वाशिंगटनः भारत ने 1962 के युद्ध की पराजय के बाद चीनी क्षेत्रों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका को सीआईए के यू-2 जासूसी विमानों में ईधन भरने के लिए अपने एक वायुसैनिक अड्डे के इस्तेमाल की अनुमति दी थी.
गोपनीय सूची से हटाए गए एक दस्तावेज से आज यह जानकारी मिली है. राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार (एनएसए) ने सीआईए से हासिल और हाल में गोपनीय सूची से हटाए गए दस्तावेजों के आधार पर तैयार एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 11 नवंबर 1962 को चीन के साथ लगे सीमावर्ती इलाकों में यू-2 मिशन के विमानों को उड़ान भरने की अनुमति प्रदान की थी. ये दस्तावेज सूचना की आजादी अधिनियम के तहत प्राप्त किए गए हैं.
एनएसए ने सीआईए की 400 पन्नों की रिपोर्ट के आधार पर बताया है कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी तथा भारतीय राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन के बीच 3 जून 1963 को एक बैठक में ओड़िशा में द्वितीय विश्व युद्ध काल के खाली पड़े छारबातिया वायुसैनिक अड्डे के इस्तेमाल पर सहमति बनी थी. लेकिन इस अड्डे में सुधार के लिए भारत को उम्मीदों के विपरीत काफी समय लगा और इसीलिए मिशन को थाइलैंड के ताखली से संचालित किया गया.
रिपोर्ट में 1954 से 1974 के बीच विमानों द्वारा संचालित जासूसी कार्यक्रमों का ब्यौरा दिया गया है जो बताता है कि दस नवंबर 1963 का यू-2 मिशन 11 घंटे 45 मिनट का था और यह यू 2 का सर्वाधिक लंबा मिशन था. इस मिशन के बाद पायलट इतना थक गया था कि परियोजना के प्रबंधकों ने भविष्य में ऐसी उड़ानों को अधिकतम दस घंटों के लिए सीमित कर दिया.
रिपोर्ट कहती है, ‘‘ छारबातिया 1964 के शुरुआत में भी इस्तेमाल के लायक नहीं था , इसलिए 31 मार्च 1964 को डिटैचमैंट-जी ने ताखली से अन्य मिशन शुरु किया. छारबातिया से पहला मिशन 24 मई 1964 तक संचालित नहीं हो सका था. तीन दिन बाद प्रधानमंत्री नेहरु का निधन हो गया तथा आगे के मिशनों को स्थगित कर दिया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ पायलट और विमान छारबातिया से चले गए लेकिन अन्य लोग वहां बने रहे. दिसंबर 1964 में , जब सीमा पर भारत-चीन तनाव बढ़ गया था , डिटैचमैंट-जी छारबातिया लौटा और तीन बेहद सफल मिशनों को अंजाम दिया. ’’ "तब तक हालांकि ताखली डिटैचमैंट-जी के एशियाई अभियानों के लिए मुख्य अड्डा बन गया था और छारबातिया केवल एक अग्रिम अड्डे के तौर पर काम कर रहा था. छारबातिया को जुलाई 1967 में बंद कर दिया गया.’’ सीआईए की रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर 1962 में चीन ने जम्मू कश्मीर तथा नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी ( नेफा ) के पश्चिमी प्रांतों पर भारत के सीमावर्ती बलों पर अचानक बड़ा हमला बोला.‘‘चीनी सेना अपने अभियानों को रोकने से पहले ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तर में भारत की सारी किलेबंदी को ध्वस्त कर चुकी थी. भारत सरकार ने इस पर अमेरिका से सैन्य मदद की अपील की.’’
रिपोर्ट कहती है, ‘‘ इसके बाद जो सुलह समझौता हुआ, उसमें यह स्पष्ट हो गया था कि चीन ने किस हद तक घुसपैठ की इस बारे में भारत के दावों का ठोस मूल्यांकन नहीं किया जा सकता था.’’‘‘इस पर तत्कालीन अमेरिकी राजदूत जान कैनेथ गालब्रैथ ने भारत सरकार को सुझाव दिया कि विवादित क्षेत्रों की अमेरिकी हवाई सर्वक्षेण से दोनों सरकारों को कम्युनिस्ट चीनी घुसपैठ के बारे में अधिक सही तस्वीर प्राप्त होगी.’’