देश भर की पंचायतों से आये सभी जनप्रतिनिधियों, देश भर के उन सभी ग्रामवासियों को पंचायतृी राज दिवस पर अभिनंदन करता हूं, जो तकनीक के कारण हमसे अभी सीधे जुड़े हुए हैं. साथियों, हमारा देश बहुत बड़ा है, दिल्ली ही देश है, इस भ्रम से हमें बाहर आना चाहिए. इसलिए हमारी कोशिश है कि देश को दिल्ली से बाहर निकाल कर देश के कई इलाकों में ले जाया जाये. इसलिए हम अब देश को जनता जनार्दन के बीच ले जाने का प्रयास कर रहे हैं.
मृदा स्वास्थ्य कार्ड की योजना जब हमें शुरू करनी थी, तो हम राजस्थान गये, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाअो योजना की शुरुआत हमने हरियाणा से की, जहां बालिकाओं की संख्या बालकों से बेहद कम थी. इन प्रयासों के परिणाम दिख रहे हैं, हरियाणा बालक और बालिकाओं की संख्या बराबर करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. सामान्य नागरिकों के लिए जीवन बीमा का आरंभ पश्चिम बंगाल से किया. ग्रामोदय से भारत उदय की पंचायत राज व्यवस्था के इस अभियान का समापन झारखंड की बिरसा मुंडा की धरती से हो, यह हमारी इच्छा थी.
महात्मा गांधी कहा करते थे, भारत गांवों में बसा हुआ है, लेकिन आजादी के इतने सालों बाद हम देखते हैं कि गांव-शहर के बीच खाई बढ़ती चली गयी. यदि बिजली और सड़क की सुविधा शहरों को मिल रही हैं, तो गांवों को भी मिलनी चाहिए या नहीं? हमने बजट में प्रयास किया कि गांवों को अधिक से अधिक संसाधन पहुंचे, पहली बार गांव का किसान जी-जान से कह सकने की स्थिति में है कि यह मेरा बजट है.
14 अप्रैल से 24 अप्रैल तक ग्रामोदय से भारत उदय का कार्यक्रम चला. 14 अप्रैल को बाबा साहेब की जन्मस्थली मध्य प्रदेश के मऊ से इस अभियान का शुभारंभ किया गया. यह अभियान पूरे देश में अलग-अलग विषयों पर फोकस करता हुआ, नये संकल्प करता हुआ चलता रहा. मैं राज्य सरकारों का अभिनंदन करना चाहता हूं जिनके प्रयास से यह संभव हो पाया. राजनेता-अधिकारी इतनी गर्मी भी गांवों में गये, उनका साधुवाद करता हूं. अपने संसाधनों के आधार पर गांव को बढ़ाने का असर नजर आ रहा है.
मैं चाहता हूं कि सभी चुने हुए जनप्रतिनिधि यह संकल्प करें कि अपने पांच साल के कार्यकाल में गांव को कुछ ऐसा देकर जाऊं कि आनेवाली पीढ़ियां याद करें कि ये बढ़िया काम उनके कार्यकाल में हुआ था. सभी जनप्रतिनिधियों के मन में यह संकल्प होना चाहिए कि आनेवाले दिन में सही दिशा में काम करेंगे.
आज हमारे देश में पंचायतों में करीब 30 लाख चुने हुए जनप्रतिनिधि बैठे हैं, जिनमें 40 फीसदी महिलाएं हैं. झारखंड में 50 फीसदी महिला जनप्रतिनिधि हैं, कुछ राज्यों में यह 33 फीसदी है. अब काफी समय बीत चुका है, आज इस दिवस के मौके पर महिला जनप्रतिनिधियों से आग्रह करना चाहता हूं, आपके गांव ने आप पर भरोसा किया है, आप मां हैं, महिला हैं, आप अपुने गांव में कुछ विषयों में नेतृत्व करके परिवर्तन ला सकती हैं. महिलाएं संकल्प कर सकती हैं, क्या हम यह तय कर सकते हैं कि जिस गांव में बैठे हैं, वहां एक भी मां- बेटी को खुले में शौचालय नहीं जाना पड़ेगा. हम संकल्प करें कि हम हर हाल में इस योजना को लागू करके रहेंगे. मैं जानता हूं कि गांव में एक बूढ़ी मां भी यह संकल्प कर ले, तो गांव में हर घर में शौचालय बन जायेगा. इसलिए मैं अपनी चुनी हुई माता – बहनों से कहना चाहता हूं कि आप इस पर ध्यान दें.
स्कूलों में मध्याह्न भोजन की चौकसी करें. सरकार की पाई-पाई का उपयोग बच्चों को अच्छा भोजन में होना चाहिए. निगरानी रखें कि बच्चों को पौष्टिक भोजन मिल रहा है या नहीं. हम संकल्प लें कि किसी बच्चे को कुपोषण का शिकार न होने दें.
हर गांव में साल में 10 से 20 महिलाओं का प्रसव होता है. हम संकल्प लें कि गरीबी रेखा से नीचे जीने वाली महिलाओं के प्रसव काल के दौरान उसकी जिम्मेदारी पूरे गांव की होगी. इसके लिए जन जागृति लाकर नौ महीने तक उस मां को अच्छा आहार मिले यह जिम्मेदारी पूरा गांव उठा सकता है क्या? हमारी माताएं जो प्रसव पीड़ा के कारण कभी खुद मर जाती हैं, कभी बच्चा तो कभी दोनों. उस मां की उम्र क्या होती है, 25 से 27 साल. कितने सपने संजो कर शादी की होगी, कितने अरमान होंगे उसके, पर पहली प्रसव में वह मौत की शरण में चली जाती है. उस परिवार पर क्या बीतती होगी, उस नौजवान की पीड़ा क्या होती होगी, जो उसे ब्याह कर लाया है.
यदि एक मां जनप्रतिनिधि है और उस गांव में प्रसूति के दाैरान कोई महिला मर जाये, यह नहीं हाेना चाहिए. आप प्रसूति की देखभाल करें, नजदीक के अस्पताल में उसका प्रसव हो, जिससे उसकी जान बचने की संभावना ज्यादा होगी. इसके लिए आप कितनी पढ़ी हैं, इसका महत्व नहीं है. जिस तरह आप अपने परिवार को संभालती हैं, उन्हें भी संभाले. इतना अनुभव काफी है.
पहले गांव का सबसे सुखी परिवार सरपंच हुआ करता था. आज वह स्थिति नहीं है. गांवों के पास अपना बजट नहीं था, आज वक्त बदल चुका है. लाखों रुपये हर साल गांवों के पास आ रहे हैं. ग्राम पंचायतों के चुनाव में में प्रतिस्पर्द्धा का मूल यह जो धन आ रहा है, वह भी है. लेकिन यह तय है कि जनप्रतिनिधि उत्तम से उत्तम परिणाम ला सकते हैं.
हमें हमारी पंचायत व्यवस्था को मजबूत बनाना है. मेरा विश्वास है कि देश का भाग्य बदलने के लिए जितना महत्व संसद का है, उतना ही महत्व ग्राम संसद का भी है. ग्राम सभाओं की तारीख पहले से तय हो, उस दिन गांव में उत्सव का माहौल हो. सुबह प्रभात फेरी निकले, दिन में छोटे-मोटे कार्यक्रम हों और फिर शाम में सभा हो. इससे उपस्थिति बढ़ेगी. हम संकल्प करें कि ग्राम सभी में कभी भी गांव की आबादी का 30 फीसदी कम से कम मौजूद रहे.
यदि सफाई का अभियान चलाना है, तो गांव उत्तम उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं. गांव से निकलने वाले कचरे को बाहर खेत में गड्ढे में दबा देते हैं. कचरों का फर्टिलाइजर बनाते हैं. गांव के शिक्षक, जनप्रतिनिधि मिल कर इसे शुरू कर सकते हैं. यदि गांव से उत्तम खाद निकलता है तो वह गांव की आर्थिक स्थिति भी सुधार सकता है.
आप चाहते हैं कि हमारे गांव में सड़क बने, बिजली आये, पर क्या यह जरूरी समझते हैं कि गांव में शिक्षक हों, स्कूल हों. यदि मेरे गांव के बच्चे एक या दो माह में स्कूल जाना बंद कर दे, तो वह हमारी चिंता होती है या नहीं. आज यदि उस बच्चे का स्कूल छूट जाता है तो हम अपने गांव में एक ऐसा नौजवान तैयार कर रहे हैं, जिसका भविष्य अंधकारमय है. बच्चों के मां-बाप भी जागृत होंगे तो शिक्षक की रुचि नहीं भी होगी तो वह लेने लगेगा. गांव जागृत होगा तो उसमें भी सुधार होगा. हम सिर्फ सोचते हैं कि इस साल बजट आया या नहीं, हमें इन सुविधाओं का भी ख्याल रखना होगा. कितने जनप्रतिनिधि हैं जो पल्स पोलियो के अभियान को अपने कंधे पर उठा लेते हैं. हम संकल्प लें कि पांच साल में हमारे गांव में कोई भी ऐसा बच्चा नहीं होगा, जिसे लकवा मार जायेगा. गांव को स्वस्थ रखने के लिए हमें बालकों को स्वस्थ रखना होगा. ऐसे कितने बच्चे छूट गये हैं, उन्हें शामिल करने के लिए अभियान चलायें. यदि जनप्रतिनिधि ठान लें, तो गांव के जीवन में बदलाव तय है.
यदि गांव का किसान परेशान है, तो वहां सभी परेशान हो जाते हैं. क्या ऐसे गांव नहीं हो सकते कि किसान की जितनी भी जमीन होगी, यह सुनिश्चित हो कि एक भी किसान नहीं होगा जिसकी जमीन पर डीप एरिगेशन नहीं हो. जिस गांव का प्रधान सक्रिय होता है, तो सरकार और अधिकारियों को भी वहां काम करने में मजा आता है. अधिकारियों को भी योजनाएं लागू करवानी होती हैं, वे भी योजना वहीं दे देते हैं, जहां आसानी से काम हो जाये. जिसके कारण किसी क्षेत्र की 8 या 10 सक्रिय पंचायतों को ही सारे फायदे पहुंच जा रहे हैं, निष्क्रिय जनप्रतिनिधियों के पंचायतों के पास कुछ नहीं पहुंच रहा. आप सक्रिय बनिये. हमारे यहां पैसे, योजना या दृष्टि की कमी नहीं है, मैं चाहूंगा कि मेरे पंचायतों के भाई- बहन पूरे संकल्पित भाव से काम करें.
पांच साल के लिए पांच कार्यक्रम तय करें. यानी एक साल में एक कार्यक्रम हाथ में लें. पहले साल तय करें कि अपने गांव को ऐसा गांव बनायेंगे, जो हरित ग्राम होगा, इतने पेड़ लगायें कि हर ओर हरियाली हो जाये. दूसरे साल संकल्प लें कि वर्षा के पानी का एक बूंद भी बाहर नहीं जाने देंगे. तीसरे साल ऐसा करें कि गांव का एक भी किसान ऐसा नहीं रह जाये, जिसके पास स्वाइल हेल्थ कार्ड और डीप एरिगेशन की सुविधा न हो. अगले साल संकल्प लें कि एक भी बालक ड्रॉपआउट ना हो, टीकाकरण से एक भी बच्चा बचा न रह जाये. उसके अगले साल संकल्प करें कि गांव को हम डिजिटल इंडिया से जोड़ें, गांवों के खेतों के नीचे से तार गुजरने दें और इसका लाभ गांवों तक पहुंचाएं. संकल्प करें कि एक भी बालक की जन्म के दौरान मृत्यु न हो. अपने गांव को बाल मित्र, बालिका मित्र और दहेज मुक्त गांव बनायें. ऐसे सामाजिक संकल्प ही गांवों को बदल सकते हैं.
गांव का जन्मदिन मनायें. पंचायत राज व्यवस्था एक ढांचा है, लेकिन जब तक जनप्रतिनिधि संकल्प लेकर जी-जान से नहीं जुटते हैं, परिणाम नहीं आयेगा. हमें सोचना होगा कि गांव की सामान्य मानव की आय, उसकी खरीद शक्ति कैसे बढ़े? मनरेगा के पैसे आयेंगे, काम भी मिलेगा, लेकिन काम जो हो, वह ऐसा हो जिससे आधारभूत ढांचा खड़ा हो. हम जल संचय के संसाधनों का विकास करें, नये तालब खोदें, तालाब हैं, तो उसे गहरा करें. पैसे का सही उपयोग ही गांव को बदल सकता है.
इस कार्यक्रम के दौरान जिनको इनाम मिला है, उन सबका हृदय से अभिनंदन. मैं आशा करूंगा कि वे यहीं पर नहीं अटकें, और नयी चीजों पर काम करें. देश-दुनिया के सामने उदाहरण प्रस्तुत करें. हमें चौकसी बढ़ाने की जरूरत है. जब मैंने देश का काम संभाला, तो 18 हजार गांव ऐसे मिले, जहां बिजली के तार भी नहीं पहुंचे. हमने बीड़ा उठाया कि 1000 दिन में यह काम करेंगे. काम हो रहा है, लेकिन यह भी होता है कि कहीं पता चलता है कि सरकार को मालूम है कि वहां बिजली पहुंच गयी है, लेकिन एक पत्रकार बताता है कि वहां तो सिर्फ पोल गड़े हैं. मैं गांववालों से कहता हूं कि आप जागरूक रहें, कोई गलत जानकारी दे रहा है, तो उसे ठीक करें. आप जागरूक रहेंगे, तो मुझे चिंता नहीं करनी होगी. क्या मेरी चिंता का थोड़ा बोझ आप नहीं उठा सकते?
हमारे वैज्ञानिकों का कहना है कि जब कोई मां लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाती है, तो उसके अंदर 400 सिगरेट के बराबर धुआं जाता है. उस मां के स्वास्थ्य का हाल क्या होगा, उसके बच्चे का हाल क्या होगा? हमें उन्हें इससे मुक्ति दिलानी होगी. आनेवाले तीन सालों में पांच करोड़ परिवारों में गैस सिलिंडर पहुंचाना है. इससे गांव के बगल के जंगल बच जायेंगे. हमें भागीदारी के साथ यह काम करना होगा. देश का बड़ा से बड़ा मुखिया गांव के मुखिया से बड़ा नहीं होता. वह गांव के जीवन दर्शन को बदल सकता है. जो सुविधाएं शहर में है, वह गांव में भी मिलनी चाहिए.
हमने हाल ही में इनाम (नेशनल एग्रिकल्चर मार्केट) योजना पर काम शुरू किया है. इसके तहत किसान अपने मोबाइल के जरिये यह तय कर सकता है कि वह अपनी फसल कहां बेच सकता है, उसे किस बाजार में उसकी अच्छी कीमत मिलेगी. हमारी कोशिश है कि हाइवे के साथ-साथ आइ-वे यानी इन्फार्मेशन वेज के साथ जुड़ने की. जो गांव जागरूक होंगे, उन्हें इसका लाभ मिलेगा. आवश्यकता है सहयोग, सक्रियता और सही दिशा में चलने की. गांव चल पड़ा तो देश चल पड़ेगा.
ग्रामोदय से भारत उदय कार्यक्रम का आज समापन हो रहा है, लेकिन हमारे इरादों और संकल्पों का आरंभ हो रहा है. संकल्प लें कि अपने अगले चुनाव तक एक-एक मिनट का उपयोग गांव के ग्रामोदय के लिए करूंगा, तभी यह सपना पूरा होगा. बड़े-बड़े शहरों में उद्योगों के लिए सिंगल विंडो सुना है, किसानों के लिए सिंगल विंडो पहली बार सुना. इस काम के लिए मैं रघुवर दास जी का और झारखंड सरकार का अभिनंदन करता हूं. 40-45 डिग्री तापमान में इतना बड़ा कार्यक्रम के लिए आप सबको बधाई देता हूं. मैं आप सबसे आह्वान करता हूं कि ग्रामोदय का बीड़ा उठा लीजिये, आज से शुरुआत करें, रुकना नहीं है, थकना नहीं है. 2019 में गांधी जी की 150 जयंती वर्ष होगा. उस समय तक गांधी के सपनों को साकार करके दिखायें.
पीएम से मिल कर मां-बेटी गदगद
जमशेदपुर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कार्यक्रम में भाग लेने के बाद स्टेज से नीचे उतरे, इसके बाद वे स्टेडियम के डी-बॉक्स में आकर लोगों से मिलने पहुंचे. वे लोगों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे, इसी बीच अचानक एक बच्ची डी-बॉक्स के भीतर घुस गयी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की इच्छा जताने लगी. उसको देख कर नरेंद्र मोदी भी नहीं रूक सके और सीधे उन्हाेंने उस बच्ची काे बुला लिया. बच्चे को पुचकारा, बच्ची के कान पकड़े. इस बीच बच्ची को देख कर उसकी मां भी आने की कोशिश करने लगी. मां को सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया, तब प्रधानमंत्री ने खुद मां को छोड़ देने की बात कही. बच्ची की मां ने प्रधानमंत्री के पैर छुए और आर्शीवाद लिये.
इस दौरान उसने अपना परिचय रिया जटाकिया के तौर पर दिया. बच्ची ने अपना नाम दरिती बताया. जब प्रधानमंत्री ने टाइटल सुना, तो उनसे पूछा कि क्या आप गुजराती हैं? इसके बाद उन्होंने गुजराती में बातचीत की और कहा कि बच्ची को गुजराती भाषा सिखाती भी हो कि सिर्फ हिंदी और अंगरेजी ही सिखाती हो? इस पर उसने कहा कि वह गुजराती भी जानती है.
दो लाख करोड़ रुपये सीधे पंचायतों को
जमशेदपुर. अपने स्वागत संबोधन में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि गांवों के विकास के लिए बजट बनायी गयी है. अब तक की सरकारों ने गांवों के विकास के लिए कोई काम नहीं किया. अब टुकड़ों में नहीं, बल्कि समेकित तौर पर विकास की धारा को गांवों की ओर मोड़ने की जरूरत है. देश का विकास सिर्फ बड़े उद्योगों और शहरों से नहीं होगा बल्कि लंबे समय तक गांव के विकास की योजनाओं को धरातल पर उतारने से होगा. उन्होंने कहा कि देश में दाे लाख करोड़ रुपये सीधे पंचायतों को भेजा जायेगा. यही नहीं, मनरेगा के तहत इतनी ही राशि केंद्र सरकार पंचायतों को देगी. पैसों की कमी नहीं होगी, लेकिन ग्राम सभाओं को पंचवर्षीय योजना बनाकर काम करना होगा. इसके लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को आगे आना होगा. परिवार की जरूरत के मुताबिक वे योजना बना सकते हैं. किसानों को अगर पानी मिल जाये, तो वे मिट्टी से सोना उगा सकते हैं. जिसके लिए सरकार पानी के लिए ‘वन ड्राॅप मोर क्राॅप’ योजना लायी है, जिसको धरातल पर उतारा जा रहा है. बीरेंद्र सिंह ने कहा कि पहले पंचायत का नीति निर्धारण दिल्ली से होता था, लेकिन प्रधानमंत्री इसे दिल्ली से बाहर लेकर आये. पहले बैंको का सरकारीकरण हुआ था. नरेंद्र मोदी ने ही असल में इसका राष्ट्रीयकरण किया. बैंकों की 50 हजार शाखाएं हैं. 3 करोड़ 40 लाख ही खाते इन बैंकों में थे, जो अब बढ़ कर 21 करोड़ 53 लाख तक पहुंच चुके हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री को वादा किया कि देश में गांवों को जोड़ने के लिए 2019 तक कुल 1 लाख 40 हजार किलोमीटर सड़क बनायी जायेगी. इससे आमदनी दोगुनी हो जायेगी और जीडीपी 3.50 फीसदी तक बढ़ जायेगी.
2017 तक सभी गांव इंटरनेट से जुड़ेंगे
जमशेदपुर. कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि झारखंड सरकार ने भी सभी गांवों में योजना बनाओ अभियान चलाया है. साल 2016 तक सभी पंचायत भवन बन जायेंगे और 2017 तक इंटरनेट से जुड़ जायेंगे. उन्होंने कहा कि पानी की कमी के कारण सरकार इस साल ही तालाबों का निर्माण कर रही है, ताकि गांव का बरसाती पानी गांव में रहे. गांव के विकास से ही पलायन रुकेगा.
14 वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक करीब 6000 करोड़ रुपये झारखंड को चार साल में मिलनेवाले हैं. इसमें से 653 करोड़ रुपये इस साल मिलेंगे, जिससे पंचायतों का आर्थिक विकास संभव हो सकेगा.
उन्होंने बताया कि 2016 तक पंचायतों को अतिरिक्त शक्ति प्रदान की जायेगी, जिसके तहत काम किया जा रहा है. इसके अलावा 2016 तक सारे पंचायत भवन बना लिये जायेंगे. 10 लाख से अधिक योजनाएं बनायी गयीं है. इन सारी योजनाओं को धरातल पर उतारा जायेगा, जिसके लिए काम चल रहा है. मुख्य तौर पर जल संचयन की व्यवस्था की जा रही है. राज्य में दो हजार तालाब और एक लाख डोभा बनाने का काम चल रहा है. केंद्र और राज्य सरकार साथ मिल कर काम कर रही हैं. स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट गांव बनाने पर भी बल दिया जा रहा है, जिसके लिए राज्य में खास तौर पर ध्यान किया जा रहा है.
प्रशासन व पुलिस की तारीफ की
राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रभात खबर से बातचीत में जिला प्रशासन और पुलिस की तारीफ की है. जमशेदपुर के डीसी व एसएसपी की टीम ने बेहतरीन काम किया है. कार्यक्रम सफल बनाने में सहयोगी भूमिका निभायी और विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब दिया.