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दिल्ली चुनाव: ‘हर बार वोट देते हैं लेकिन सरकार को हम दिखाई ही नहीं देते’

<figure> <img alt="वर्षा सिंह और राजीव साहिर" src="https://c.files.bbci.co.uk/11827/production/_110791717_ea1ab7ef-2e63-4f01-8cd5-960db5926f2f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>वर्षा सिंह और राजीव साहिर</figcaption> </figure><p><strong><em>वो हमें नहीं देख सकते, इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है लेकिन हम उन्हें नज़रअंदाज़ करते हैं, ये निश्चित तौर पर हमारी ग़लती है.</em></strong></p><p>वर्षा सिंह, राजीव साहिर, आयुषी शर्मा और प्रशांत रंजन वर्मा से मिलने के बाद ये […]

<figure> <img alt="वर्षा सिंह और राजीव साहिर" src="https://c.files.bbci.co.uk/11827/production/_110791717_ea1ab7ef-2e63-4f01-8cd5-960db5926f2f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>वर्षा सिंह और राजीव साहिर</figcaption> </figure><p><strong><em>वो हमें नहीं देख सकते, इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है लेकिन हम उन्हें नज़रअंदाज़ करते हैं, ये निश्चित तौर पर हमारी ग़लती है.</em></strong></p><p>वर्षा सिंह, राजीव साहिर, आयुषी शर्मा और प्रशांत रंजन वर्मा से मिलने के बाद ये अच्छी तरह अहसास होता है कि कैसे सरकार और समाज न देख सकने वालों को देखकर भी अनदेखा करते हैं.</p><p>अगर कोई दृष्टिबाधित व्यक्ति वोट देने जाता है तो चुनाव की अगली सुबह ही उसकी तस्वीर अख़बारों के पहले पन्ने पर छपती है और सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है.</p><p>इन तस्वीरों को भारतीय लोकतंत्र की असली तस्वीर बताया जाता है मगर अंधेरे में डूबी इन ज़िंदगियों को रोशन करने के लिए कितनी नीतियां बनाई जाती हैं? उनकी मुश्किलों को कम करने के लिए कितने नए रास्ते गढ़े जाते हैं?</p><p>विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक़ पूरी दुनिया में लगभग तीन करोड़ 90 लाख दृष्टिबाधित हैं और उनमें भी सबसे ज़्यादा लोग भारत में हैं. भारत में दृष्टिबाधित लोगों की संख्या डेढ़ करोड़ के करीब है.</p><p>डेढ़ करोड़ के लगभग की इस आबादी में दृष्टिबाधित मतदाताओं की बड़ी संख्या चुनाव के दौरान लोकतंत्र के जश्न में दूसरों की तरह भागीदार बन पाने से वंचित रह जाती है.</p><p>चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार अकेले दिल्ली में कुल 50,473 विकलांग मतदाता हैं.</p><figure> <img alt="वर्षा सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/7FCF/production/_110791723_95ee29d2-a505-49f7-b121-e4a96cde9b31.jpg" height="765" width="1564" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>वर्षा दृष्टिबाधित छात्रों को कंप्यूटर की ट्रेनिंग देती हैं.</figcaption> </figure><h3>’दूसरे जान जाते हैं कि किसे वोट दिया'</h3><p>32 साल की वर्षा सिंह नेशनल असोसिएशन फ़ॉर द ब्लाइंड (NAB) में कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर हैं. वो दिल्ली में अब तक चार-पांच बार वोट दे चुकी हैं और उन्हें हर बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.</p><p>वर्षा आठ फ़रवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी वोट देने जाएंगी लेकिन वो अच्छी तरह जानती हैं घर से पोलिंग बूथ तक का उनका सफ़र आसान नहीं होगा.</p><p>वो याद करती हैं, &quot;पिछले साल लोकसभा चुनाव में जब मैं वोट डालने पहुंची तो मुझे पता चला कि मेरा पोलिंग बूथ दूसरे स्कूल में है और वहां कोई ऐसा वॉलंटियर भी नहीं था जो मेरी मदद करता. सही बूथ तक पहुंचने में मुझे बहुत दिक्कत हुई.&quot;</p><p>हर वोट गोपनीय होता है और किसी व्यक्ति ने किस पार्टी या किस उम्मीदवार को वोट दिया, इसकी जानकारी बाहर नहीं जानी चाहिए. लेकिन दृष्टिबाधित लोगों के मामले में कई बार वोटों की गोपनीयता भंग हो जाती है.</p><p>वर्षा बताती हैं, &quot;अक्सर हमें दूसरा शख़्स ईवीएम तक लेकर जाता है और वोट देने का तरीक़ा समझाता है. कई बार ऐसा होता है कि वो शख़्स देख लेता है कि हम किसे वोट दे रहे हैं. मेरे और मेरे कुछ दोस्तों के साथ भी ऐसा हो चुका है.&quot;</p><p>चुनाव आयोग के मैन्युअल के अनुसार पोलिंग बूथ पर उम्मीदवारों और पार्टियों की जानकारी ब्रेल में भी उपलब्ध होती है लेकिन कई बार लापरवाही की वजह से ये दृष्टिबाधित लोगों तक पहुंचती ही नहीं है.</p><p>वर्षा कहती हैं, &quot;अगर कई दृष्टिबाधित लोग एक समूह में वोट डालने पहुंचते हैं तब तो उन्हें ब्रेल वाली बुकलेट आसानी से मिल जाती है लेकिन अगर कोई अकेले है तो उसे ख़ुद इस बारे में पूछना पड़ता है.&quot;</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43096739?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’मैं विकलांग हूं, वो नहीं, हम लिव-इन रिलेशनशिप में रहे'</a></p><figure> <img alt="राजीव साहिर" src="https://c.files.bbci.co.uk/CDEF/production/_110791725_774781a7-f557-4477-88de-99575d19aefb.jpg" height="887" width="1614" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>राजीव साहिर</figcaption> </figure><h3>’आज तक नहीं मिले ब्रेल वाले वोटर कार्ड'</h3><p>24 वर्षीय राजीव साहिर को भी चुनावों के दौरान कुछ ऐसी ही समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है. राजीव एक परफ़ॉर्मिंग आर्टिस्ट हैं और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को लेकर काफ़ी जागरुक भी.</p><p>वो कहते हैं, &quot;हम कब से सुनते आ रहे हैं कि ब्रेल वाले वोटर आईडी कार्ड मिलेंगे. अब तक नहीं मिले. पोलिंग बूथ पर रैंप और एक्सेसिबल शौचालय भी मुझे कभी नहीं मिले. बूथ तक पहुंचने में जो मुश्किलें होती हैं वो अलग हैं.&quot;</p><p>भारतीय संविधान समानता के अधिकार के तहत विकलांग लोगों को समान सुविधाएं, सेवाएं और मौके दिए जाने की बात कहता है लेकिन क्या वाक़ई ऐसा हो पाता है?</p><p>दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ने वाली आयुषी शर्मा इस सवाल का जवाब ‘नहीं’ में देती हैं.</p><p>आयुषी ग्रेजुएशन फ़ाइनल ईयर (इतिहास) की छात्रा हैं. वो कहती हैं कि चुनावों को एक्सेसिबल बनाने की कोशिशें काबिल-ए-तारीफ़ है मगर एक्सेसिबिलिटी सिर्फ़ एक दिन का मुद्दा नहीं है.</p><figure> <img alt="आयुषी शर्मा" src="https://c.files.bbci.co.uk/12C77/production/_110791967_f0452af9-4e6d-4c42-90ba-1031bdd846ed.jpg" height="768" width="768" /> <footer>Aayushi Sharma</footer> <figcaption>आयुषी शर्मा</figcaption> </figure><p>आयुषी कहती हैं, &quot;पोलिंग बूथ अमूमन स्कूलों में बनाए जाते हैं और बहुत कम स्कूल ऐसे हैं जो एक्सेसिबल हैं. बहुत कम स्कूल ऐसे हैं जिनमें रैंप हैं, एक्सेसिबल टॉयलट्स और अन्य सुविधाएं हैं. इसलिए चुनाव आयोग एक दिन के लिए पूरे इंफ़्रास्ट्रक्चर का कायापलट कर देगा, ऐसा मुमकिन नहीं है.&quot;</p><p>नेशनल असोसिएशन फ़ॉर द ब्लाइंड (NAB) के महासचिव और एक्सेसिबिलिटी एक्सपर्ट प्रशांत रंजन वर्मा के मुताबिक़ निर्वाचन आयोग ने पिछले तीन-चार वर्षों में चुनावों को सुगम बनाने की कोशिशें शुरू की हैं.</p><p>वो कहते हैं, &quot;चुनाव आयोग ने विकलांग समुदाय के लोगों से विचार-विमर्श करने के बाद कुछ सुविधाएं मुहैया कराने का वादा किया और कुछ सुविधाएं देना शुरू भी किया है.&quot;</p><figure> <img alt="प्रशांत रंजन वर्मा" src="https://c.files.bbci.co.uk/17A97/production/_110791969_9d1e7d4f-ed59-4182-9123-a66da12fea2a.jpg" height="896" width="1596" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>प्रशांत रंजन वर्मा, महासिचव (नेशनल असोसिएशन फ़ॉर द ब्लाइंड)</figcaption> </figure><p><strong>चुनाव आयोग </strong><strong>का पक्ष</strong></p><p>भारतीय निर्वाचन आयोग के मुताबिक़ चुनाव और मतदान में सभी नागरिकों की समान भागीदारी के लिए कई कदम उठाए गए हैं.</p><p>चुनाव आयोग की <a href="file:///D:/Downloads/Accessibility%20Report%202019%20-%20PRINT.pdf">एक्सेसिबिलिटी रिपोर्ट 2019, क्रॉसिंग द बैरियर्स </a> के अनुसार दृष्टिबाधित मतदाताओं के लिए ब्रेल लिपि में वोटर आईडी कार्ड और बैलट पेपर, पोलिंग बूथ तक जाने और वापस आने के लिए घर से पिक-ड्रॉप की सुविधा,पोलिंग बूथ पर रैंप और ह्वीलचेयर, सुगम (एक्सेसिबल) टॉयलट, पीने का साफ़ पानी, मेडिकल किट और वॉलंटियर्स की सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं.</p><p>चुनाव सबके लिए सुगम हों, इस मकसद से निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को बक़ायदा प्रशिक्षण भी दिया गया है. हालांकि इसी रिपोर्ट में ये भी स्वीकार किया गया है कि भारतीय चुनावों को सुगम बनाए जाने के लिए अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.</p><p>दिल्ली चुनाव आयोग भी इस बार अपने सोशल मीडिया हैंडल और अभियान में ‘सुगम चुनाव’ पर काफ़ी ज़ोर देता दिख रहा है. मतदाताओं को मुफ़्त पिक-ड्रॉप के लिए एसएमएस और मोबाइल एप के ज़रिए रजिस्टर करने के लिए कहा जा रहा है.</p><p>दिल्ली निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने नाम ज़ाहिर न किए जाने की शर्त पर बीबीसी से कहा, ”दिल्ली में एक भी ऐसा पोलिंग बूथ नहीं है जहां रैंप या एक्सेसिबल टॉयलट न हो. जहां तक बात ब्रेल में वोटर आईडी कार्ड न मिलने की है तो उसके लिए वोटर को आधिकारिक तौर पर बताना होता है कि वो द़ृष्टिबाधित है. अगर वो नहीं बताएगा तो चुनाव आयोग को कैसे पता चलेगा? ब्रेल में बैलेट पेपर भी हर बूथ पर उपलब्ध होता है.”</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-37755988?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’क्या मुझे विकलांग होने का बैज पहनना चाहिए'</a></p><figure> <img alt="मोबाइल फ़ोन में ‘टॉक बैक’ के जरिए अपने मैसेज सुनते राजीव" src="https://c.files.bbci.co.uk/45FF/production/_110791971_e4f8e871-6f87-4d77-8785-8b236e5f26c8.jpg" height="890" width="1616" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>मोबाइल फ़ोन में ‘टॉक बैक’ के जरिए अपने मैसेज सुनते राजीव</figcaption> </figure><h3>’जस की तस रह जाती है असली समस्या'</h3><p>प्रशांत कहते हैं, &quot;चुनाव आयोग ने जिन सुविधाओं की बात की है वो मुख्य तौर पर वोटिंग वाले दिन और पोलिंग बूथ के लिए है, जो अच्छी बात है. मगर, हमारा इंफ़्रास्ट्रक्चर जैसे कि हमारी इमारतें, हमारे स्कूल, हमारे दफ़्तर और हमारा ट्रांसपोर्ट न तो एक्सेसिबल है और न इन्हें एक्सेसिबल बनाए जाने के लिए कुछ किया ही जा रहा है. ऐसे में असली समस्या जस की तस रह जाती है.&quot;</p><p>प्रशांत इस बात से भी इत्तेफ़ाक रखते हैं कि कई बार दृष्टिबाधित लोगों को ग़ुमराह करके अपने मनमाफ़िक पार्टी या प्रत्याशी को वोट डलवा लिया जाता है और उनके वोट का दुरुपयोग किया जाता है.</p><p>वो कहते हैं, &quot;अगर कोई शिक्षित, जागरूक और ब्रेल जानने वाला वोटर है तो वो कह सकता है कि कोई उसके साथ वोट डालने के दौरान नहीं रहेगा. लेकिन बहुत से ब्लाइंड ऐसे भी हैं जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, आज के वक़्त में कइयों को ब्रेल नहीं आती और कई लोग ऐसे भी हैं जो पूरी तरह ब्लाइंड नहीं बल्कि ‘लो विज़न’ वाले हैं. उनके लिए ब्रेल बहुत प्रभावी नहीं होता.&quot;</p><p><a href="https://twitter.com/CeodelhiOffice/status/1219553781999755265">https://twitter.com/CeodelhiOffice/status/1219553781999755265</a></p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>:</strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42292273?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">‘मैं विकलांग हूँ पर सेक्स मेरी भी ज़रूरत है’</a></p><h3>’वोट देने तो ज़रूर जाएंगे…'</h3><p>राजीव पूछते हैं, &quot;मंत्रालयों में कितने दृष्टिबाधित या विकलांग लोग हैं? संसद में कितने दृष्टिबाधित हैं? राजनीति और पॉलिसी मेकिंग में कितने विकलांग हैं?&quot;</p><p>अपने सवाल का जवाब भी राजीव ख़ुद ही देते हैं. वो कहते हैं, &quot;जब महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कोई हमारा प्रतिनिधित्व करने वाला ही नहीं है तो हमारी मांगें उठाएगा कौन? कोई नहीं.&quot;</p><p>मगर इन सारी दिक़्क़तों और शिकायतों के बावजूद वर्षा, राजीव, आयुषी और प्रशांत को उम्मीद है कि आने वाले दिन दृष्टिबाधित और अन्य विकलांग लोगों के लिए अभी के मुक़ाबले कम मुश्किल होंगे.</p><p>प्रशांत रंजन वर्मा कहते हैं, &quot;केंद्र सरकार ने जब एक्सेसिबल इंडिया अभियान शुरू किया था तब हमें बहुत ख़ुशी हुई थी. इसमें बहुत से अच्छे प्रस्ताव और योजनाएं थीं. लेकिन दुख है कि उन योजनाओं को लागू करने में बहुत ढिलाई बरती गई. उम्मीद है, आगे इसमें सुधार होगा.&quot;</p><p>वर्षा का कहना है कि उन्हें चाहे जितनी मुश्किलें झेलनी पड़ें, वो वोट देने तो ज़रूर जाएंगी.</p><p>वो कहती हैं, &quot;वोट देना हमारा हक़ है. ये एक मौका भी है. अगर हम वोट नहीं देंगे तो अपना एक हक़ और मौका खो देंगे.&quot;</p><p><a href="https://twitter.com/AAPDelhi/status/1224645770386628608">https://twitter.com/AAPDelhi/status/1224645770386628608</a></p><p>फ़िलहाल दिल्ली में अगर प्रमुख राजनीतिक दलों के घोषणापत्र पर नज़र डालें तो सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने दृष्टिबाधित या अन्य विकलांग समुदाय के लिए अलग से किसी योजना का ज़िक्र नहीं किया गया है.</p><p>भारतीय जनता पार्टी के <a href="https://drive.google.com/drive/folders/1u4ZIEtIOGUFY1XAf2Pzlm8TNmz_aEI9-?fbclid=IwAR1M3efs-tyFrvJBWTVZDODzUQNFecay6k8PMSKexCE0h1pYze9RAvpoRRM">संकल्प पत्र </a>में ‘दिव्यांगों की पेंशन राशि बढ़ाने’ की बात कही गई है.</p><figure> <img alt="कांग्रेस घोषणापत्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/126A5/production/_110792457_0342bd9b-7788-4ba4-9298-77eb7a0b6b6a.jpg" height="559" width="816" /> <footer>INC</footer> </figure><p>सिर्फ़ कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में विकलांग समुदाय के लिए अलग जगह दी है और कुल 10 योजनाओं का ऐलान किया है.</p><p>पार्टी ने दिल्ली को सुगम बनाने के लिए एक्सेसिबिलिटी ऑडिट का वादा किया है. पार्टी ने अकेले रहने वाले विकलांग लोगों के लिए पैनिक बटन बनाने की योजना और पेंशन बढ़ाने की बात भी कही है.</p><figure> <img alt="वर्षा सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/941F/production/_110791973_7a3d91ab-d844-4450-9a5c-9c89f64f6c7e.jpg" height="748" width="1357" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>ऐसे बर्ताव न करे सरकार…</h3><p>प्रशांत रंजन वर्मा कहते हैं कि कोई फ़ैसला लेने से पहले ऊंचे पदों पर बैठे लोग ऐसे बर्ताव न करें जैसे वो हमें देख ही नहीं सकते और हमारे बारे में सोच ही नहीं सकते.</p><p>राजीव अपनी बात समझाने के लिए यूनान के प्राचीन दार्शनिक प्लेटो का ज़िक्र करते हैं.</p><p>वो कहते हैं, &quot;प्लेटो विकलांग लोगों को नागरिक ही नहीं मानते थे. वो कहते थे कि सभी विकलांगों को समुद्र में फेंक दो. उन्हें उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दो. मेरी सरकार से गुज़ारिश है कि वो प्लेटो की तरह बर्ताव न करे.&quot;</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-45333948?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">विकलांग से रेप और चुभते सवाल भी उसी से</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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