मनीष पुष्कले, चित्रकार
‘अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से
प्रिय है शीतल पवन, प्रेरणा लेता हूं आंधी से’
राष्ट्रकवि दिनकर की ये पंक्तियां गांधी के प्रति उनके प्रेम को तो व्यक्त करती हैं, साथ ही साहित्य और राजनीति के परस्पर संबंध को भी खोलती हैं. पूर्व के ऐसे अनेकों प्रसंगों को जानकर हम कह सकते हैं कि साहित्य और राजनीति एक दूसरे की प्रेरणा बने हैं, जैसे रामधारी सिंह दिनकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू की निजता में भी आपसी आदर के अलावा परस्पर प्रेरणा का भाव रहा है.
वह प्रसंग भी जगजाहिर है, एक बार जब सीढ़ियों पर लड़खड़ाते नेहरू को संभालते हुए दिनकर ने कहा था कि ‘जब भी राजनीति अपना संतुलन खोती है, कविता ही उसे थामती है.’ प्रेमचंद ने भी कहा था कि साहित्य राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुए चलनेवाली सच्चाई है.
ये प्रसंग तो साहित्य और राजनीति के संबंध के हैं, पर राजनीति से चित्रकारों के जुड़ाव का भी दिलचस्प इतिहास है, जिसके बारे में लोगों को कम ही पता है. चित्रकार नंदलाल बसु और महात्मा गांधी के संबंधों पर तो काफी लिखा भी जा चुका है. संबंधों के इसी उजाले में बसु को भारतीय कलाओं के दृष्टिकोण से हमारे संविधान की पहली प्रति की साज-सज्जा का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य सौंपा गया था. उसी प्रकार मकबूल फिदा हुसैन और डॉ राम मनोहर लोहिया की निकटता रही थी. वे लोहिया ही थे, जिन्होंने हैदराबाद में बद्री विशाल पित्ती के सानिध्य में रूके हुसैन को रामायण और महाभारत चित्रित करने और फिर उन्हें लोकांचल में प्रदर्शित करने की सलाह दी थी.
डॉ लोहिया ने हुसैन से कहा था कि रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के पठन और चित्रण के बिना वे एक चित्रकार की हैसियत से कभी भारतीय लोक की जड़ों से ठीक से नहीं जुड़ सकते. हुसैन और लोहिया का यह प्रसंग मुझे गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले के उस प्रसंग की याद दिलाता है, जिसमें गोखले गांधी को भारतीय लोक से जुड़ने और उसे समझने के लिए भारत-यात्रा का सुझाव देते हैं.
इसी प्रकार चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन का नेहरू और इंदिरा गांधी से आत्मीय संबंध रहा. ग्रुप-1890 की प्रदर्शनी का उद्घाटन नेहरू ने किया था, तो भोपाल स्थित भारत-भवन का उद्घाटन इंदिरा गांधी ने किया. हम जानते हैं कि स्वामीनाथन ने ग्रुप-1890 और भारत भवन- दोनों ही उपक्रमों से हमें हमारे नये अर्थों और गहरे विमर्शों से अवगत कराया था.
भारत भवन से प्रेरित हो कर इंदिरा गांधी ने कहा था कि ऐसा संस्थान देश के हर राज्य में होना चाहिए. आपसी संबंधों की इसी कड़ी में वीपी सिंह और अपर्णा व अजित कौर, इंद्रकुमार गुजराल व सतीश गुजराल, मनमोहन सिंह व मंजीत बावा आदि के नजदीकी जुड़ाव के उदाहारण भी इसलिए दिये जा सकते हैं, क्योंकि यह वह सूची है, जो भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों की राजनीतिक चेतना में कलात्मक नैतिकता की प्राथमिकता को दर्शाती है.
गुलजारीलाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव, देवेगौड़ा जैसे अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों के बारे में कलाकारों से मैत्री के ऐसे उदहारण नहीं मिलते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं कवि थे, इसलिए उनका संबंध मूलतः लेखकों या कवियों तक ही सीमित रहा. राजीव गांधी की व्यक्तिगत रूचि तो चित्रकला में थी, लेकिन संभवतः कलाओं की जैसी गहरी समझ सोनिया गांधी में है, वह उनमें नहीं थी. चंद्रशेखर की कवि कमलेश से गहरी मित्रता थी.
कवि और प्रधानमंत्री की मित्रता का एक अलग, पर अहम उदहारण इंदिरा गांधी और श्रीकांत वर्मा का भी है. हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व शिल्पकार राम सुतार के संबंध को भी इस सूची में रखा जा सकता है. दुनिया के सबसे बड़े शिल्प ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ को बना सकने की शक्ति व प्रेरणा बिना शीर्ष समर्थन के संभव कैसे हो सकती है?
