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मौत के बाद आइंस्टीन का ब्रेन चुरा ले गया डॉक्टर, किए 240 टुकड़े, करना चाहता था ये काम

Albert Einstein Brain: 1955 में आइंस्टीन के निधन के बाद उनका पोस्टमार्टम कर रहे डॉक्टर उनका ब्रेन निकाल लिया. इस बारे में अस्पताल की तरफ से कहा गया कि विज्ञान से जुड़ा रिसर्च करने के लिए ऐसा किया गया है लेकिन इसकी अनुमति को लेकर कई सवाल भी खड़े किए गए. हालांकि बाद में अगले 40 सालों तक आइंस्टीन के दिमाग को कांच के जारों में भरकर इधर उधर घुमाया जाता रहा, यह सब उनकी इच्छा के खिलाफ था.

Albert Einstein Brain: दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिकों में अल्बर्ट आइंस्टीन का नाम शामिल है. विज्ञान की दुनिया में जो उन्होंने काम किया, उसने सिर्फ फिजिक्स के नियम नहीं बदले लेकिन बल्कि इंसानों की सोच और समझ को भी एक नई दिशा दी. उनका निधन 76 साल की उम्र में 18 अप्रैल 1955 को हुआ. उनकी मौत ने पूरे इतिहास के सबसे प्रभावशाली वैज्ञानिक जीवन में से एक के अंत को दर्शाया. 

अल्बर्ट आइंस्टीन की मौत कैसे हुई? 

आंइस्टीन को सीने में दर्द की शिकायत के बाद प्रिंसटन असेपताल में भर्ती कराया गया था. तड़के सुबह एब्डोमिनल एओर्टिक एन्यूरिज्म फटने से उनकी मौत हो गई. आइंस्टिन ने सर्जरी से इनकार कर दिया था. वह प्राकृतिक मौत चाहते थे और किसी भी तरह अपनी जिंदगी को खींचने की कोशिश नहीं करना चाहते थे. डॉक्टर्स ने बताया कि, आइंस्टीन चाहते थे उनके शरीर का दाह संस्कार किया जाए और उनकी राख को गुप्त तरीके से कहीं भी बिखेर दिया जाए, ताकि कोई भी मूर्ति या स्मारक न बने और मुझे उन्हें किसी भी तरीके से सार्वजनिक श्रद्धा का विषय न बनाया जाए. हालांकि इस सब के बावजुद जो हुआ उस सब ने आइंस्टीन की इच्छाओं और भावनाओं के खिलाफ था.

प्रिसंटन अस्पताल में हुआ पोस्टमार्टम

आइंस्टीन की बॉडी का पोस्टमार्टम प्रिंसटन अस्पताल के चीफ पैथोलॉजिस्ट डॉक्टर थॉमस स्टॉल्ट्ज हार्वे ने किया था. हार्वे न्यूरोलॉजिस्ट या ब्रेन स्पेशलिस्ट नहीं थे, उनकी प्रोफेशनल विशेषज्ञता जनरल पैथोलॉजी में थी, जिसमें बीमारी, चोट और मौत के कारणों की पहचान की जाती है. लेकिन पोस्टमार्टम के समय में हार्वे ने आइंस्टीन का ब्रेन निकाल लिया और दशकों तक उसे अपने पास रखा. हालांकि उस समय आइंस्टीन के परिवार के तरफ से ऐसा करने की अनुमति नहीं मिली थी.

Albert Einstein Brain Stored In A Jar
अल्बर्ट आइंस्टीन के ब्रेन को ग्लास जार में रखा गया था, ( फोटो – एक्स, @geniusgtx )

बाद में अपने इंटरव्यू में हार्वे ने ऐसा करने की अलग-अलग वजहें बताई. उन्होंने कहा, उन्हें लगा कि परिवार के तरफ से पक्का अनुमति मिल गई थी. साथ ही उनके ब्रेन की स्टडी वैज्ञानिक उद्देशयों के लिए किया जाएगा. इसलिए हार्वे ने सोचा कि इसे संभाल कर रखना हमारी जिम्मेदारी है.

कुछ ही दिनों बाद हार्वे ने आइंस्टीन के सबसे बड़े बेटे, हंस अल्बर्ट आइंस्टीन से इस शोध के लिए अनुमति मांगी जहां हंस ने कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दे दी. हंस इस शर्त पर राजी हुए कि कोई भी रिसर्च सिर्फ विज्ञान के हित में की जाएगी और कोई भी नतीजे बड़े और जाने-माने जर्नल्स में पब्लिश किए जाएंगे. हालांकि यह सब आइंस्टीन की इच्छाओं के खिलाफ था. 

Brain Functioning
आइंस्टीन के ब्रेन के 240 टुकड़े किए गए, ( फोटो-एक्स )

हार्वे ने सिर्फ दिमाग ही नहीं निकाला. मीडिया रिपोर्टस् की माने तो उन्होंने आइंस्टीन की आंखे भी निकाल ली और बाद में उनके आई स्पेशलिष्ट हेनरी अब्राम्स को दे दिया, जिसके बाद उनकी आंखे न्यू यॉर्क के एक सेफ लॉकर में रखी गई. इसके बाद यह जानकारी आइंस्टीन के अवशेषों से जुड़ी रहस्यमयी कहानियों का हिस्सा बन गई है. पोस्टमार्टम के कुछ ही महीनों बाद डॉ. हार्वे को प्रिंसटन अस्पताल से निकाल दिया गया. हार्वे ने अस्पताल को आइंस्टीन का दिमाग सौंपने से मना कर दिया गया. 

हंस अल्बर्ट आइंस्टीन ने हार्वे के भरोसे को मान लिया था, लेकिन हॉस्पिटल डायरेक्टर ने नहीं माना. बाद में हार्वे,आइंस्टीन का ब्रेन लेकर प्रिंसटन से बाहर चले गए जिसके बाद कोई व्यवस्थित वैज्ञानिक शोध नहीं हुई बल्कि सालों तक आइंस्टीन का ब्रेन साथ लेकर हर जगह वह घूमता रहा.

ब्रेन को 240 टुकड़ों में बांटा

बाद में हार्वे ने ब्रेन की तस्वीर खिंची, उसका वजन किया और उसे लगभग 240 टुकड़ों में काट दिया और फिर इन सभी टुकड़ों को जार मे रखकर स्टोर कर लिया. उसकी माइक्रोस्कोप स्लाइड तैयार की. बाद में केवल 12 सेट जिन पर लेबल लगे थे, यह नमूनें रिसर्चर्स को भेजे गए और ज्यादातर हिस्से हार्वे ने अपने पास ही रखा. हार्वे ने आइंस्टीन के दिमाग को भी हमेशा अपने पास रखा. जब भी वो काम और नौकरी के सिलसिले में यात्राएं करते थे तब इसे साथ लेकर घूमते थे. इस बीच उन्होंने आइंस्टीन के ब्रेन को लैब जार से लेकर बीयर कूलिंग कंटेनरों में भी रखा. 

आइंस्टीन के ब्रेन पर पहला रिसर्च उनकी मौत के करीब 30 सालों बाद 1985 में पहली बार अखबारों में प्रकाशित हुई. न्यूरोसाइंटिस्ट मैरियन डायमंड के नेतृत्व में की गई रिसर्च में बताया गया कि आइंस्टीन के दिमाग के कुछ हिस्सों में न्यूरॉन्स और ग्लिया सेल्स का अनुपात अलग था. ग्लिया सेल्स न्यूरॉन्स को पोषण देते हैं और उनके काम में मदद करते हैं. साथ ही इस अलग अनुपात उनकी असाधारण सोच से जुड़ा हो सकता है. 

मीडिया ने इसे सनसनीखेज बना दिया, जैसे वैज्ञानिकों ने E = mc² का रहस्य ढूंढ निकाला हो, लेकिन वैज्ञानिक जगत में इस दावे को लेकर काफी सावधानी बरती गई. हालांकि इसके बाद मीडिया ने इसे आइंस्टीन की प्रतिभा का रहस्य बताकर पेश किया. वैज्ञानिकों ने इस पर सवाल खड़े किए और कहा कि सिर्फ एक ब्रेन टेस्टिंग के आधार पर किसी की बुद्धिमता को मापा नहीं जा सकता है.

इसके बाद की कुछ स्टडीज में आइंस्टीन के दिमाग में और भी अंतर पाए गए. साल 2013 में आई एक रिसर्च में बताया गया कि आइंस्टीन का कॉर्पस कॉलोसम (जो दिमाग के बाएं और दाहिने हिस्से को जोड़ता है) कुछ जगहों पर सामान्य से मोटा था, जिससे दोनों हिस्सों के बीच बेहतर तालमेल की संभावना जताई गई. इसके अलावा उनके फ्रंटल और पेराइटल लोब्स में भी कुछ अलग संरचनाएं दिखीं, जो दिमाग को प्लान बनाने, याददास्त और समझ से जुड़ी होती है. 

ब्रेन में मिला ओमेगा साइन नाम का निशान

आइंस्टीन के दिमाग की एक खास बात बताई जाती है कि उनके दाहिने हिस्से में ओमेगा साइन नाम का एक निशान था. ऐसा ही मिलता जुलता निशान कभी कभी बाएं हाथ से काम करने वाले संगीतकारों और म्यूजिशियंस में भी देखा जाता है. आइंस्टीन को भी वायलिन बजाने का बहुत शौक था और वो हमेशा इसे बजाना पसंद भी करते थे. 

वैज्ञानिकों ने कहा कि दिमाग की इन बनावटों को सीधे जीनियस होने से नहीं जोड़कर देखना चाहिए. हर इंसान का दिमाग अलग होता है और आइंस्टीन का दिमाग भी अलग था. उनके दिमाग में पाई जाने वाली ज्यादातर चीजें सामान्य दायरे में आती थीं. खुद थॉमस हार्वे ने 1978 में माना था कि रिसर्च के अनुसार आइंस्टीन का दिमाग उनकी उम्र के एक आम इंसान जैसा ही था. यही कारण है कि वैज्ञानिकों ने नतीजों को जल्दी प्रकाशित नहीं किया.

कूलर में रखे थे ब्रेन के टुकड़े

हालांकि बढ़ते समय के साथ ही ने इस कहानी ने और भी दिलचस्प मोड़ ले लिया. साल 1978 में पत्रकार स्टीवन लेवी को पता चला कि आइंस्टीन का ब्रेन प्रिंसटन अस्पताल से गायब है. हालांकि इसकी खोज करते हुए वो डॉक्टर थॉमस हार्वे तक पहुंचे, जहां लेवी ने ब्रेन की तस्वीरें देखने को कहा तो हार्वे ने तस्वीरें दिखाने की बजाय एक कूलर खोला, जिसमें ग्लास जार में दिमाग के छोटे-छोटे टुकड़े रखे थे. 

ब्रेन के टुकड़ों को भेजा गया म्यूजियम

इस घटना के बाद से लोगों के मन में कई सारी जिज्ञासा आई और सभी ने हार्वे के काम करने के तरीके पर भी सवाल खड़े किए. हालांकि इस सब के बाद आइंस्टीन के ब्रेन के कई हिस्से निजी हाथों से निकलकर म्यूजियम में भेजवा दिया गया. फिलाडेल्फिया के म्यूटर को दिमाग के 46 टुकड़े सौंपे गए जबकि कुछ हिस्सों को नेशनल म्यूजियम ऑफ हेल्थ एंड मेडिसिन भेज दिए गए. और आखिरकार आइंस्टीन का दिमाग किसी व्यक्ति के हाथों में न रहकर म्यूजियम में रखा गया. 

2007 में 94 साल की उम्र में थॉमस हार्वे की मौत हो गई और उनका जीनियस बनने का सपना अधूरा रह गया. आखिरकार जीनियस बनने का कोई रहस्य सामने नहीं आ पाया और आइंस्टीन की प्रतिभा की कोई पक्की जैविक वजह नहीं मिल पाई. 

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Sakshi Badal
Sakshi Badal
नमस्कार! मैं साक्षी बादल, MCU भोपाल से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी कर वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल में इंटर्न के तौर पर काम कर रही हूं, जहां हर दिन अपने लेखन को और बेहतर बनाने और खुद को निखारने का प्रयास करती हूं. मुझे लिखना पसंद है, मैं अपनी कहानियों और शब्दों के जरिए कुछ नया सीखने और लोगों तक पहुंचने की कोशिश करती हूं.

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