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भारत-अमेरिका के पास संबंध मजबूत करने का ”ऐतिहासिक मौका” : विशेषज्ञ

वाशिंगटन : विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के पास द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का ‘ऐतिहासिक अवसर’ है और इन संबंधों में अमेरिका का प्रयास निर्देशित करने के बजाए प्रभावित करने की ओर होना चाहिए. नेशनल ब्यूरो ऑफ एशियन रिसर्च के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अब्राहम डेनमार्क ने कमेटी ऑन हाउस फॉरेन अफेयर्स की […]

वाशिंगटन : विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के पास द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का ‘ऐतिहासिक अवसर’ है और इन संबंधों में अमेरिका का प्रयास निर्देशित करने के बजाए प्रभावित करने की ओर होना चाहिए. नेशनल ब्यूरो ऑफ एशियन रिसर्च के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अब्राहम डेनमार्क ने कमेटी ऑन हाउस फॉरेन अफेयर्स की एशिया एवं प्रशांत उपसमिति से कहा, ‘भारत और अमेरिका के पास द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावशाली तरीके से मजबूत करने का ऐतिहासिक मौका है.’

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति ओबामा पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्हें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत आमंत्रित किया गया था और वह अपने कार्यकाल में दो बार भारत की यात्रा करने वाले भी पहले राष्ट्रपति हैं. यह अमेरिका के साथ संबंध मजबूत करने के प्रति प्रधानमंत्री मोदी के उत्साह और भारत के साथ एक मजबूत एजेंडा तैयार करने की राष्ट्रपति ओबामा की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’ डेनमार्क ने कहा कि मोदी ने यह स्पष्ट किया है कि वह एशिया की बडी शक्तियों के साथ संबंध मजबूत करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह समझने योग्य है कि भारत का हित चीन और रुस के साथ सकारात्मक एवं रचनात्मक संबंध बनाए रखने में है. इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि मोदी अमेरिका एवं हमारे सहयोगियों के साथ भारत के संबंधों को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समझते हैं.’ डेनमार्क ने कहा कि भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा संबंधी विवाद चल रहा है जिसके कारण पहले ही एक बार युद्ध हो चुका है. ऐसे में चीन के उदय को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की चिंता स्वाभाविक है.

दलाई लामा का दर्जा भी उनके द्विपक्षीय संबंधों में एक संवदेशनशील मुद्दा है. उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा नयी दिल्ली में कई लोग मानते हैं कि चीन के पास पूर्व एशिया पर वर्चस्व स्थापित करने की क्षमता है और इसलिए वे ऐसी नीतियां बना रहे हैं जिनसे भारत की चीन की शक्ति पर नियंत्रण रखने की क्षमता बढ सके. इस संबंध में अमेरिका नयी दिल्ली को एक आकर्षक विकल्प मुहैया कराता है.’

डेनमार्क ने कहा कि साथ ही भारत अमेरिका को निवेश और नयी तकनीक के एक महत्वपूर्ण संभावित स्नेत के रूप में देखता है. साउथईस्ट एशियन स्टडीज स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के सी वी स्टार डिस्टिंगग्विश्ड प्रोफेसर कार्ल डी जैक्सन ने कहा कि 1990 के दशक के मध्य से भारत और अमेरिका में धीरे-धीरे लेकिन निरंतर नजदीकी बढी है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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