World Daring Rescue Operation: कभी-कभी इतिहास में कुछ ऐसे पल आते हैं, जब कुछ मिनटों की कार्रवाई आने वाले कई सालों की दिशा तय कर देती है. साल 1976 में ऐसा ही एक पल आया था, जब इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद और उसकी सेना ने युगांडा जाकर ऐसा ऑपरेशन किया, जिसकी चर्चा आज भी पूरी दुनिया में होती है. सिर्फ 53 मिनट का ये मिशन, 4,000 किलोमीटर दूर जाकर किया गया, जिसमें काली मर्सिडीज कार तक का इस्तेमाल हुआ और 102 लोगों की जान बचाई गई.
World Daring Rescue Operation: विमान हाईजैक और एंतेबे ड्रामा की शुरुआत
27 जून 1976 को एयर फ्रांस की फ्लाइट 139 तेल अवीव से पेरिस जा रही थी. रास्ते में इसका एक स्टॉप एथेंस में था. लेकिन एथेंस से उड़ान भरने के थोड़ी देर बाद ही इस विमान को जर्मनी के ‘रिवॉल्यूशनरी सेल्स’ संगठन और ‘पॉपुलर फ्रंट फॉर लिबरेशन ऑफ पैलेस्टाइन (PFLP)’ से जुड़े आतंकियों ने हाईजैक कर लिया. उन्होंने विमान को पहले लीबिया के बेंगाजी में उतारा और फिर युगांडा के एंतेबे एयरपोर्ट ले गए. उस समय युगांडा का राष्ट्रपति तानाशाह इदी अमीन था, जिसने आतंकियों को खुलकर सपोर्ट किया. विमान में मौजूद 248 यात्रियों और क्रू मेंबर्स को एयरपोर्ट के पुराने टर्मिनल भवन में बंद कर दिया गया. आतंकियों ने इजरायली और यहूदी यात्रियों को अलग कर दिया और बाकी ज्यादातर गैर-इजरायली यात्रियों को कुछ दिनों में छोड़ दिया. उनकी मांग थी कि इजरायल में बंद 40 फिलिस्तीनी कैदियों और केन्या, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और जर्मनी में बंद 13 अन्य कैदियों को रिहा किया जाए.
World Daring Rescue Operation By Mossad: न झुकेंगे, न सौदेबाजी करेंगे
उस वक्त दुनिया के कई देश चाहते थे कि मामला बातचीत से सुलझ जाए, लेकिन इजरायल के प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन ने आतंकियों की शर्त मानने से साफ इनकार कर दिया. सरकार ने तय किया कि आतंक के सामने झुका नहीं जाएगा. इसके बाद मोसाद को जिम्मेदारी दी गई कि वो जमीन से लेकर हवा तक सारी जानकारी जुटाए. मोसाद एजेंटों ने टर्मिनल बिल्डिंग का पूरा नक्शा इकट्ठा किया, यह पता लगाया कि आतंकी कहां-कहां हैं, युगांडा के सैनिक कैसे तैनात हैं और एयरपोर्ट का लेआउट क्या है. उन्होंने इन ब्लूप्रिंट को भी हासिल किया, जो सालों पहले उसी एयरपोर्ट को बनाने वाली एक इजरायली कंपनी के पास मौजूद थे.
काली मर्सिडीज से इदी अमीन को धोखा देने की चाल
इजरायल की योजना थी युगांडा तक 4,000 किलोमीटर दूर जाकर सीधा एक्शन लेना. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि वहां बिना शक पैदा किए टर्मिनल तक कैसे पहुंचा जाए. इसके लिए मोसाद और सेना ने एक चाल चली. उन्होंने एक काली मर्सिडीज कार और दो लैंड रोवर गाड़ियों को अपने सैन्य विमानों में लोड किया, ताकि वे बिल्कुल इदी अमीन के काफिले जैसी दिखें. मकसद ये था कि युगांडा के सैनिकों को लगे कि राष्ट्रपति खुद आ रहे हैं और वे रास्ता दे दें. 3 जुलाई 1976 की रात चार C-130 हरक्यूलिस विमान इजरायल से उड़े. ये विमान रेड सी के ऊपर बहुत नीचे उड़ते हुए युगांडा पहुंचे ताकि किसी रडार को शक तक न हो.
53 मिनट का रेस्क्यू, जिसमें मौत और जिंदगी की लड़ाई हुई
4 जुलाई 1976 की सुबह के करीब इजरायली विमान एंतेबे एयरपोर्ट पर उतरे. विमान से उतरते ही काली मर्सिडीज और गाड़ियां निकाली गईं और सीधा पुराने टर्मिनल की तरफ दौड़ पड़ीं. जब युगांडा के जवानों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो इजरायली कमांडो ने बिना देर किए कार्रवाई शुरू कर दी. टर्मिनल के अंदर आतंकियों को संभलने का मौका तक नहीं मिला. इस ऑपरेशन में सभी 7 हाईजैकर्स मारे गए, करीब 20 से 30 युगांडा सैनिक मारे गए और 102 लोगों को सुरक्षित छुड़ाकर इजरायल ले जाया गया. हालांकि इस दौरान चार बंधकों की जान चली गई. इसके अलावा इस मिशन के कमांडर योनातान नेतन्याहू भी शहीद हो गए. वो आज के इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बड़े भाई थे. पूरा मिशन सिर्फ 53 मिनट में पूरा हो गया.
एंतेबे ऑपरेशन
ये ऑपरेशन सिर्फ एक रेस्क्यू मिशन नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक साफ संदेश था कि इजरायल अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. इस मिशन को आज भी दुनिया की मिलिट्री अकादमियों में पढ़ाया जाता है. मोसाद की सटीक जानकारी, सेना की तैयारी और सैनिकों का साहस तीनों ने मिलकर इस ऑपरेशन को इतिहास बना दिया. काली मर्सिडीज से लेकर कमांडो की रणनीति तक, हर कदम इस बात का सबूत था कि ये सबकुछ सिर्फ ताकत नहीं, दिमाग के दम पर भी जीता गया. इसीलिए आज लगभग 50 साल बाद भी ऑपरेशन एंतेबे को दुनिया के सबसे सफल रेस्क्यू ऑपरेशन में गिना जाता है.
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