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उबल रहा है ईरान, सड़कों पर प्रोटेस्ट ही प्रोटेस्ट, व्यापारी भी गुस्से में, इस वजह से बंद कर दिया तेहरान बाजार

Iran Protests Tehran Bazar Strikes: ईरान में मुद्रा के तेज अवमूल्यन, बढ़ती महंगाई और विदेशी मुद्रा की कमी ने आम लोगों से लेकर संसद तक बेचैनी बढ़ा दी है. 28 दिसंबर 2025 को तेहरान के ऐतिहासिक बाजार में जब अमेरिकी डॉलर 14.4 लाख तोमान के पार पहुंचा, तो अलादीन मॉल, चारसू और शूश जैसे प्रमुख व्यावसायिक केंद्रों के व्यापारियों ने दुकानें बंद कर हड़ताल शुरू कर दी. इसके अलावा अन्य समूह भी देश भर में हड़ताल कर रहे हैं.

Iran Protests Tehran Bazar Strikes: ईरान इस समय गहरे आर्थिक और राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. मुद्रा के तेज अवमूल्यन, बढ़ती महंगाई और विदेशी मुद्रा की कमी ने आम लोगों से लेकर संसद तक बेचैनी बढ़ा दी है. तेहरान के बाजारों में भड़के हालिया विरोध प्रदर्शन इसी दबाव का संकेत हैं, जहां आर्थिक बदहाली अब सड़कों पर गुस्से के रूप में नजर आने लगी है. रविवार, 28 दिसंबर 2025 को तेहरान के प्रमुख बाजारों में उस वक्त तनाव फैल गया, जब ईरानी मुद्रा रियाल एक ही दिन में 7 प्रतिशत से अधिक गिर गई. अमेरिकी डॉलर का भाव बढ़कर करीब 14.4 लाख रियाल तक पहुंच गया, जिसके चलते राजधानी के खुदरा और थोक बाजारों में कारोबार लगभग पूरी तरह ठप हो गया. गोदामों से अन्य शहरों तक सामान की आवाजाही भी बुरी तरह प्रभावित हुई.

28 दिसंबर 2025 को तेहरान के ऐतिहासिक बाजार में जब अमेरिकी डॉलर 14.4 लाख तोमान के पार पहुंचा, तो अलादीन मॉल, चारसू और शूश जैसे प्रमुख व्यावसायिक केंद्रों के व्यापारियों ने दुकानें बंद कर हड़ताल शुरू कर दी. व्यापारियों का कहना था कि तेज मुद्रा अवमूल्यन के कारण माल दोबारा खरीदना असंभव हो गया है और हर लेनदेन घाटे में बदल चुका है. सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में व्यापारी अपनी दुकानें बंद कर सड़कों पर उतरते दिखाई दिए. वे बाजारों में मार्च करते हुए “बंद करो, बंद करो” और “डरो मत हम सब साथ हैं” जैसे नारे लगा रहे थे. दोपहर तक सुरक्षा बलों के साथ किसी सीधे टकराव की खबर नहीं थी, लेकिन प्रदर्शनकारी आसपास की सड़कों तक फैल गए और सुरक्षा कर्मियों से अपने समर्थन में खड़े होने की अपील करते रहे. बढ़ते किराए और गिरती क्रय-शक्ति ने उन्हें जिस स्थिति में धकेला है, उसे वे सरकार द्वारा थोपी गई जबर्दस्ती दिवालियापन मानते हैं.

ईरान में बढ़ रही महंगाई

पूरे 2025 के दौरान विदेशी मुद्राओं के मुकाबले रियाल की कीमत लगभग आधी रह गई है. इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ा है, क्योंकि ईरान अनाज, दवाइयों और अन्य जरूरी वस्तुओं के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है. हाल के महीनों में कई खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तीन अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इस आर्थिक संकट की सबसे बड़ी मार आम मजदूर वर्ग पर पड़ी है. औसत मासिक वेतन घटकर लगभग 100 डॉलर रह गया है, जो गरीबी रेखा से काफी नीचे है. सरकारी आकलन के मुताबिक 3.5 सदस्यों वाले एक परिवार को बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए कम से कम 450 डॉलर प्रतिमाह चाहिए. नतीजतन, मांस और प्रोटीन से भरपूर दुग्ध उत्पाद आबादी के बड़े हिस्से की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं.

कांगन पेट्रो-रिफाइनरी: वेतन न मिलने से उत्पादन ठप

यह बाजार आंदोलन कई प्रोटेस्ट की एक बानगी है. बीते दिनों में ईरान में कई विरोध प्रदर्शन देखे गए हैं. ncr-iran.org की एक रिपोर्ट के मुताबिक कांगन पेट्रो-रिफाइनरी में वेतन न मिलने से उत्पादन ठप हो गया है. 28 दिसंबर 2025 को दक्षिणी ईरान के कांगन पेट्रो-रिफाइनरी साइट-2 में श्रमिकों ने चार महीने से वेतन न मिलने के विरोध में काम रोक दिया. कर्मचारियों ने फैक्ट्री का प्रवेश द्वार बंद कर दिया और शासन की श्रम नीति को अमानवीय बताया. उनका कहना था कि सरकार उन्हें इंसान नहीं, बल्कि उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तु मानती है.

लोरेस्तान रेलवे आंदोलन: 7,000 नौकरियों का भविष्य अधर में

वहीं लोरेस्तान रेलवे आंदोलन 19 से 28 दिसंबर 2025 तक चला. लोरेस्तान प्रांत में ट्रैवर्स रेलवे कंपनी के तकनीकी कर्मचारियों का आंदोलन 28 दिसंबर को दसवें दिन में पहुंच गया. अजना से तंग-ए-हफ्त रेल लाइन पर काम करने वाले करीब 7,000 कर्मचारी चार साल से नौकरी की अनिश्चितता झेल रहे हैं. सरकार की ओर से केवल आश्वासन मिल रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीयकरण और बकाया भुगतान पर कोई ठोस फैसला नहीं हुआ है.

शूश शुगर फैक्ट्री: महंगाई ने मजदूरों की थाली खाली की

शूश शुगर फैक्ट्री में महंगाई ने मजदूरों की थाली खाली कर रखी है. इन्होंने भी 22 से 28 दिसंबर 2025 तक आंदोलन किया. शूश स्थित मिडल ईस्ट शुगर कंपनी के कर्मचारी सात दिनों से हड़ताल पर हैं. 12 घंटे की शिफ्ट और महीने में 45 दिनों के बराबर काम के बावजूद वेतन इतना कम है कि मौजूदा महंगाई में गुज़ारा संभव नहीं रह गया है. श्रमिकों का कहना है कि उनकी गरिमा टूट चुकी है और वे स्वतंत्र श्रमिक परिषद की मांग कर रहे हैं, जिसे प्रबंधन लगातार रोक रहा है.

पेंशनभोगियों का आक्रोश: सब्सिडी कटौती से जीवन संकट में

इसके अलावा पेंशनभोगियों का आक्रोश भी चरम पर है. उनकी सब्सिडी कटौती से जीवन संकट में आ गया है. तेहरान, केरमानशाह, रश्त और शूश में पेंशनभोगियों ने महंगाई और घटती पेंशन के खिलाफ प्रदर्शन किया. उनका कहना था कि चावल, तेल, मांस और दवाइयों पर सब्सिडी खत्म होने से बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं. कई जगह प्रदर्शनकारियों ने सरकार और संसद को जनता के खिलाफ एक ही तंत्र का हिस्सा बताया.

सरकारी कर्मचारियों का विरोध: व्यवस्था ने अपने ही लोगों को भुलाया

सरकारी कर्मचारियों का विरोध भी इसी दौरान चल रहा है.  राज्य कल्याण संगठन (Behzisti) के कर्मचारियों ने बेहबहान, शिराज और रश्त में प्रदर्शन किया. कर्मचारियों का कहना था कि जिन लोगों पर समाज के सबसे कमजोर वर्ग की देखभाल की जिम्मेदारी है, वही खुद गरीबी में जीने को मजबूर हैं. उनका आरोप है कि सरकार ने अपने कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति पर पूरी तरह आंख मूंद ली है.

खाद्यान्न संकट की चेतावनी: चावल आयातक सड़कों पर

चावल आयातकों खाद्यान्न संकट की चेतावनी भी इसी समय आ रही है. तेहरान में चावल आयातकों ने सेंट्रल बैंक और कृषि मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन कर चेतावनी दी कि एक साल से आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं दी गई है. आयातकों का कहना है कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो देश को बुनियादी खाद्य पदार्थों की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने स्थिति को संभावित अकाल का संकेत बताया.

छात्र आंदोलन: विश्वविद्यालयों की थाली भी विरोध का हथियार

दुनिया भर में जेन-जी आंदोलन 2025 की हाईलाइट रहा. ईरान में भी छात्र आंदोलन विश्वविद्यालयों की थाली भी विरोध का हथियार बन रहा है. तेहरान के ख्वाजे नसीर विश्वविद्यालय और अन्य कैंपसों में छात्रों ने घटिया भोजन और खराब सुविधाओं के खिलाफ विरोध और भूख हड़ताल की. छात्रों ने कैंटीन के भोजन को जमीन पर रखकर प्रदर्शन किया, जो व्यापक आर्थिक संकट का प्रतीक बन गया. यह आंदोलन दिखाता है कि कटौती और महंगाई का असर शिक्षा व्यवस्था तक पहुंच चुका है.

संसद में भी गूंजा आर्थिक तनाव का दर्द

इतना ही नहीं, आर्थिक तनाव की गूंज संसद में भी सुनाई देने लगी है. एक सांसद ने हालात को “खतरनाक मोर्चा” बताते हुए कहा कि वह लोगों के बढ़ते गुस्से से ईश्वर की पनाह मांगते हैं. अगले साल के बजट पर चर्चा के बीच वरिष्ठ अधिकारियों ने विदेशी मुद्रा की गंभीर कमी को खुले तौर पर स्वीकार किया. योजना और बजट संगठन के एक उप प्रमुख ने बताया कि तेल से होने वाली सरकारी आय साल के पहले आठ महीनों में ही समाप्त हो चुकी है. जरूरी आयात और विदेशी मुद्रा जरूरतें पूरी करने के लिए सरकार को राष्ट्रीय विकास कोष से धन निकालना पड़ा है.

संसद की एक अहम बहस में सांसद हुसैन-अली हाजिदेलिगानी ने दावा किया कि तेल बिक्री से हासिल 6.7 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा तेल मंत्रालय से जुड़ी संस्थाओं द्वारा देश में वापस नहीं लाई गई. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मामला नहीं सुलझा तो तेल मंत्री के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती है. साथ ही, इन संस्थाओं से ली गई गारंटियों को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए गए.

ईरान पर अमेरिका का दबाव अब भी हावी

ईरान पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दबाव बना हुआ है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फरवरी 2025 में ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ नीति दोबारा लागू करने की घोषणा की थी. हालांकि अमेरिका ईरान के चीन को तेल निर्यात को पूरी तरह रोक नहीं सका, लेकिन प्रतिबंधों और वैश्विक तेल बाजार में अधिक आपूर्ति के कारण ईरान की आमदनी में भारी गिरावट आई है. वाशिंगटन ने प्रतिबंधों में राहत के बदले यूरेनियम संवर्धन रोकने और क्षेत्रीय सशस्त्र समूहों को समर्थन खत्म करने की मांग की, जिसे ईरान ने खारिज कर दिया.

इजरायल के हमले ने स्थिति और खराब की

यह कूटनीतिक टकराव जून में उस समय चरम पर पहुंच गया, जब इजरायल के बड़े हवाई हमलों के बाद ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले हुए. उस 12 दिन के युद्ध के बाद भी कोई साफ नतीजा सामने नहीं आया. अभी यह साफ नहीं है कि अमेरिका या इजरायल ईरान में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं या नहीं, लेकिन आर्थिक और सैन्य दबाव का संयुक्त असर देश को गहरी आंतरिक अस्थिरता की ओर धकेलता नजर आ रहा है. इस्लामिक रिपब्लिक के कई आलोचकों का मानना है कि लगातार बाहरी दबाव ही किसी बड़े बदलाव का रास्ता खोल सकता है.

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट. करियर की शुरुआत प्रभात खबर के लिए खेल पत्रकारिता से की और एक साल तक कवर किया. इतिहास, राजनीति और विज्ञान में गहरी रुचि ने इंटरनेशनल घटनाक्रम में दिलचस्पी जगाई. अब हर पल बदलते ग्लोबल जियोपोलिटिक्स की खबरों के लिए प्रभात खबर के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

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