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आज भी सपना है समतामूलक समाज का गठन

ग्लैडसन डुंगडुंग 1974 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा किया गया संपूर्ण क्रांति का आह्वान आदिवासी फिलोसोफी से मिलता-जुलता है. संपूर्ण क्रांति एक ऐसे समाज के निमार्ण का आह्वान था जो जातिविहीन, वर्गविहीन एवं समतामूलक हो. आदिवासी समाज जातिविहीन, वर्गविहीन, समतामूलक, स्वायत्तता एवं प्रकृति के साथ सहजीवन वाला समाज है. संपूर्ण क्रांति के सपने को साकार […]

ग्लैडसन डुंगडुंग
1974 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा किया गया संपूर्ण क्रांति का आह्वान आदिवासी फिलोसोफी से मिलता-जुलता है. संपूर्ण क्रांति एक ऐसे समाज के निमार्ण का आह्वान था जो जातिविहीन, वर्गविहीन एवं समतामूलक हो. आदिवासी समाज जातिविहीन, वर्गविहीन, समतामूलक, स्वायत्तता एवं प्रकृति के साथ सहजीवन वाला समाज है. संपूर्ण क्रांति के सपने को साकार करने के लिए युवा जुट गये. लेकिन दुर्भाग्य से यह सपना सिर्फ सत्ता के हस्तांतरण तक सीमित हो गया.
संपूर्ण क्रांति में शामिल पहली पीढ़ी के लोगों ने अपनी-अपनी जातियों से बाहर जाकर तिलक-दहेज के बिना शादी की लेकिन यह स्थायी नहीं रहा. वे फिर से अपनी-अपनी जातियों एवं धर्मों के बेड़ियों में ही जकड़ गये. वे एक समतामूलक समाज के निर्माण में असफल हो गये.
अधिकांश लोग अपने बेटे-बेटियों की शादी अपनी-अपनी जाति में तिलक-दहेज
लेकर ही करते हैं. इसके अलावा अधिकांश लोग राजनीतिक मेंजाकर भ्रष्ट हो गयेड़े वे आदिवासी पहचान से अलग हो गये. उन्होंने अपना कुल/गोत्र लिखना बंद कर दिया. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि संपूर्ण क्रांति के सपने ने दम तोड़ दिया.
एक्टिविस्ट, शोधकर्ता
एवं लेखक, रांची
Prabhat Khabar Digital Desk
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