Russia NATO Clash: रूस और बेलारूस के बीच हुए परमाणु युद्धाभ्यास ने दुनिया भर की चिंताएं बढ़ा दी हैं, जिससे रूस और नाटो के बीच सीधा टकराव होने की आशंका गहरा गई है. यूक्रेन युद्ध के बीच बेलारूस में रूसी परमाणु हथियारों की तैनाती और इन सैन्य अभ्यासों ने पश्चिमी देशों में तनाव का माहौल बना दिया है. इस कदम को वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा माना जा रहा है, क्योंकि यह क्षेत्र में अस्थिरता को और बढ़ा सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक बड़े संघर्ष की संभावना को लेकर चिंतित है.
Russia NATO Clash: परमाणु युद्धाभ्यास और उसकी मुख्य बातें
हाल ही में रूस और बेलारूस ने मिलकर एक बड़ा सैन्य युद्धाभ्यास किया है, जिसमें सामरिक परमाणु हथियारों के प्रक्षेपण का पूर्वाभ्यास शामिल था. बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने इस बात की पुष्टि की है कि इन संयुक्त युद्धाभ्यासों के तहत रूसी सामरिक परमाणु हथियारों के लॉन्च का अभ्यास किया जा रहा है. यह पाँच दिवसीय अभ्यास ‘जापाद’ (पश्चिम) नामक सैन्य अभ्यास का हिस्सा था, जो हाल ही में समाप्त हुआ है.
बेलारूस के चीफ ऑफ स्टाफ ने जानकारी दी कि इस अभ्यास में रूस की ओरेश्निक हाइपरसोनिक मिसाइल का भी इस्तेमाल किया गया. यह मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है. रूस ने बेलारूस के साथ इस सैन्य अभ्यास के दौरान अपनी ज़िरकोन हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का भी प्रदर्शन किया, जिसकी मारक क्षमता एक हजार किलोमीटर तक है. ये मिसाइलें दुश्मन के लक्ष्यों पर सटीक हमला करने की क्षमता रखती हैं. अभ्यास का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों की युद्ध तत्परता का परीक्षण करना था.
यह युद्धाभ्यास हर दो साल में होता है, और ‘जापाद-2025’ का सबसे सक्रिय चरण आधिकारिक तौर पर 12 से 16 सितंबर के बीच चला. इस अभ्यास में हजारों सैनिक, युद्धपोत और विमान शामिल थे. रिपोर्टों के अनुसार, इसमें लगभग 13,000 सैनिकों ने भाग लिया, हालांकि पश्चिमी विशेषज्ञों को संदेह है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक थी. इस युद्धाभ्यास में पारंपरिक छोटे हथियारों से लेकर परमाणु हथियारों तक हर तरह के अभ्यास शामिल थे. बेलारूस के रक्षा मंत्रालय ने भी रूसी मध्यम दूरी की ओरेश्निक बैलिस्टिक मिसाइल की तैनाती के साथ अभ्यास की पुष्टि की है. विश्व राजनीति समाचार में यह एक महत्वपूर्ण घटना मानी जा रही है.
बेलारूस की भूमिका और रूस से संबंध
बेलारूस रूस का एक करीबी सहयोगी देश है और यूक्रेन के साथ-साथ नाटो सदस्य देशों जैसे पोलैंड, लिथुआनिया और लातविया के साथ अपनी सीमा साझा करता है. बेलारूस की धरती पर रूसी सामरिक परमाणु हथियार मौजूद हैं, हालांकि उनका नियंत्रण और कमान मॉस्को के पास रहता है.
इतिहास में, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, बेलारूस ने स्वेच्छा से परमाणु हथियारों का त्याग कर दिया था. 1993 में बेलारूस ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) में एक गैर-परमाणु हथियार वाले देश के रूप में प्रवेश किया, और 1996 तक अपने क्षेत्र से सभी परमाणु हथियार हटा दिए थे.
हालांकि, 2023 में रूस ने बेलारूस के क्षेत्र में सामरिक परमाणु हथियारों की तैनाती शुरू कर दी. बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने पहले कहा था कि उन्होंने खुद व्लादिमीर पुतिन से मिन्स्क में परमाणु हथियार “वापस लाने” का अनुरोध किया था, और उन्होंने बेलारूस के खिलाफ किसी भी आक्रमण की स्थिति में उनका “बिना किसी हिचकिचाहट के” उपयोग करने की इच्छा व्यक्त की थी. चीन ने भी बेलारूस में रूसी परमाणु हथियारों की तैनाती पर “गहरी चिंता” व्यक्त की थी और परमाणु प्रसार के जोखिमों का विरोध किया था.
लुकाशेंको ने यह भी कहा है कि वे इन अभ्यासों को पश्चिमी देशों से छिपा नहीं रहे हैं, और हालांकि वे किसी को धमकी देने की योजना नहीं बना रहे हैं, फिर भी उन्हें हर तरह के हथियार का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए, अन्यथा ये हथियार बेलारूस में क्यों होंगे. बेलारूस के रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की है कि रूसी मध्यम दूरी वाली ओरेश्निक बैलिस्टिक मिसाइल की तैनाती के साथ अभ्यास किया गया था, जिसे रूस ने पिछले साल 21 नवंबर को यूक्रेन पर पहली बार दागा था.
नाटो की बढ़ती चिंताएं
रूस और बेलारूस के इन सैन्य अभ्यासों ने नाटो देशों की चिंता बढ़ा दी है और तनाव को और गहरा कर दिया है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस का हमला भी बेलारूस के साथ सैन्य अभ्यास के कुछ दिनों बाद ही हुआ था. इसलिए इस बार भी अभ्यास की प्रकृति और समय ने पोलैंड, लातविया और लिथुआनिया जैसे नाटो सदस्यों की चिंताएं बढ़ा दी हैं, जो बेलारूस की पश्चिमी सीमा से लगे हैं.
हाल के हफ्तों में कई घटनाओं ने क्षेत्रीय अस्थिरता को और बढ़ा दिया है. इनमें पोलैंड में रूसी ड्रोन का प्रवेश शामिल है, जिसे पोलिश अधिकारियों ने “जानबूझकर किया गया उकसावा” करार दिया है. इसके जवाब में नाटो ने अपने पूर्वी हिस्से में वायु रक्षा तंत्र को मजबूत किया है. पोलैंड ने अपनी पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्रों में 40,000 सैनिक तैनात किए हैं और नाटो के अनुच्छेद 4 को भी लागू किया है, जिसके तहत सदस्य देश मिलकर सुरक्षा उपायों पर चर्चा करते हैं. पोलैंड की मांग पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी आपात बैठक बुलाने का ऐलान किया है.
नाटो महासचिव मार्क रुटे ने रूस की हाइपरसोनिक मिसाइल क्षमताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अब यह मान लेना सही नहीं होगा कि स्पेन या ब्रिटेन, एस्टोनिया या लिथुआनिया की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं. उन्होंने ब्रुसेल्स में कहा, “आइए, यह स्वीकार करें कि 32 देशों वाले इस गठबंधन में हम सभी पूर्वी सीमा पर ही रहें.” पश्चिमी सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि ये अभ्यास यूरोप को डराने के लिए किए गए हैं. रूस-बेलारूस की सैन्य कवायद के जवाब में नाटो और पोलैंड ने भी “आयरन-डिफेंडर-25” नामक बड़ा युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है. इस ड्रिल में 30,000 सैनिकों के साथ 600 से अधिक हथियारबंद यूनिट्स जमीन, समुद्र और आसमान से संयुक्त अभ्यास कर रही हैं.
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विश्व राजनीति में इसका प्रभाव
रूस और बेलारूस का यह परमाणु युद्धाभ्यास विश्व राजनीति में गहरे प्रभाव डालता है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब यूक्रेन युद्ध पहले से ही चल रहा है, और नाटो देशों के करीब होने के कारण इस युद्धाभ्यास पर पूरी दुनिया की नजर है. ‘जापाद’ का अर्थ रूसी भाषा में ‘पश्चिम’ होता है, जो यह दर्शाता है कि इस अभ्यास के जरिए रूस और बेलारूस पश्चिमी देशों को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं.
इस युद्धाभ्यास को इसलिए काफी गंभीर माना जा रहा है क्योंकि इसमें खुले तौर पर परमाणु योजना शामिल की गई है. बेलारूस के रक्षा मंत्री विक्टर ख्रेनिन ने पुष्टि की है कि इस अभ्यास में रूस के ओरेश्निक मिसाइल सिस्टम के माध्यम से परमाणु हथियारों की तैनाती का परीक्षण भी होगा. भले ही इस दौरान असली परमाणु हथियार मौजूद न हों, लेकिन रूस और बेलारूस क्या संदेश देना चाह रहे हैं, उसे पश्चिमी देश काफी अच्छे से समझ रहे हैं. मॉस्को और मिन्स्क मिलकर नाटो देशों पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनाना चाहते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इस ‘जापाद-2025’ अभ्यास में भारत, बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान सहित कई अन्य देशों ने भी भाग लिया है. भारतीय सेना के 70 सदस्यीय दल, जिसमें 65 सैनिक (57 थलसेना, 7 वायुसेना और 1 नौसेना) शामिल थे, रूस पहुंचे थे. भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की सेनाएं इस मंच पर मौजूद थीं, हालांकि अलग-अलग समूहों में. यह घटनाक्रम विश्व राजनीति समाचार के लिए एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जटिलता और तनाव को दर्शाता है.
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