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Friday, March 29, 2024

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अब नेतृत्व भी करेंगी महिला सैन्य ऑफिसर!

सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया है. फैसला लागू करने के लिए शीर्ष अदालत ने तीन महीने का समय दिया है. बीते कई वर्षों से महिला अधिकारियों की इस मांग को लेकर अदालती कार्यवाही चल रही थी, जिस पर सरकार की तरफ से शारीरिक […]

सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया है. फैसला लागू करने के लिए शीर्ष अदालत ने तीन महीने का समय दिया है. बीते कई वर्षों से महिला अधिकारियों की इस मांग को लेकर अदालती कार्यवाही चल रही थी, जिस पर सरकार की तरफ से शारीरिक क्षमता की सीमाओं जैसी तमाम तरह की दलीलें भी दी गयीं. महिला सैन्य अधिकारियों के पक्ष में फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मानसिकता बदलने और लैंगिक समानता का भी जिक्र किया. फैसले और इस मामले से जुड़े अहम बिंदु, सेना में महिलाओं की स्थिति आदि पर केंद्रित है इन डेप्थ पेज.

महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन

साल 2003 में पहली बार महिला अधिकारियों द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में यह मामला दाखिल किया गया. उनके पक्ष में 2010 में अदालत ने फैसला भी सुनाया, लेकिन उस फैसले को कभी लागू नहीं किया जा सका. बाद में सरकार द्वारा इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी.

मामले की पृष्ठभूमि

साल 1992 में पहली बार सेना में महिला अधिकारियों को शामिल किया गया. शुरुआत में चुनिंदा स्ट्रीम में ही महिला अधिकारियों को पांच साल के लिए कमीशन दिया गया. इसमें एजुकेशन कॉर्प्स, सिग्नल कॉर्प्स, इंटेलीजेंस कॉर्प्स और इंजीनियर्स कॉर्प्स मुख्य थे. वुमेन स्पेशल एंट्री स्कीम (डब्ल्यूएसईएस) के अंतर्गत भर्ती के लिए प्री कमीशन ट्रेनिंग की अवधि शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत भर्ती पुरुष अभ्यर्थियों से कम होती थी. साल 2006 में डब्ल्यूएसईएस स्कीम को खत्म कर एसएससी स्कीम में महिला अधिकारियों को शामिल किया गया. उन्हें 10 साल का कमीशन दिया गया, जिसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता था. डब्ल्यूएसईएस ऑफिसर को नयी एसएससी स्कीम में शामिल होने का विकल्प भी दिया गया.

शुरू में कुछ स्ट्रीम में जाने की सहूलियत थी, उसमें इन्फेंट्री और आर्म्ड कॉर्प्स शामिल नहीं था. पुरुष एसएससी ऑफिसर के पास 10 साल की सर्विस के बाद स्थायी कमीशन का विकल्प होता था, लेकिन यह विकल्प महिला अधिकारियों के लिए नहीं था. उन्हें कमांड अप्वाइंटमेंट से दूर रखा जाता था. इससे वे सरकारी पेंशन के योग्य नहीं हो पाती थीं, जो ऑफिसर के रूप में 20 साल की सर्विस के बाद शुरू होती थी. नयी स्कीम के तहत 2008 में महिला अधिकारियों के पहले बैच को शामिल किया गया.

सशस्त्र बलों में महिलाओं की स्थिति

वर्तमान में 14 लाख सशस्त्र बलों के 65000 अधिकारी कैडर हैं, जिनमें थलसेना में 1500, वायुसेना में 1600 और नौसेना में 500महिलाएं हैं.

शर्त के साथ स्थायी कमीशन देना खारिज किया अदालत ने

वर्ष 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला आने के नौ साल बाद केंद्र सरकार ने फरवरी 2019 में सेना के 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने की नीति बनाई और अपने निर्णय से उच्चतम न्यायालय को अवगत कराया.

ये शाखाएं हैं सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रानिक्स व मेकनिकल इंजीनियर्स विभाग, आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प्स और खुफिया विभाग के साथ पहले से मौजूद स्थायी कमीशन वाली शाखा जज एडवोकेट जनरल और आर्मी एजुकेशन कॉर्प्स. केंद्र सरकार के इस निर्णय की सर्वोच्च न्यायालय ने सरहाना की है और कहा है कि केंद्र सरकार का यह नीतिगत निर्णय महिला अधिकारियों के समानता के अवसर के अधिकार को मान्यता देता है.

हालांकि, अदालत ने सरकार के इस निणर्य को खारिज कर दिया कि केवल उन्हीं महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार किया जायेगा जिनकी सेवा की अवधि 14 वर्ष से कम है. अदालत ने कहा कि सेना में कार्यरत सभी महिला अधिकारी स्थायी कमीशन के योग्य होंगी. केंद्र सरकार के इस निर्णय पर महिला अधिकारियों ने भी नाखुशी जाहिर की थी और अपने साथ भेदभाव का अरोप लगाया था.

सुप्रीम कोर्ट ने मानसिकता बदलने को कहा

इसी 17 तारीख को सर्वोच्च न्यायालय ने सेना में महिलाओं को पुरुषों की तरह स्थायी कमिशन देने पर फैसला सुनाया. न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि वे सेना में शॉर्ट सर्विस कमिशन के जरिये आनेवाले महिला अधिकारियों को पुरुषों की तरह ही स्थायी कमीशन देना सुनिश्चित करे. न्यायाधीश डी वाइ चंद्रचूड़ और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि सेना की सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिले, चाहे वे कितने भी समय से क्यों न कार्यरत हों. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महिलाओं की क्षमता और उपलब्धियों पर शक किया जाता है जो महिलाओं के साथ-साथ सेना का भी अपमान है.

न्यायालय ने केंद्र से सवाल भी किया कि एक दशक के बाद भी दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश क्यों नहीं लागू किया गया. विदित हो कि इस मामले में खंडपीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के साल 2010 के फैसले को बरकरार रखा है. दो न्यायाधीशों वाली इस खंडपीठ ने अदालत के निर्णय को लागू करने के लिए सरकार को तीन महीने का समय दिया है.

फैसले की महत्वपूर्ण बातें

एसएससी के जरिये सेना में आनेवाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमिशन न देना उनके हक से वंचित करने के समान है.

महिला अधिकारी स्थायी कमिशन की हकदार हैं.

तीन महीने के भीतर उन सभी महिला अधिकारियों को सेना में ‍स्थायी कमीशन दी जाए, जिन्होंने इसका विकल्प चुना है.

मनोवैज्ञानिक सीमाओं और सामाजिक मान्यताओं के आधार पर महिलाओं को समान मौका उपलब्ध न कराना अस्वीकार्य है और यह परेशान करने वाला है. यह सरकार के पूर्वाग्रह को दर्शाता है.

कमांड पोस्ट पर महिलाओं की तैनाती के बारे में सरकार को अपनी मानसिकता बदलनी होगी और सेना में समानता लानी होगी. महिला अधिकारियों की तैनाती कमांड पोस्ट पर होनी चाहिए और इसके लिए सक्षमता को ही आधार बनाया जाना चाहिए. यहां कोई लैंगिक भेदभाव नहीं होना चाहिए. कमांड पोस्ट पर महिलाओं की तैनाती पर प्रतिबंध अतार्किक और समानता के खिलाफ है.

क्या थी सरकार की दलील

महिलाओं को सेना में कमांड पोस्ट नहीं दी जा सकती क्योंकि अपनी शारीरिक क्षमता की सीमाओं और घरेलू दायित्वों की वजह से वे सेना की चुनौतियों और संकटों का सामना नहीं कर पायेंगी.

गर्भावस्था की स्थिति में महिलायें लंबे समय तक काम से दूर रहती हैं.

महिलाओं पर बच्चे और पारिवार का दायित्व होता है, इसलिए महिलाओं के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी.

महिलाओं को सीधे तौर पर युद्धभूमि में नहीं उतारा जाना चाहिए, क्योंकि अगर उन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया तो ये उस महिला, संस्था और पूरी सरकार के लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत तनावपूर्ण होगा.

पुरुष सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पायेंगे क्योंकि सेना में ज्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाके से आते हैं.

लंबी चली कानूनी लड़ाई

सेना में महिला एसएससी अधिकारी को स्थायी कमीशन दिलाने के लिए 2003 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका डाली गयी.

उसी वर्ष एक परिपत्र द्वारा लागू की गयी सेवा के नियमों और शर्तों को चुनौती देते हुए मेजर लीना गौरव द्वारा 16 अक्तूबर, 2006 को एक रिट याचिका दाखिल की गयी, साथ में सेना में स्थायी कमीशन की मांग की गयी.

सितंबर, 2008 में यह कहते हुए आदेश पारित किया कि महिला एसएससी अधिकारियों को जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) विभाग और आर्मी एजुकेशन कॉर्प्स (एईसी) में संभावित स्थायी कमीशन दिया जायेगा. इस आदेश को मेजर संध्या यादव द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में ‘संभावित’ के मुद्दे पर चुनौती दी गयी.

उच्च न्यायालय ने 2003, 2006 और 2008 के मामलों की एक साथ सुनवाई की और 2010 में एक फैसला दिया. इसमें कहा गया कि भारतीय वायुसेना और आर्मी के एसएससी महिला अधिकारियों को पुरुष अधिकारियों की ही तरह स्थायी कमीशन दिया जाये.

सरकार ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, हालांकि उच्च न्यायालय के फैसले पर स्टे नहीं होने के बावजूद रक्षा मंत्रालय ने निर्देशों को लागू नहीं किया.

जारी अदालती कार्यवाही के बीच सरकार ने फरवरी, 2019 में पारित एक आदेश में आठ स्ट्रीम में महिला एसएससी अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की बात कही. हालांकि, उन्हें कमांड नियुक्ति नहीं दी गयी, केवल स्टाफ पोस्ट की सर्विस दी गयी.

सुनवाई के दौरान ही सरकार ने फरवरी, 2019 में कहा कि जिन महिलाओं अधिकारियों की सर्विस 14 साल की हो गयी है, उन्हें स्थायी कमीशन दिया जायेगा. जिन्होंनेंे 14 साल की सर्विस पूरी कर ली है, उन्हें बिना स्थायी कमीशन के 20 वर्ष पूरा करने का मौका मिलेगा और पेंशन के साथ सेवानिवृत्ति स्वीकार की जायेगी. जिनकी सर्विस 20 वर्ष से अधिक होगी, उन्हें पेंशन लाभ के साथ मुक्त कर दिया जायेगा.

तीन वर्षो में शािमल महिला अधिकारी

साल थल सेना नौ सेना वायुसेना

2016 69 44 108

2017 66 42 59

2018 75 29 59

कई देशों में युद्धक भूमिका में शामिल होती हैं महिलाएं

पुरुष एसएससी ऑफिसर, जो इन्फेंट्री, बख्तरबंद कोर और तोपखाने जैसे लड़ाकू यूनिट का हिस्सा बनते हैं, वे उस स्ट्रीम में स्थायी कमीशन के लिए पात्र होते हैं. फाइटिंग आर्म्स में महिला एसएससी अधिकारियों को कमीशन नहीं दिया जाता है. हालांकि, जहां तक युद्धक भूमिका का सवाल है, दुनिया के कई देश महिलाओं को यह मौका देते हैं. इसमें प्रमुख रूप से अमेरिका, इस्राइल, नॉर्थ कोरिया, जर्मनी, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा आदि देश महिलाओं को फ्रंट लाइन कॉम्बैट पोजिशन में रखते हैं. भारतीय सेना महिलाओं को फ्रंट लाइन कॉम्बैट रोल नहीं देती है.

दूसरे विश्व युद्ध में सैनिकों की कमी होने पर बहुत से देशों ने महिलाओं को सेना में शामिल किया, लेकिन केवल सोवियत संघ ने ही उन्हें युद्धभूमि में उतारा था. हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में महिलाओं को युद्धभूमि में तैनात होने की इजाजत नहीं है.

वर्ष 1980 के दशक तक दुनियाभर में महिलाएं सेना में प्रशासनिक और सहायक भूमिकाओं में रहीं, लेकिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हुए हमले के बाद अमरीका और ब्रिटेन ने अफगानिस्तान और इराक में अपनी सेना के साथ महिलाओं की खास टुकड़ी ‘फीमेल एंगेजमेंट टीम’ भेजी.

अमरीका ने औपचारिक रूप से वर्ष 2013 में महिलाओं को युद्धभूमि में जाने की आज्ञा दी.

साल 2016 में ब्रिटेन ने भी महिलाओं को युद्ध लड़ने की इजाजत दी.

नॉर्वे, फिनलैंड और स्वीडन जैसे देशों में भी महिलाएं युद्ध के मैदान में तैनात होती हैं.

फ्रांस में महिलायें, पनडुब्बियों और दंगा-नियंत्रण दल को छोड़कर फ्रांसिसी सेना में सेवा दे सकती हैं.

साल 2018 में स्लोवेनिया ने एक महिला को देश के सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया और ऐसा करनेवाला वह एकमात्र देश बना.

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