China ICBMs in silo fields Pentagon reports: अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा एक बार फिर तेज होती दिख रही है. परमाणु हथियारों के मोर्चे पर चीन की बढ़ती गतिविधियों को लेकर वॉशिंगटन की बेचैनी खुलकर सामने आ रही है. इसी कड़ी में पेंटागन की एक नई ड्राफ्ट रिपोर्ट ने चीन के मिसाइल कार्यक्रम को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, पेंटागन की इस प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने मंगोलिया की सीमा के पास मौजूद मिसाइल साइलो क्षेत्रों में 100 से ज्यादा अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM) तैनात कर दी हैं. इसमें ठोस ईंधन से चलने वाली DF-31 ICBM मिसाइलों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी का संकेत दिया गया है.
पेंटागन के दस्तावेज के अनुसार, चीन अपने परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण और विस्तार की दिशा में किसी भी अन्य परमाणु-संपन्न देश से कहीं अधिक तेजी से आगे बढ़ रहा है. मौजूदा समय में चीन के पास अनुमानित तौर पर करीब 600 परमाणु वारहेड हैं. पेंटागन का अनुमान है कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो 2030 तक यह संख्या 1,000 से भी अधिक हो सकती है. हालांकि यह रिपोर्ट अभी अंतिम नहीं है और इसे अमेरिकी सांसदों को सौंपे जाने से पहले इसमें बदलाव हो सकता है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, इन मिसाइलों को तीन अलग-अलग साइलो क्षेत्रों में तैनात किया गया है.
इन तैनाती से नई परमाणु रणनीति की ओर इशारा
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन तीन साइलो क्षेत्रों में DF-31 मिसाइलें तैनात की गई हैं, उनके अस्तित्व की जानकारी पहले से थी, लेकिन वहां सक्रिय और सशस्त्र मिसाइलों की वास्तविक संख्या का सार्वजनिक आकलन पहले नहीं किया गया था. कुल मिलाकर, पेंटागन का मानना है कि चीन के मिसाइल साइलो और सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयास उसकी कहीं अधिक व्यापक और गहराई वाली परमाणु रणनीति की ओर इशारा करते हैं. यह आकलन ऐसे समय सामने आया है, जब अमेरिका में चीन की सैन्य महत्वाकांक्षाओं और उसके रणनीतिक हथियार भंडार के तेजी से विस्तार को लेकर चिंताएं लगातार बढ़ रही हैं.
मिसाइल साइलो क्या है?
मिसाइल साइलो दरअसल जमीन के नीचे बनाए जाने वाले अत्यंत मजबूत और सुरक्षित ठिकाने होते हैं. इनमें लंबी दूरी की बैलिस्टिक या परमाणु मिसाइलों को सीधी स्थिति में रखा जाता है, ताकि जरूरत पड़ते ही उन्हें तुरंत दागा जा सके. इन साइलो का निर्माण मोटे कंक्रीट और स्टील से किया जाता है, जिससे ये दुश्मन के हमलों, यहां तक कि परमाणु हमले को भी झेल सकें. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी देश के पास पहले हमले के बाद भी जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता बनी रहे, जिसे ‘सेकंड स्ट्राइक’ कहा जाता है. इसके अलावा, रणनीति के तहत कई साइलो जानबूझकर खाली रखे जाते हैं, ताकि विरोधी को यह समझ न आ सके कि वास्तव में मिसाइलें किन ठिकानों पर तैनात हैं और वह भ्रम में बना रहे.

हथियार नियंत्रण से दूरी
यह घटनाक्रम चीन के दीर्घकालिक इरादों को लेकर पहले से चली आ रही आशंकाओं को और गहरा करता है, खासकर उस पृष्ठभूमि में जब बीजिंग अमेरिका और अन्य परमाणु शक्तियों के साथ व्यापक हथियार नियंत्रण वार्ताओं से दूरी बनाए हुए है. पेंटागन की रिपोर्ट यह भी बताती है कि बीजिंग फिलहाल उस तरह की हथियार नियंत्रण वार्ताओं में शामिल होने की कोई खास इच्छा नहीं दिखा रहा है, जैसा कि अमेरिकी नेतृत्व चाहता है. इनमें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल हैं, जिन्होंने चीन, रूस और उत्तर कोरिया के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण पर बातचीत की पैरवी की है. रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि बीजिंग की ओर से अधिक व्यापक हथियार नियंत्रण चर्चा की कोई ठोस पहल नजर नहीं आती.
परमाणु क्षमता में तेज इजाफा
दुनिया भर में एक बार फिर से परमाणु रेस बढ़ रही है. जहां अमेरिका और रूस के पास 5000-5000 से ज्यादा परमाणु हथियार हैं, तो चीन के पास इनकी संख्या लगभग 600 है, लेकिन आगे चलकर यह बढ़ भी सकता है. वहीं भारत के पास 180 न्यूक्लियर मिसाइलें हैं, तो पाकिस्तान भी 170 हथियारों से लैस है. ब्रिटेन और फ्रांस भी न्यूक्लियर हथियारों वाले देश हैं. हाल ही में रूस के दोबारा से परमाणु हथियारों की टेस्टिंग के बाद अमेरिका ने भी कुछ टेस्ट किए थे. ऐसे में अगर यही ट्रेंड रहा, तो न्यूक्लियर हथियारों की रेस फिर से शुरू हो सकती है. वैसे भी ईरान बहुत लंबे समय से इस प्रयास में है.
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