधन में शामिल होकर वे भाजपा को हराने की कसमें खा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि तेजस्वी यादव शुरू में उन्हें डिप्टी सीएम फेस बनाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन अशोक गहलोत के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने हामी भरी.
महागठबंधन की रणनीति पर नजर
अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि यह नया समीकरण चुनावी नतीजों में कितना असर डालता है. यदि निषाद वोट एकमुश्त महागठबंधन के पक्ष में जाता है, तो दरभंगा, सीवान, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर जैसे कई क्षेत्रों में समीकरण बदल सकते हैं. लेकिन अगर यह दांव उल्टा पड़ा, तो महागठबंधन के भीतर की दरारें और गहरी हो सकती हैं.
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