Mohammad Yunus anti India controversy: बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस एक बार फिर भारत विरोधी विवाद के केंद्र में आ गए हैं. उन्होंने एक बार फिर वही किताब चर्चा में ला दी है, जिसकी वजह से उन पर तनाव फैलाने का आरोप लगा था. उन्होंने हाल ही में कनाडा से आए एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने इस डेलीगेशन को एक किताब गिफ्ट की, जिसके कवर पर बनी एक कलाकृति में बांग्लादेश का नक्शा ऐसा दिखाया गया है, जो भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से के बड़े भाग तक फैला हुआ प्रतीत होता है. यूनुस ने पिछले दिनों पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी को भी भेंट की थी.
यह कनाडाई सीनेटर सलमा अताउल्लाहजान की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ढाका के स्टेट गेस्ट हाउस जमुना में बुधवार को बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस से मिला था. इस दौरान यूनुस ने जो किताब भेंट की, उसमें ग्रेटर बांग्लादेश की अवधारणा दिखाई गई है. यह विचार इस्लामी संगठन सल्तनत-ए-बांग्ला से जुड़ा हुआ है, जो विस्तारवादी विचारधारा के लिए जाना जाता है.
भारत ने जताई थी कड़ी नाराजगी
इस कदम ने भारत में नाराजगी पैदा कर दी है. खासकर इसलिए क्योंकि यूनुस ने हाल ही में यही किताब पाकिस्तानी जनरल शमशाद मिर्जा को भी ढाका में भेंट की थी. यूनुस के ये दोहराए गए कदम किसी सोच-समझी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं, जिनके पीछे राजनीतिक संदेश छिपा हुआ है. भारत ने इस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि मोहम्मद यूनुस को अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए. भारत बांग्लादेश से टकराव नहीं चाहता.
भारत-बांग्लादेश संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं. मोहम्मद यूनुस पहले भी इस तरह के भड़काऊ कृत्य कर चुके हैं. उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को लैंडलॉक्ड कहा था यानी समुद्र तक पहुंच न रखने वाला इलाका. उन्होंने चीन में बोलते हुए कहा था, “भारत के सात राज्य, पूर्वी भारत… ये एक लैंडलॉक्ड देश की तरह हैं. इनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है.” उसके बाद उनकी ऐसी किताब भेंट करना विवाद पैदा करने की ही सोची समझी साजिश लगती है. वे पहले भी कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और अन्य वैश्विक नेताओं को भी यह किताब भेंट कर चुके हैं.
बांग्लादेश में यूनुस के खिलाफ प्रदर्शन
मंगलवार को बांग्लादेश में इस्लामिक समूहों ने अंतरिम सरकार से राष्ट्रीय चार्टर को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया. इस आंदोलन की मुख्य मांग है कि जुलाई नेशनल चार्टर पर जनमत संग्रह (रेफरेंडम) कराया जाए. यह चार्टर पिछले शासन के पतन के बाद प्रस्तावित किया गया था. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राजनीतिक सुधारों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी रोडमैप के बिना चुनाव कराना संभव नहीं है.
यह चार्टर जुलाई 2024 में शुरू हुए राष्ट्रीय विद्रोह के नाम पर रखा गया है, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के 15 साल लंबे शासन को समाप्त कर दिया था, एक ऐसा शासन जिसे आलोचक दिनों-दिन अधिक तानाशाही प्रवृत्ति वाला बता रहे थे. हालांकि, यह चार्टर फिलहाल कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है. राजनीतिक दलों का कहना है कि संविधान का हिस्सा बनाने के लिए जनमत संग्रह जरूरी है. बांग्लादेश एक संसदीय लोकतंत्र है, जहां संविधान में बदलाव केवल संसद ही कर सकती है.
ढाका में हजारों प्रदर्शनकारियों ने रैली की
इनमें सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और अन्य सात राजनीतिक दलों के समर्थक शामिल थे.
उनकी प्रमुख मांग है कि अगला आम चुनाव, जो 2026 की शुरुआत में होने की संभावना है, अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत कराया जाए. शेख हसीना के खिलाफ नरसंहार की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की तारीख की घोषणा कर दी है. वह अब 17 नवंबर को फैसला सुनाएगी. इसको लेकर भी बांग्लादेश में बवाल और आंदोलन हुए. इसके साथ ही यूनुस सरकार के इस्लामी कट्टरपंथियों के दबाव में आकर म्यूजिक और पीटी टीचरों को नियुक्ति को रोकने का आदेश पारित कर दिया, जिसके जवाब में स्टूडेंट्स सड़कों पर उतर आए.
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