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इंडियन मुजाहिदीन को मिल रही है पाकिस्तानी मदद

वाशिंगटन : अमेरिका के एक बौद्धिक संस्थान की नई रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन पाकिस्तान से मिलने वाले सहयोग के कारण ज्यादा घातक है.वुडरॉ विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स की रिपोर्ट (जिहादिस्ट वायलेंस) द इंडियन थ्रेट’ में इस बात को रेखांकित किया गया है कि भारत में जिहादी आंदोलन एक आंतरिक सुरक्षा […]

वाशिंगटन : अमेरिका के एक बौद्धिक संस्थान की नई रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन पाकिस्तान से मिलने वाले सहयोग के कारण ज्यादा घातक है.वुडरॉ विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स की रिपोर्ट (जिहादिस्ट वायलेंस) द इंडियन थ्रेट’ में इस बात को रेखांकित किया गया है कि भारत में जिहादी आंदोलन एक आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा है जिसमें बाहरी आयाम भी जुड़ा है. सौ पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘भारतीय जिहादी आंदोलन का जन्म आंतरिक कारकों, खासतौर पर सांप्रदायिक समस्याओं और बदले की भावना के नतीजतन हुआ, लेकिन यह पहले से ज्यादा घातक है जिसके लिए पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के आतंकवादी संगठनों से मिलने वाली बाहरी मदद जिम्मेदार है.’’

रिपोर्ट को दक्षिण एशिया के सुरक्षा विशेषज्ञ स्टीफन टेंकल ने लिखा है जिसके मुताबिक आईएम के विकेंद्रीकृत नेटवर्क का फिलहाल पाकिस्तान में स्वच्छंद नेतृत्व है लेकिन यह पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात तथा सउदी अरब के बीच गतिविधियां संचालित कर रहा है. रिपोर्ट कहती है, ‘‘बाहरी समर्थन भारतीय उग्रवाद के लिए एक प्रमुख संचालक से ज्यादा उसकी ताकत बढ़ाने वाला है. आईएम को लश्कर-ए-तैयबा से मदद मिलती है लेकिन उसे इसी कमान और नियंत्रण के अधीन नहीं देखा जाना चाहिए. यही बात आईएम को भारत में सक्रिय लश्कर के अन्य सदस्यों और गुटों से अलग करती है.’’

रिपोर्ट जनवरी, 2012 से सितंबर, 2013 तक 20 महीनों की अवधि में किये गये शोध पर आधारित है और इसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में किये गये इंटरव्यू भी शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडियन मुजाहिदीन भारत में सक्रिय इस्लामी आतंकवादी संस्थाओं के बड़े संसार का हिस्सा है जिसके अधिकतर संगठन बाहरी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और बांग्लादेश के हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लाम (हूजी-बी) से जुड़े हुए हैं.रिपोर्ट कहती है कि आईएम को औपचारिक संगठन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसे स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और आपराधिक जगत के बीच में से निकले जिहादी तत्वों के अपेक्षाकृत अव्यवस्थित नेटवर्क के तौर पर देखा जा सकता है.

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