Donald Trump peace deal Rwanda-DR Congo: दुनिया भर में युद्ध रुकवाने का दावा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दो देशों के बीच शांति करवा दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता में रवांडा और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) के बीच शांति समझौता साइन होने के साथ ही मध्य अफ्रीका में शांति की एक नई संभावना जगी है. 30 साल से जारी हिंसा, लाखों लोगों का विस्थापन और खनिज-संपन्न क्षेत्रों पर कब्जे की लड़ाई के बीच यह समझौता दोनों देशों के लिए एक बड़े मोड़ के रूप में देखा जा रहा है. वाशिंगटन में हुए इस समझौते ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता की उम्मीद बढ़ाई है, बल्कि अमेरिकी कंपनियों के लिए रेयर-अर्थ खनिजों तक रणनीतिक पहुंच का रास्ता भी खोला है. हालांकि रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे और डीआरसी के राष्ट्रपति फेलिक्स त्शीसेकेदी ने समझौते का पालन करने की प्रतिबद्धता जताई, हालांकि दोनों ने आगे के रास्ते को कठिन बताया.
शांति समझौते पर बोले ट्रंप- अफ्रीका के लिए महान दिन
गुरुवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस में रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे और डीआरसी के राष्ट्रपति फेलिक्स त्शीसेकेदी की मेजबानी की. तीनों नेताओं की मौजूदगी में हुए इस समझौते को ट्रंप ने अफ्रीका के लिए महान दिन करार दिया. ट्रंप ने कहा- यह एक अद्भुत दिन है अफ्रीका के लिए, दुनिया के लिए और इन दोनों देशों के लिए महान दिन. इन्हें खुद पर गर्व होना चाहिए. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह समझौता अमेरिकी कंपनियों के लिए मध्य अफ्रीका के रेयर-अर्थ मिनरल्स तक पहुंच का मार्ग खोलेगा. ट्रंप के मुताबिक- उन खूबसूरत धरती में बेहद धन छिपा है… यह एक खूबसूरत धरती है, लेकिन खून से बुरी तरह दागी हुई थी. हम अपनी सबसे बड़ी और बेहतरीन कंपनियों को इन दोनों देशों में भेजेंगे. हम रेयर-अर्थ खनिज और दूसरी संपत्तियां निकालेंगे और उसके लिए भुगतान करेंगे. सभी बहुत पैसा कमाएंगे..
जमीन पर वास्तविकता: समझौते से पहले भी जारी रही हिंसा
समझौते का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि जून में प्रारंभिक संधि पर हस्ताक्षर होने के बावजूद पूर्वी कांगो में जमीन पर हिंसा जारी रही. रवांडा समर्थित एम23 विद्रोही समूह ने हाल ही में गोंमा और बुकावू जैसे कांगो के प्रमुख रणनीतिक शहरों पर कब्जा कर चुके हैं. पूर्वी कांगो सोना, टिन, टंगस्टन और टैंटलम जैसे मूल्यवान खनिजों से भरा हुआ है. साथ ही यह दुनिया का सबसे बड़ा कोबाल्ट उत्पादक और तांबे का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है. यही संसाधन वर्षों से संघर्ष और बाहरी दखल का प्रमुख कारण रहे हैं.
कागामे का संदेश- विफलता की जिम्मेदारी ट्रंप की नहीं, हमारी होगी
रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे ने शांति प्रक्रिया को लेकर दृढ़ रुख दिखाया. उन्होंने साफ कहा कि समझौते के सफल या विफल होने की जिम्मेदारी दोनों देशों की है, न कि अमेरिका की. कागामे ने कहा- अगर यह समझौता विफल होता है, तो इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रपति ट्रंप की नहीं, बल्कि हमारी होगी. आने वाले रास्ते में उतार-चढ़ाव होंगे, लेकिन रवांडा पीछे नहीं हटेगा. मैं आपको भरोसा दिलाता हूं.
डीआरसी के राष्ट्रपति त्शीसेकेदी बोले एक नए और कठिन रास्ते की शुरुआत
डीआरसी के राष्ट्रपति फेलिक्स त्शीसेकेदी ने इस समझौते को एक नए रास्ते की शुरुआत बताते हुए स्वीकार किया कि आगे की राह बेहद चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा- मुझे विश्वास है कि यह दिन एक नए मार्ग की शुरुआत है. हाँ, कठिन और मांग करने वाला मार्ग, लेकिन ऐसा मार्ग जहां शांति सिर्फ एक इच्छा नहीं, बल्कि एक निर्णायक मोड़ साबित होगी.
संघर्ष की जड़ें: रवांडा नरसंहार और उसके बाद का बवाल
पूर्वी कांगो में अस्थिरता की शुरुआत 1994 के रवांडा नरसंहार से मानी जाती है, जिसमें लगभग 10 लाख लोग मारे गए थे. नरसंहार के बाद हुतू मिलिशिया के सैकड़ों सदस्य पूर्वी कांगो भाग गए, जिससे रवांडा की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ीं. वर्षों में रवांडा ने डीआरसी पर शत्रुतापूर्ण समूहों को शरण देने का आरोप लगाया, जबकि डीआरसी ने किगाली पर एम23 जैसे विद्रोही गुटों को समर्थन देने का आरोप लगाया. तीन दशकों से चल रहे इस अविश्वास, संसाधनों की दौड़ और जटिल जातीय समीकरणों ने पूर्वी कांगो को एक स्थायी युद्धक्षेत्र में बदल दिया. अब यह समझौता उस चक्र को तोड़ने की एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखा जा रहा है.
एएनआई के इनपुट के साथ.
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