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मक्का पर मंडरा रहा खतरा? सऊदी ने पाकिस्तानी सेना को क्यों दी एंट्री, आखिर किससे डर रहे हैं MBS! 

Saudi Arabia Pakistan Defense Deal: 1979 की मक्का बगावत ने सऊदी अरब की नींव हिला दी थी. आज 45 साल बाद भी उसका डर कायम है. क्राउन प्रिंस MBS को अंदरूनी कट्टरपंथ से खतरा है, इसलिए पाकिस्तान संग नई डिफेंस डील साइन की गई है.

Saudi Arabia Pakistan Defense Deal: सोचिए, अगर इस्लाम की सबसे पवित्र जगह, मक्का की ग्रैंड मस्जिद पर कोई कब्जा कर ले तो? और वो भी तब, जब वहां लाखों लोग नमाज पढ़ने आते हों. ये सपना नहीं, हकीकत थी. साल था 1979. उस दिन सऊदी अरब की नींव हिल गई थी. अल-जमाआ अल-सलफिया अल-मुहतसिबा नाम का संगठन, जिसके कुछ सौ फॉलोअर्स थे, उन्होंने सऊदी हुकूमत को लगभग गिरा ही दिया था. उस बगावत की गूंज आज भी सऊदी के कानों में है. और शायद इसी वजह से 45 साल बाद भी सऊदी अरब को अपने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ सिक्योरिटी डील करनी पड़ी है.

Saudi Arabia Pakistan Defense Deal: क्यों हुई पाकिस्तान-सऊदी डिफेंस डील?

पाकिस्तानी पॉलिटिकल साइंटिस्ट आयशा सिद्दीका बताती हैं कि पिछले हफ्ते हुई डिफेंस डील कई अहम मुद्दों को कवर करती है – ईरान को न्यूक्लियर हथियार हासिल करने या इस्तेमाल करने से रोकना, अमेरिका के रिजन से हटने के बाद सऊदी की सुरक्षा, यमन जैसे देशों से बचाव और सबसे अहम शाही परिवार की हिफाजत. लेकिन आयशा साफ कहती हैं कि इससे भी बड़ा सच यह है कि सिर्फ मिलिट्री फोर्स से सऊदी के शाही परिवार की सुरक्षा नहीं हो सकती.

1979 का मक्का विद्रोह

20 नवंबर 1979 को जूहैमान अल-ओतैबी और उसके कट्टरपंथी साथियों ने ग्रैंड मस्जिद पर कब्जा कर लिया. उनका दावा था कि उनका साथी मोहम्मद अल-कहतानी इस्लाम का “महदी” यानी उद्धारक है. विद्रोहियों ने पहले से ही मस्जिद में हथियार जमा कर रखे थे. शुरुआत में सऊदी आर्मी बुरी तरह फंस गई. हालात इतने बिगड़े कि फ्रेंच स्पेशल फोर्स और पाकिस्तानी सैनिकों की मदद लेनी पड़ी. गैस और भारी हथियारों से मस्जिद को खाली कराया गया. लड़ाई लंबी चली और सैकड़ों लोग मारे गए. इस घटना के बाद सऊदी अरब की पॉलिटिक्स, धर्म और सुरक्षा पॉलिसियों में बड़ा बदलाव आया. धार्मिक पुलिस और कट्टरपंथी ताकतें और मजबूत हो गईं.

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क्राउन प्रिंस का डर – कहीं फिर न हो जूहैमान जैसा हमला

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) मानते हैं कि 1979 का विद्रोह ये बताने के लिए काफी है कि सऊदी अरब में कभी भी धार्मिक कट्टरपंथ सिर उठा सकता है. 2025 की एक स्टडी भी इसी डर को पुख्ता करती है. स्टडी के मुताबिक, सऊदी के युवा पश्चिमीकरण और मॉडर्न कल्चर को पसंद नहीं करते. उन्हें MBS का विजन 2030 तक जिसमें महिलाओं की आजादी से लेकर इंटरफेथ टॉलरेंस तक शामिल है ये रास नहीं आ रहा. युवाओं का झुकाव अब भी धार्मिक कट्टरपंथ की तरफ है. यानी क्राउन प्रिंस की मॉडर्न सऊदी वाली सोच को घर के अंदर से ही सबसे बड़ा खतरा है.

उलेमा का दबाव और कट्टरपंथी लहर

जेम्स डॉर्सी, जो सऊदी अरब की राजनीति पर लगातार नजर रखते हैं, लिखते हैं कि इंडोनेशिया से ताल्लुक रखने वाले शेख असीम अल-हकीम, जिन्हें उनके यंग फॉलोअर्स “शेख औसाम” कहते हैं, खुलेआम MBS की पॉलिसियों का विरोध कर रहे हैं. जेंडर डिस्क्रिमिनेशन जैसी नीतियों के खिलाफ उनकी पकड़ काफी मजबूत है. वहीं कम “सावधान” क्लेरिक्स जैसे शेख बद्र अल-माशारी और सालाह अल-तालिब पहले ही जेल में हैं.

जबकि मोहम्मद अल-गामदी को महज क्लेरिक्स के बोलने के हक की वकालत करने पर मौत की सजा तक का खतरा है. 1979 का मक्का विद्रोह सिर्फ बीता हुआ इतिहास नहीं, बल्कि आज भी सऊदी की सुरक्षा सोच में एक जिंदा डर है. MBS जानते हैं कि असली दुश्मन बाहर से ज्यादा अंदर है. इसलिए वो पाकिस्तान जैसे देश का सहारा ले रहे हैं. क्योंकि जब घर के भीतर ही आग सुलग रही हो, तो बाहर का पहरा जरूरी हो जाता है.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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