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विज्ञान : खगोलभौतिकी में नयी खोज सफलता के करीब पहली बार यह संभावना बन रही है कि भारतीय खगोलभौतिकीविद् आकाशगंगाओं और सितारों से आनेवाले संकेतों को पकड़ सकेंगे, वह भी स्वदेशी रेडियो टेलीस्कोप और उपकरणों की मदद से. खगोलभौतिकी के क्षेत्र में यह खोज युगांतरकारी साबित होनेवाली है. पढ़िए एक रिपोर्ट. इस ब्रह्मांड में अभी […]

विज्ञान : खगोलभौतिकी में नयी खोज सफलता के करीब
पहली बार यह संभावना बन रही है कि भारतीय खगोलभौतिकीविद् आकाशगंगाओं और सितारों से आनेवाले संकेतों को पकड़ सकेंगे, वह भी स्वदेशी रेडियो टेलीस्कोप और उपकरणों की मदद से. खगोलभौतिकी के क्षेत्र में यह खोज युगांतरकारी साबित होनेवाली है. पढ़िए एक रिपोर्ट.
इस ब्रह्मांड में अभी भी काफी कुछ ऐसा है, जिसे जानने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक अध्ययन में जुटे हैं. सूरज, चंदा और सितारे आम लोगों के साथ-साथ साइंसदानों को भी लुभाते हैं. दूरस्थ तारों-ग्रहों से क्या कोई संदेश हमारी धरती की ओर आता है, इसे समझने-जानने की कोशिशें भी हो रही हैं. बेंगलुरु स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के 12 सदस्यों का शोध-दल स्वदेश निर्मित रेडियो टेलीस्कोप और अन्य उपकरणों की मदद से उन संकेतों को पकड़ने की कोशिश में लगा है, जो सितारों और आकाशगंगाओं से आ रहे हैं.
भारतीय खगोलभौतिकीविद् इस उम्मीद से भरे हैं कि वो यह खोज करने में कामयाब होंगे. और, तब बिग-बैंग से जुड़े कई अनुत्तरित सवालों के जवाब मिल सकेंगे. खासकर ‘डार्क एज’ के बारे में, जिसके बारे में बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है. इस दल में रवि सुब्रह्मण्यम, एन उदयशंकर, सौरभ सिंह, मयूरी एस राव, श्रीवाणी केएस, बीएस गिरीश, ए रघुनाथन, सोमशेखर आर, दिव्या जे, एस निवेदिता, जिष्णु टी और मगेंद्रन एस शामिल हैं. समुद्रतल से 4800 मीटर की ऊंचाई पर लद्दाख में एक ऑब्जर्वेटरी है. यह दुनिया की सबसे ऊंची ऑब्जर्वेटरी है, जो रात के आकाश का अवलोकन करता है. इसकी डिजाइन और टेेस्टिंग में दो वर्ष लगे हैं. इसी ऑब्जर्वेटरी से मिले पहले दौर के आकलन का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि जल्द ही सितारों और आकाशगंगाओं से आनेवाले संकेतों को पकड़ा जा सकेगा.
इस प्रोजेक्ट का नाम सारस(शेप्ड एंटीना मेजरमेंट ऑफ द बैकग्राउंड रेेडियो स्पेक्ट्रम) है. इसमें एनालॉग से एंटीना के साथ-साथ डिजिटल रिसीवर भी लगा होता है, जो आकाश से डाटा कैप्चर करता है और आगे अध्ययन के लिए इसे रिकार्ड कर लेता है. शोध दल उन संकेतों को पकड़ना चाहता है, जो पहले सितारों और आकाशगंगाओं के निर्माण के समय पैदा हुए थे. वैज्ञानिक इन संकेतों को 21 सीएम सिग्नल्स कहते हैं. वह ये मानते हैं कि इसी सिग्नल्स में कई अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर छिपे हैं. युगों पहले प्रसारित ये संकेत इतने कमजोर हो चुके हैं कि इन्हें पकड़ पाना थोड़ा जटिल है. वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जब इस ब्रह्मांड की उम्र 250-550 मिलियन वर्ष रही होगी, तब ये संकेत नि:सृत हुए होंगे. आज यह 13.7 बिलियन वर्ष का हो गया है.
40 मेगाहर्ट्ज से 200 मेगाहर्ट्ज के बीच के फ्रीक्वेंसी रेंज के संकेेतों की पड़ताल हो रही है. सिग्नल्स की तुलना में कॉन्टैमिनेशंस बहुत ही ज्यादा मजबूत हो सकते हैं. दशकों से इन संकेतों को पकड़नेऔर अध्ययन करने की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें चल रही हैं. मगर अब तक संकेतों को पकड़ा नहीं जा सका है.
लद्दाख में चार रातों के अध्ययन के बाद मिले नतीजों का विश्लेषण किया जा रहा है. इस दल के एक सदस्य सौरभ सिंह ने जानकारी दी कि शुरुआती नतीजे बहुत ही उत्साहवर्द्धक हैं, इसने हमारा हौसला बढ़ाया है, अब इन संकेतों की पड़ताल पास दिख रही है. इस डाटा को तेल अबीब(इसराएल) के विशेषज्ञ प्रोफेेसर रेनान बरकाना के साथ साझा किया जायेगा. उन्होंने यह भी बताया कि हमने अपने उपकरणों को इतनी सूक्ष्मता से और इस तरह से डिजाइन किया है कि इन संकेतों को पकड़ा जा सके. ये उपकरण ऐसे हैं जो सटीक गणना में सक्षम हैं.
डार्क एज क्या है
बिगबैंग के बाद ब्रह्मांड को ठंडा होने, आयन के एटम के रूप में पुनर्संयोजन और प्रकाश की उत्पत्ति में लगभग 400,000 वर्ष लगे हैं. इसी अवधि को ‘डार्क एज’ कहा जाता है. इसी अवधि में सितारों और आकाशगंगाओं से नि:सृत संकेत बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जो हमें ‘डार्क एज’ के बारे में काफी जानकारियां दे सकेंगे. वैज्ञानिक कई वर्षों से इन संकेतों को पकड़ने के प्रयास में लगे हैं. भारत समेत 10 देश एक टेलीस्कोप प्रोजेक्ट में लगे हैं. इसका नाम है स्का(स्क्वेयर किलोमीटर एरे). एक बार यह टेलीस्कोप पूरा हो गया तो दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा संवेदनशील टेेलीस्कोप होगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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