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सर्वोच्च न्यायालय का आदेश वास्तविक दावेदारों को प्रभावित नहीं करता
बीते 13 फरवरी 2019 को, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए साल 2008 में दायर रिट याचिका 109 के मामले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जो कि वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत अयोग्य दावेदारों को बेदखल […]
बीते 13 फरवरी 2019 को, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए साल 2008 में दायर रिट याचिका 109 के मामले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जो कि वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत अयोग्य दावेदारों को बेदखल करता है.
इस तरह के अयोग्य व बोगस दावेदार राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों के भीतर वनों के एक विशाल क्षेत्र पर कब्जा रखते हैं, भले ही उनके दावों को सत्यापन और अपील की प्रक्रिया के बाद खारिज कर दिया गया हो. नेचर कंजर्वेशन सोसायटी, टाइगर रिसर्च एंड कंजर्वेशन ट्रस्ट के साथ वाइल्ड लाइफ फर्स्ट इस मामले में याचिकाकर्ता रहा है. इस पूरे मामले को अच्छे से समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मीडिया में बहुत गलतफहमी दिखायी दे रही है.
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और एओआर पीके मनोहर को बड़े विस्तार से सुनने, फर्जी दावों की भयावहता और सत्यापन की कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है. इसमें 17 राज्यों को दिशा-निर्देश दिये गये हैं. इन राज्यों ने खारिज किये गये दावेदारों की संख्या वाले हलफनामे दायर किये थे, जिसके आधार पर 11, 91,327 दावे अयोग्य साबित हुए हैं. इस तरह, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से वन भूमि से केवल अयोग्य दावेदार बेदखल होंगे, वहीं वास्तविक दावेदारों को कोई नुकसान नहीं होगा.
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