Shubhanshu Shukla Returns From Space: करीब 18 दिनों की अंतरिक्ष यात्रा के बाद भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला और उनके तीन साथियों की धरती पर वापसी का क्षण आ चुका है. ये सभी एक्सिओम मिशन-4 (Axiom Mission-4) के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर गए थे और अब ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के जरिए वापस लौट रहे हैं. इस अभियान को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिसमें भारत के अलावा हंगरी और पोलैंड जैसे देशों की भी भागीदारी रही.
नासा की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्री अपने साथ करीब 580 पाउंड (लगभग 263 किलोग्राम) जरूरी सामान और डेटा लेकर लौट रहे हैं. इनमें नासा का वैज्ञानिक हार्डवेयर और उन 60 से अधिक प्रयोगों का डेटा शामिल है, जिन्हें मिशन के दौरान सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया. वैज्ञानिकों को इन प्रयोगों से पृथ्वी पर शोध के लिए अहम जानकारियां मिलने की उम्मीद है.
इन 10 देशों की सेनाएं सबसे कमजोर, एक के पास तो सेना ही नहीं!
मंगलवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 2:07 बजे स्पेसक्राफ्ट ने डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया शुरू की, जो किसी भी रिटर्न मिशन का अहम हिस्सा होता है. इस प्रक्रिया के जरिए अंतरिक्ष यान की गति को कम किया जाता है ताकि वह पृथ्वी के वायुमंडल में सुरक्षित प्रवेश कर सके. इसके बाद तीन बजकर एक मिनट पर यान ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया और इसके बाद यह सैन डिएगो के तट के पास समुद्र में उतरने की प्रक्रिया में पहुंचा.
वापसी के दौरान सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए स्पेसक्राफ्ट से पहले उसका ट्रंक अलग किया गया और वायुमंडल में प्रवेश से पहले हीट शील्ड को सक्रिय किया गया, जो यान को 1600 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी से बचाता है. इसके बाद दो चरणों में पैराशूट तैनात किए गए पहले 5.7 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्टेबिलाइजेशन पैराशूट और फिर करीब 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर मुख्य पैराशूट खुले.
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी टली, जानें ताजा अपडेट
अंतरिक्ष यान की समुद्र में सफल लैंडिंग के बाद इसे एक विशेष रिकवरी जहाज पर लाया जाएगा. वहीं से अंतरिक्ष यात्रियों को कैप्सूल से बाहर निकाला जाएगा और उनकी प्रारंभिक चिकित्सीय जांच की जाएगी. इसके बाद हेलिकॉप्टर से उन्हें तटीय चिकित्सा केंद्र ले जाया जाएगा.
धरती पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए 7 दिनों का पुनर्वास कार्यक्रम शुरू होगा. चूंकि अंतरिक्ष में भारहीनता की स्थिति रहती है और शरीर को गुरुत्वाकर्षण महसूस नहीं होता, इसलिए वापस आने पर यात्रियों को फिर से पृथ्वी के वातावरण के अनुकूल बनना पड़ता है. इस दौरान चिकित्सा जांच, व्यायाम और मानसिक परामर्श जैसी प्रक्रियाएं की जाती हैं.
गौरतलब है कि यह निजी मिशन शुरुआत में कई बार टल गया था, लेकिन आखिरकार 25 जून को फ्लोरिडा स्थित नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से इसकी सफल लॉन्चिंग हुई. भारत के लिए यह मिशन इसलिए खास रहा क्योंकि शुभांशु शुक्ला की भागीदारी ने भारत को अंतरिक्ष अन्वेषण के वैश्विक मंच पर नई पहचान दी है.
राफेल की तारीफ क्यों कर रहा पाकिस्तान? सच्चाई जान उड़ जाएंगे होश!