Pakistan Muslim Leader Altaf Hussain Sought Help From PM Modi: पाकिस्तान की राजनीति में कभी कराची के सबसे प्रभावशाली नेता माने जाने वाले अल्ताफ हुसैन ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की है. वह मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक हैं, जो पहले मुहाजिर कौमी मूवमेंट के नाम से जानी जाती थी. MQM ने पाकिस्तान में बसे मुहाजिर समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन शुरू किया था. अल्ताफ हुसैन ने भारत सरकार से अपील की है कि वह पाकिस्तान में रह रहे मुहाजिरों की मदद करे, जो दशकों से भेदभाव और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं.
अल्ताफ हुसैन एक निर्वासित नेता (Altaf Hussain)
अल्ताफ हुसैन 1992 से लंदन में निर्वासन में रह रहे हैं. वह मुहाजिरों के सबसे प्रखर और प्रभावशाली नेता माने जाते हैं. कराची में उनका इतना प्रभाव था कि स्थानीय लोग उन्हें ‘भाई’ कहकर पुकारते थे. एक समय था जब कराची में उनकी अनुमति के बिना कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं हो सकती थी. हालांकि, 2018 के आम चुनाव के बाद से उनका राजनीतिक प्रभाव कमजोर हुआ है, लेकिन मुहाजिर समुदाय के बीच उनकी लोकप्रियता अब भी कायम है.
MQM का गठन और बदलाव (Pakistan)
1986 में अल्ताफ हुसैन ने मुहाजिरों के अधिकारों के लिए MQM का गठन किया. शुरुआत में पार्टी का नाम मुहाजिर कौमी मूवमेंट था, लेकिन जब अलगाववाद के आरोप लगने लगे तो इसका नाम बदलकर ‘मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट’ कर दिया गया. इस बदलाव का उद्देश्य था कि पार्टी अब सिर्फ मुहाजिरों की नहीं, बल्कि पूरे पाकिस्तान के शहरी समुदाय की प्रतिनिधि मानी जाए.
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मुहाजिरों का इतिहास और उनकी स्थिति (Muslim Leader)
मुहाजिर वे लोग हैं जो भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान गए थे, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य हिंदी भाषी क्षेत्रों से. अल्ताफ हुसैन खुद कराची में पैदा हुए, लेकिन उनके माता-पिता आगरा के रहने वाले थे. उनके पिता नाजिर हुसैन भारतीय रेलवे में अधिकारी थे और विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए. शुरुआती वर्षों में मुहाजिरों को पाकिस्तान में काफी सम्मान मिला. वे पढ़े-लिखे, शहरी और आधुनिक विचारधारा वाले थे. उन्होंने कराची और लाहौर जैसे शहरों में बड़ी संख्या में बसकर नौकरियों और व्यापार में अपनी जगह बनाई. लियाकत अली खान जैसे नेता, जो खुद मुहाजिर थे, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने.
हालांकि, 1960 के दशक के बाद मुहाजिरों की स्थिति कमजोर होती गई. राष्ट्रपति अयूब खान के दौर में, जिन्होंने इस्लामाबाद को राजधानी बनाया, मुहाजिरों के प्रभाव को सीमित करने की कोशिश हुई. उर्दू बोलने वाले मुहाजिरों को सिंधी, पख्तून और पंजाबी समुदायों से भेदभाव का सामना करना पड़ा. कराची जैसे शहर में जहां उनकी बड़ी आबादी थी, वहीं उन्हें ‘बाहरी’ माना जाने लगा.
अल्ताफ हुसैन का कहना है कि पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी, पख्तून और बलूच समुदायों की तरह मुहाजिरों को भी एक स्वतंत्र पहचान दी जानी चाहिए. उन्होंने बार-बार यह बात उठाई है कि मुहाजिरों को पांचवीं संवैधानिक पहचान के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए.
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सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक भागीदारी
मुहाजिरों ने कराची और हैदराबाद जैसे शहरों में अपने सांस्कृतिक अधिकारों को बनाए रखा. विभाजन से पहले ये क्षेत्र गैर-मुस्लिम बहुल थे, लेकिन बाद में मुहाजिरों की प्रमुखता हो गई. यहां उन्हें सांस्कृतिक समायोजन के दबाव का सामना नहीं करना पड़ा और उन्होंने उर्दू भाषा, भारतीय रीति-रिवाज और शिक्षित जीवनशैली को कायम रखा.
राजनीतिक नजरिए से भी मुहाजिरों को शुरुआती दौर में अच्छा प्रतिनिधित्व मिला. लेकिन समय के साथ-साथ प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे में उनका प्रभाव कम होता गया. MQM ने इस खालीपन को भरने की कोशिश की और शहरी पाकिस्तानियों, खासकर मुहाजिरों की समस्याओं को राजनीतिक मंच पर उठाया.
नरेंद्र मोदी की तारीफ और भारत से अपील (PM Modi)
अब लंदन में निर्वासन का जीवन जी रहे अल्ताफ हुसैन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उन्हें मजबूत और निर्णायक नेता बताया है. साथ ही, उन्होंने भारत सरकार से अपील की है कि वह पाकिस्तान में रह रहे मुहाजिरों की तकलीफों को समझे और उनके लिए आवाज उठाए. अल्ताफ हुसैन भले ही पाकिस्तान की राजनीति में आज पहले जैसे प्रभावी न हों, लेकिन मुहाजिरों की आवाज अब भी उनके माध्यम से उठती है. उनका बयान सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि पाकिस्तान में दशकों से हो रहे सामाजिक और सांस्कृतिक भेदभाव की याद दिलाता है. उनका यह आह्वान भारत-पाक संबंधों के बीच एक नया आयाम जोड़ता है, जहां मानवीय आधार पर सीमाओं से परे जाकर समुदायों की मदद करने की बात की जा रही है.