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चौदह साल में पहली बार..

।।पी जोसफ।। ‘अबकी बार मोदी सरकार’ का नारा देकर भाजपा ने केंद्र में सत्ता प्राप्त कर ली. झारखंड की त्रिशंकु सरकार को भी इसी तर्ज पर कुछ जुमला तैयार करने की सूझी. यहां एक नारा तैयार हुआ ‘चौदह साल में पहली बार’. बात भी सही थी. यह मौका भी ऐतिहासिक था कि इस सरकार ने […]

।।पी जोसफ।।

‘अबकी बार मोदी सरकार’ का नारा देकर भाजपा ने केंद्र में सत्ता प्राप्त कर ली. झारखंड की त्रिशंकु सरकार को भी इसी तर्ज पर कुछ जुमला तैयार करने की सूझी. यहां एक नारा तैयार हुआ ‘चौदह साल में पहली बार’. बात भी सही थी. यह मौका भी ऐतिहासिक था कि इस सरकार ने एक वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था. इस नारे के साथ सरकार की कुछ उपलब्धियां भी गिनायी गयी थीं.

इस विषय पर मतभेद हो सकता है कि क्या वास्तव में यह सूची उपलब्धियों की थी या नहीं. उसमें से एक-दो को छोड़ दें, तो बाकी सारी महज घोषणाएं या पुरानी बातें ही थीं. किंतु इस सरकार ने वास्तव में ऐसे कई कार्य किये हैं, जो इस राज्य में पहले कभी नहीं हुए थे. पूर्व में भी यहां गठबंधन की, निर्दलीय नेतृत्व की भी सरकार रही. उक्त समय में भी ऐसे क्रांतिकारी कार्य इस धरती पर नहीं देखे गये. पता नहीं क्यों, सरकार अपनी इन उपलब्धियों को प्रचारित नहीं करना चाहती. पिछले तीन वित्तीय वर्षो में सरकारों की आवाजाही, राष्ट्रपति शासन के बाद भी योजना मद में व्यय में लगातार बढ़ोतरी होती गयी. योजना आकार के साथ व्यय भी बढ़ता गया. वह व्यय कारगर था अथवा नहीं, यह प्रश्न हो सकता है. किंतु आंकड़े यहीं कहते हैं कि व्यय में प्रत्येक वर्ष वृद्धि हुई. विगत वित्तीय वर्ष में प्रथम बार व्यय में वास्तविक ह्रास देखा गया. ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि जैसे मूलभूत क्षेत्रों में विगत वर्षो की तुलना में इस वर्ष कम राशि का व्यय यह स्पष्ट करता है कि सरकार की व्यवस्था पर कितनी पकड़ थी.

भारत सरकार की राशि से संचालित आइएपी (इंटिग्रेटेड एक्शन प्लान) और बीआरजीएफ (बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड) जैसी योजनाओं की जो दुर्गति पिछले वर्ष हुई, वह वास्तव में ऐतिहासिक कही जायेगी. आइएपी में पूरे वर्ष में 510 करोड़ के विरुद्ध मात्र दस करोड़ रुपये प्राप्त हुए. बीआरजीएफ में जहां एक वर्ष में 200 करोड़ से अधिक राशि मिलती थी, वहां मात्र 40 करोड़ मिली यह सब हुआ उपायुक्तों की कार्य दक्षता एवं क्षमता से संभव हुआ. किंतु खोखले दावे करने वाले राज्य की गद्दी संभाल रहे लोगों पर इसका कोई असर नहीं हुआ. किसी उपायुक्त को इसके लिए जवाबदेह नहीं माना गया. वाकई में चौदह वर्षो में पहली बार राज्य ने विकास योजनाओं में व्यय के मामले में हमेशा नीचा पायदान हासिल किया. महत्वपूर्ण फेलोशिप योजनाओं , एआइबीपी, पीएमजीएसवाई एवं निर्मल भारत योजना में पूरे वर्ष में एक भी रुपया प्राप्त नहीं हुआ, और सरकार सचिवों को बदलने में ही व्यस्त रही.

राज्य में मुख्य सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद के लिए भी पदाधिकारी की नियुक्ति नहीं हो सकी. एक व्यवस्था से वर्षो तक दूर रहे पदाधिकारी को एक्टिंग की जवाबदेही दी गयी. उन्होंने भी पूरे जोर-शोर से अपनी भूमिका निभायी. रात-बे रात स्वास्थ्य केंद्रों के निरीक्षण किये, कोयले के भंडार देखे. नक्सली कार्रवाई में भाग लिया. यह अलग बात है कि इन निरीक्षणों के पश्चात किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बस हेलीकॉप्टर का ईंधन काफी खर्च हुआ. चार माह में ना कोई समीक्षा बैठक हुई ना कोई पूछताछ. बस शब्दों के लिए खूब चले. आखिरकार राज्य को नियमित मुख्य सचिव मिल गये. ऐसी अनिश्चित स्थिति तो निर्दलीय मुख्यमंत्री के समय भी नहीं थी. इस सरकार ने और एक परंपरा की शुरुआत की. राज्य के वरीयतम पदों, मुख्य सचिव, विकास आयुक्त, राजस्व पर्षद में रहते हुए भी पदाधिकारियों का विभाग का मोह नहीं समाप्त हुआ. अत: अभी तक इन वरिष्ठ पदों पर पदस्थापित प्रस्तावों पर क्या समीक्षा किसी के द्वारा संभव है? यह कोई भी समझ सकता है.

पदाधिकारियों के स्थानांतरण/ पदस्थापन के मामलों में इस सरकार द्वारा अतुलनीय कार्य किये गये हैं. पुलिस के दारोगा इंस्पेक्टर तक की पदस्थापना एवं थानों का निर्धारण शीर्ष से किया गया. पुलिस मुख्यालय द्वारा मात्र सूची को अधिसूचित किया गया. विधि-व्यवस्था की स्थिति चौपट होती गयी, किंतु सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा. अभी भी पुलिस पदाधिकारियों की प्रोन्नति तक कुछ ने रोक के रखा, ताकि जिला का प्रभार जारी रह सके. ट्रांसफर कहीं और तय होता है और विभागों के प्रधान सचिव दी गयी टिप्पणी पर हस्ताक्षर करते हैं. एक उप सचिव सब जगह ‘आइएएस को औकात दिखा देंगे. कहते हुए शेखी मारते देखे जा रहे हैं. सारे कुशल अधिकारियों को किनारे लगा कर बगैर काम के वेतन देने की व्यवस्था की गयी. वास्तव में चौदह वर्षो में ऐसा नजारा प्रथम बार देखने को मिला कि स्थानांतरण पदस्थापना के निर्णय सरकारी कार्यालय से अरगोड़ा चौक पहुंचने तक बदल जाते हैं.

इस सरकार ने एक और कार्य प्रथम बार किया. विभाग द्वारा फाइनल की गयी धोती-साड़ी की निविदा को बिना किसी उचित कारण के एक शिकायत का हवाला देकर स्वयं रद्द किया गया. एक अच्छी योजना, जिससे गरीबों का कुछ कल्याण हो सकता था, उसकी भी बलि दे दी गयी. आम ग्रामीणों के लिए संचालित अन्य योजनाओं का भी यही हश्र किया गया. गरीब छात्रों की छात्रवृत्ति नहीं बढ़ी, ना वृद्धाओं को पेंशन समय पर मिल सकी. विद्यार्थियों को पुस्तकें बांटने का कार्य संभवत: अगले सत्र में ही हो सकेगा. इंदिरा आवास योजना में योजनाओं की शुरुआत भी नहीं हो सकी.

मनरेगा के व्यय को चौदह वर्षो के न्यूनतम स्तर पर पहुंचाया गया. वास्तव में इतनी विशिष्ट उपलब्धियां चौदह वर्षो तक कभी नहीं हो सकी थी. कृषि विद्यालय द्वारा मंत्री की अनर्गल मांगों को पूरा नहीं करने पर राजभवन के विपत्रों का भुगतान नहीं करने पर बगैर जांच के कुलपति को हटाया गया. राशि की वसूली हेतु आदेश दिये गये. किंतु विधानसभा में अवैध यात्रा-भत्ता लेनेवाले, अवैध रूप से प्रोन्नति लेने वाले कर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. कोयला चोरी की जांच हेतु निगरानी को आदेश मिला. वे कनीय पदाधिकारियों से पूछताछ कर रहे हैं.

जिनके शह पर इनको बार-बार थानों का प्रभार मिला, दागी दारोगाओं को महत्वपूर्ण थाने दिये गये, उन पुलिस अधीक्षकों पर कोई आंच नहीं आयी. जिस निगरानी विभाग द्वारा अभी तक बीज घोटाला, राष्ट्रीय खेल घोटाला में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी, उनके द्वारा भी कोयला चोरी की जांच में अत्यधिक तीव्रता दिखायी गयी. खैर अब बड़े नामों के उजागर होने के भय से यह कथित जांच थी. ‘गो-स्लो’ कर दी गयी है. मात्र कुछ कनीय पदाधिकारियों के विरुद्ध पूर्व के वर्षो के आरोपों के लिए सामान्य सजा देकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के विज्ञापन जरूर प्रकाशित किये गये.

इस सरकार ने एक और ‘प्रथम’ हासिल किया, विधायक निधि की राशि पांच वर्षो में छठी बार जारी की गयी. जहां अन्य महत्वपूर्ण योजनाओं में एसी/डीसी बिल का बहाना बनाकर राशि की निकासी रोक दी जाती है, वहीं विधायक निधि में एक हजार करोड़ के एसी बिल रहते हुए पुन: निकासी की अनुमति दी गयी. और भी ऐसे कई कार्य इस सरकार ने एक ही साल में पहली बार किये. कलम में भी इतनी ताकत नहीं कि उनका वर्णन किया जा सके.

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