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मोसुल की जंग और बराक ओबामा

वाशिंगटन: बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये थे, तब अमेरिकी सेना इराक में मौजूद थी. उन्होंने वादा किया था कि वे इराक से अपनी सेना को वापस लायेंगे. लेकिन, अब जबकि ओबामा का दूसरा कार्यकाल भी समाप्त होने को है, एक बार फिर अमेरिका सेना की गतिविधियां मोसुल अभियान के रूप में बढ़ती […]

वाशिंगटन: बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गये थे, तब अमेरिकी सेना इराक में मौजूद थी. उन्होंने वादा किया था कि वे इराक से अपनी सेना को वापस लायेंगे. लेकिन, अब जबकि ओबामा का दूसरा कार्यकाल भी समाप्त होने को है, एक बार फिर अमेरिका सेना की गतिविधियां मोसुल अभियान के रूप में बढ़ती दिखायी दे रही हैं. अमेरिका के लिए यह जंग एक बड़ी परीक्षा है. अगर समय पर यह लड़ाई खत्म हो गयी, तो अमेरिका के आतंक-विरोधी कार्यक्रम के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण साबित होगा. कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि मोसुल के इस जंग में जीत हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति चुनाव में फायदा पहुंचा सकती है.

रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने भी ऐसा ही आरोप लगाया है. मिडिल इस्ट सिक्योरिटी प्रोग्राम के डायरेक्टर इलान गोल्डबर्ग का कहना है कि ओबामा के इस जंग का पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा की गयी सैनिकों की तैनाती से कोई लेना-देना नहीं है. यह एक नयी पहल है, जिसमें इराकी सुरक्षा बलों की मदद के लिए कम संख्या में अमेरिका ने अपने सैनिकों को मोसुल भेजा है.

मोसुल शहर को कब्जे में करने के लिए 2003 में अमेरिका ने तुर्की में अपने बेस कैंप बनाये थे. लेकिन तुर्की अमेरिका के इस फैसले से सहमत नहीं था. इसके बाद अमेरिकी सेना ने मोसुल में अपना बेस कैंप बनाया था और अपने 101वीं एयरबॉर्न डिविजन की तैनाती यहां की थी और अप्रैल, 2003 में मोसुल को अपने कब्जे में ले लिया था.

Prabhat Khabar Digital Desk
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