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एमडीजी के लक्ष्य हमारी पहुंच में

संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि विश्व के सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों :एमडीजी: को स्थापित करने के 13 वर्ष बाद दुनिया भर के देशों ने 2015 की तय समय सीमा तक गरीबी उन्मूलन के आठ लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बड़े कदम उठाए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लक्ष्यों […]

संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि विश्व के सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों :एमडीजी: को स्थापित करने के 13 वर्ष बाद दुनिया भर के देशों ने 2015 की तय समय सीमा तक गरीबी उन्मूलन के आठ लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बड़े कदम उठाए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सका है, वे अब भी पूरे किए जा सकते हैं लेकिन इसके लिए देशों को अपने प्रयास और तेज करने की जरुरत है.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, ‘‘एमडीजी के लक्ष्य हासिल करने की दिशा में कार्य करते हुए एक दशक से अधिक समय में हमने देखा है कि वैश्विक विकास के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करके सफलता हासिल की जा सकती है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ अब समय आ गया है कि सभी के लिए अधिक न्यायोचित, सुरक्षित और स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के हमारे प्रयासों को तेज किया जाए.’’

वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान विश्व नेताओं ने गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, लिंग समानता, बच्चे और मां के बेहतर स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता, एचआईवी:एड्स और मलेरिया को काबू करने तथा विकास के लिए वैश्विक साझीदारी के लक्ष्य हासिल करने पर सहमति जताई थी.

एमडीजी की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार इसके तहत जिन लक्ष्यों को हासिल किया जा चुका है उनमें अत्यधिक गरीबी में जीवनयापन कर रहे लोगों की संख्या को घटाकर आधा करना और दो अरब से अधिक लोगों को पेयजल की बेहतर सुविधा मुहैया कराना शामिल है.

देशों ने स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में भी बड़े कदम उठाए हैं और वे 2015 तक इन्हें हासिल करने के करीब है.

इसके अलावा कुपोषण का शिकार लोगों की संख्या में कमी आई है और शहरों में झुग्गी बस्तियों में रहने वाली जनसंख्या में भी इसमें कमी देखने को मिली है.

हालांकि मां के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना, शिक्षा की पहुंच बढ़ाना, स्वच्छता और लिंग समानता के क्षेत्र में लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सका है.

विशेष रुप से पर्यावरणीय स्थिरता संबंधी लक्ष्य को हासिल करने में देश बहुत पीछे हैं. कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सजर्न लगातार बढ़ रहा है और आज 1990 की तुलना में इसका 46 प्रतिशत से भी अधिक उत्सजर्न हो रहा है.

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