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समुद्र के बीच ‘मौत का शहर’! जहां कभी 5000 लोग रहते थे, आज कोई नहीं; इस जापानी द्वीप में कदम रखने से भी कांपते हैं लोग

Haunted Hashima Island: जापान का हशिमा द्वीप, जिसे गुनकांजिमा भी कहते हैं, कभी दुनिया का सबसे घना आबादी वाला स्थल था, अब यह खाली और भूतिया है. यहां की खदान, मजदूरों की पीड़ा और टूटती इमारतें पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को खींचती हैं. जानिए क्यों यह द्वीप रहस्य और डर का प्रतीक बना हुआ है.

Haunted Hashima Island: जापान के तट से थोड़ी दूरी पर एक छोटा सा द्वीप है, जो पहली नजर में एक जमे हुए युद्धपोत जैसा लगता है. इसे हशिमा द्वीप या गुनकांजिमा (बटलशिप आइलैंड) कहा जाता है. कभी यह पृथ्वी के सबसे अधिक आबादी वाले इलाकों में से एक था, लेकिन आज यह पूरी तरह खाली और खामोश है. 1959 में यहां 5,000 से ज्यादा लोग रहते थे, लेकिन 1974 में अचानक इसे खाली कर दिया गया, और तब से कोई यहां नहीं रहा. हशिमा की कहानी 1810 में शुरू हुई, जब समुद्र के नीचे कोयले की खोज हुई. 

1890 में मित्सुबिशी कॉरपोरेशन ने इस द्वीप को खरीद लिया और गहरी समुद्री खदान विकसित की. यहां रहने वाले कामगारों की संख्या बढ़ने लगी, इसलिए समुद्र की दीवारें बनाकर जमीन बढ़ाई गई और ऊंची कंक्रीट की इमारतें बनाई गईं. जापान की पहली हाई-राइज कंक्रीट बिल्डिंग भी यहीं बनी थी. इसके चरम समय में, हशिमा में स्कूल, अस्पताल, सिनेमा और स्विमिंग पूल जैसी सुविधाएं थीं. यहां का समाज स्वयं-निर्मित और आत्मनिर्भर था. लेकिन खदान की हालत बेहद खतरनाक थी और समुद्र के नीचे सुरंगों में हादसे आम थे.

Haunted Hashima Island in Hindi: द्वितीय विश्व युद्ध से शुरू हुआ हशिमा का काला अध्याय

1930 से 1945 के बीच, जापान ने हजारों कोरियाई और चीनी मजदूरों को जबरन हशिमा में काम करने के लिए लाया. इन्हें बेहद कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता था. इस कारण द्वीप को ‘नरक द्वीप’ और ‘जेल आइलैंड’ जैसे नाम मिले. इतिहासकारों का अनुमान है कि 1,300 से ज्यादा मजदूर दुर्घटना, थकान, कुपोषण और बीमारी के कारण मर गए. नागासाकी पर परमाणु बम गिरने के बाद भी हशिमा के मजदूरों को राहत कार्यों में लगाया गया, जहां कई लोग विनाशकारी रेडिएशन के संपर्क में आए. यह दौर द्वीप के इतिहास का सबसे दुखद समय माना जाता है.

Haunted Hashima Island Japan in Hindi: 1974 में अचानक खाली होना

1960 के दशक में जापान ने कोयले से पेट्रोलियम की ओर बदलाव किया, जिससे कोयले की मांग घट गई. जनवरी 1974 में हशिमा खदान बंद कर दी गई, और अप्रैल तक लगभग 5,000 लोग रातों-रात द्वीप छोड़कर चले गए. इतनी जल्दी में लोग कई निजी सामान भी छोड़ गए, जो अब भी वहीं हैं. लगभग 30 साल तक यह द्वीप सार्वजनिक रूप से बंद रहा. 2000 में हशिमा की खंडहर जैसी तस्वीरें इंटरनेट पर फैलने लगीं और यह दुनियाभर में चर्चा में आ गया. इसका भयंकर रूप फिल्मकारों को भी आकर्षित करने लगा. जेम्स बॉन्ड की फिल्म Skyfall, थाई हॉरर मूवी Hashima Project और साउथ कोरियन फिल्म The Battleship Island इसी द्वीप की कहानी पर आधारित हैं. 2009 से हशिमा आंशिक रूप से पर्यटकों के लिए खुला, लेकिन केवल गाइडेड टूर के माध्यम से. कई इमारतें अस्थिर हैं और गिरने का खतरा है.

यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज और विवाद

2015 में हशिमा द्वीप को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया. लेकिन दक्षिण कोरिया ने आपत्ति जताई, क्योंकि उनका मानना था कि जापान ने बलपूर्वक मजदूरी के इतिहास को ठीक से स्वीकार नहीं किया. आज हशिमा एक भूतिया और दुखद यादगार के रूप में खड़ा है. पर्यटक और स्थानीय लोग टूटे-फूटे कंक्रीट ब्लॉक्स, जंग लगे सामान और प्राकृतिक आपदाओं से क्षतिग्रस्त इमारतें देखते हैं. कई लोग मानते हैं कि यहाँ उन मजदूरों की आत्माएं भी मौजूद हैं, जिनकी यहां मृत्यु हुई थी. हशिमा द्वीप सिर्फ औद्योगिक महत्व का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह मानव पीड़ा, इतिहास और रहस्य का मिश्रण है. यहां जाने वाले पर्यटक अक्सर डर के कारण द्वीप की गहराई में नहीं जाते. यही कारण है कि हशिमा आज भी रहस्यमयी, डरावना और आकर्षक का केंद्र बना हुआ है.

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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