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अपनी करेंसी चार शून्य हटा रहा ईरान, संसद ने पास किया कानून, क्या है इसके पीछे का कारण?

Iran to remove 0000 from Currency Rial: ईरानी संसद ने एक इतिहासिक बिल पास किया है, जिसकी वजह से वह अपनी करेंसी से 0000 हटा रहा है. इसके पीछे ईरान की बदहाल अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और इंटरनेशनल सैंक्शंस हैं. लेकिन वह ऐसा कदम क्यों उठा रहा है, आइये जानते हैं.

Iran to remove 0000 from Currency Rial: ईरान ने आखिरकार वो कदम उठा लिया है, जिस पर कई सालों से चर्चा चल रही थी. ईरानी संसद ने एक ऐतिहासिक बिल पास किया है, जिसके तहत अब रियाल (Iranian Rial) से चार शून्य हटाए जाएंगे. संसद में यह प्रस्ताव 144 वोटों के पक्ष में, 108 विरोध में और 3 सदस्यों के अनुपस्थित रहने के साथ पारित हुआ. अब 10,000 पुराने रियाल बराबर होंगे 1 नए रियाल के. सुनने में यह महज एक तकनीकी बदलाव लगता है, लेकिन इसके पीछे है ईरान की बदहाल अर्थव्यवस्था, लगातार बढ़ती महंगाई और अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों की मार. अब बड़ा सवाल यह है कि ईरान ऐसा कदम क्यों उठा रहा है? इससे फायदा क्या होगा? और क्या दुनिया में इससे पहले किसी देश ने ऐसा किया है? अगर किया है, तो क्या वहां हालात बेहतर हुए?

रियाल की गिरावट और महंगाई का कहर

ईरान की करेंसी 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से लगातार गिरावट में है. आज हालत यह है कि एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए करीब 11.5 लाख रियाल देने पड़ते हैं. यानी रोजमर्रा की चीजें खरीदना भी लोगों के लिए मुश्किल काम हो गया है. केवल एक रोटी के लिए भी लाखों के नोट गिनने पड़ते हैं. महंगाई (Inflation) की स्थिति और खराब है. पिछले कई सालों से मुद्रास्फीति 35% से ऊपर बनी हुई है, कई बार यह 40% या 50% तक पहुंच जाती है. 

IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान की आर्थिक हालत बेहद नाजुक है. देश की अर्थव्यवस्था तेल निर्यात पर निर्भर है, लेकिन अमेरिकी पाबंदियों के चलते अब चीन को छोड़कर कोई भी देश उससे तेल नहीं खरीदता. चीन ईरान का लगभग 90 प्रतिशत तेल खरीदता है. विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार, तेल निर्यात में गिरावट से सरकारी राजस्व पर गहरा असर पड़ा और नतीजा यह हुआ कि पिछले चार साल से महंगाई 40% के पार हो गई है.

पुराने कारण, नई मुश्किलें

अगर इतिहास पर नजर डालें तो यह संकट नया नहीं है. 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ही ईरान में महंगाई दर लगातार दो अंकों में बनी रही है. महंगाई दर 10% से नीचे कभी नहीं आई. क्रांति के बाद आयात बढ़ा, लेकिन निर्यात घटता गया, जिससे रियाल का मूल्य लगातार गिरता गया. इसलिए विदेशी मुद्रा की कमी बनी रहती है. 2023 में तो हालत इतनी बिगड़ गई कि रियाल की कीमत में गिरावट (मुद्रा अवमूल्यन) ने मुद्रास्फीति को भी पीछे छोड़ दिया. अमेरिका और यूरोप की आर्थिक पाबंदियों के कारण के कारण ईरान को न तो विदेशी निवेश मिल पा रहा है, न ही वैश्विक व्यापार का लाभ. राजनीतिक अलगाव और आर्थिक दबाव ने मिलकर ईरानी अर्थव्यवस्था का गला घोंट दिया है.

चार शून्य हटाने का मतलब क्या है?

अब सवाल उठता है कि क्या सिर्फ शून्य हटाने से हालात सुधर जाएंगे? ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी IRNA के अनुसार, यह कदम रियाल की वास्तविक कीमत नहीं बदलता, बस लेनदेन को सरल और व्यावहारिक बनाने का प्रयास है. केंद्रीय बैंक को इसके लिए दो साल की तैयारी का समय दिया गया है. इसके बाद तीन साल का संक्रमण काल होगा, जिसमें पुराने और नए दोनों नोट चलेंगे. अब 10,000 पुराने रियाल = 1 नया रियाल माना जाएगा. इसका सीधा फायदा यह होगा कि नोटों की गिनती आसान हो जाएगी, अकाउंटिंग प्रक्रिया सरल होगी और लेनदेन में लगने वाला समय घटेगा. उदाहरण के लिए पहले जहां एक रोटी खरीदने के लिए 10,000 रियाल देने पड़ते थे, अब 1 नया रियाल पर्याप्त होगा. सरल शब्दों में, यह एक तकनीकी और मनोवैज्ञानिक सुधार है, जिससे करेंसी का इस्तेमाल आसान हो जाएगा.

किन देशों ने ऐसा किया और क्या नतीजा मिला?

  • ब्राजील: 1994 में रियाल प्लान लागू किया, जिससे महंगाई पर काबू पाया गया और अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिली.
  • जिम्बाब्वे: 2000 के दशक में मुद्रा से 10 खरब डॉलर तक के नोटों से शून्य हटाए, लेकिन अर्थव्यवस्था ध्वस्त ही रही.
  • तुर्की: 2003 और 2005 में इस तरह का प्रयास किया था. 2005 में उसने अपनी मुद्रा से 6 शून्य हटाकर नया लीरा पेश किया. यह एक सफल उदाहरण माना गया. इससे विश्वास लौटा और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया गया.
  • घाना: 2007 में करेंसी सुधार किया, लेकिन विदेशी निवेश और महंगाई पर मिश्रित असर देखने को मिला.
  • वेनेजुएला: महंगाई काबू से बाहर हुई तो 2018 में 5 शून्य हटाए, फिर 2021 में भी ऐसा किया. लेकिन अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, महंगाई आज भी चरम पर है.

2019 से योजना पर चल रहा था काम

यह योजना सबसे पहले 2019 में सरकार द्वारा प्रस्तावित की गई थी और तीन अलग-अलग सरकारों और संसदीय कार्यकालों में उस पर चर्चा होती रही. कई संशोधनों के बाद, ताजा संस्करण में रियाल को ही आधिकारिक मुद्रा बनाए रखा गया है, जबकि पहले इसे “तोमान” नाम देने का प्रस्ताव था. ईरान के केंद्रीय बैंक के गवर्नर मोहम्मद रज़ा फर्ज़ीन ने कहा कि यह बदलाव ईरानियों के आम चलन के अनुरूप होगा, क्योंकि लोग पहले से ही मूल्य तोमान में बताते हैं, जो 10,000 रियाल के बराबर होता है. नए नियम के तहत, संक्रमण अवधि के बाद सभी वित्तीय देनदारियां नए रियाल में निपटाई जाएंगी. साथ ही, सेंट्रल बैंक को पुराने नोटों और सिक्कों को वापस लेने तथा देश के मौजूदा विदेशी मुद्रा विनिमय ढांचे के तहत विनिमय दरें तय करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है.

नतीजा क्या निकलेगा?

विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम आर्थिक सुधार का समाधान नहीं, बल्कि एक अस्थायी मानसिक राहत है. जब तक उत्पादन, निर्यात, राजनीतिक स्थिरता और बैंकिंग सुधार नहीं होते, सिर्फ शून्य घटाने से न तो मुद्रा मजबूत होगी और न ही लोगों की हालत सुधरेगी. संक्षेप में कहें तो ईरान अब अपनी अर्थव्यवस्था को दिखने में संभला हुआ दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन असली बीमारी वहीं है, जैसे किसी मरीज की बुखार कम करने की दवा तो दे दी गई, पर बीमारी की जड़ अभी भी बाकी है.

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक। वर्तमानः डिजिटल पत्रकार @ प्रभात खबर। इतिहास को समझना, समाज पर लिखना, धर्म को जीना, खेल खेलना, राजनीति देखना, संगीत सुनना और साहित्य पढ़ना, जीवन की हर विधा पसंद है। क्रिकेट से लगाव है, इसलिए खेल पत्रकारिता से जुड़ा हूँ.

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