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राम मंदिर ट्रस्ट के एकमात्र दलित सदस्य कौन हैं?

<p>अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यह स्पष्ट कहा था कि ‘राम मंदिर निर्माण के लिए जो ट्रस्ट बनेगा, उसमें बीजेपी की हिस्सेदारी नहीं होगी यानी पार्टी का कोई भी नेता इसमें शामिल नहीं होगा.'</p><p>सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर ट्रस्ट बनाने की मियाद […]

<p>अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यह स्पष्ट कहा था कि ‘राम मंदिर निर्माण के लिए जो ट्रस्ट बनेगा, उसमें बीजेपी की हिस्सेदारी नहीं होगी यानी पार्टी का कोई भी नेता इसमें शामिल नहीं होगा.'</p><p>सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर ट्रस्ट बनाने की मियाद 9 फ़रवरी 2020 तय की थी, जिससे पहले ही बुधवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में मंदिर निर्माण के लिए एक स्वायत्त ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी.</p><p>प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को बताया, &quot;राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट में 15 सदस्य होंगे जिनमें से एक सदस्य हमेशा दलित समाज का रहेगा. सामाजिक सौहार्द को मज़बूत करने वाले ऐसे अभूतपूर्व निर्णय के लिए मैं पीएम मोदी को बधाई देता हूँ.&quot;</p><p>गृह मंत्री अमित शाह ने जिन 15 सदस्यों के बारे में बताया, उनमें से एक दलित सदस्य बिहार के कामेश्वर चौपाल हैं.</p><h1>कौन हैं कामेश्वर चौपाल?</h1><p>कामेश्वर चौपाल बीजेपी के बिहार के वरिष्ठ नेता हैं, उन्होंने आख़िरी बार बीजेपी के टिकट पर साल 2014 में सुपौल लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ा, एक बड़ी वजह यह भी है कि उनके नाम की चर्चा हो रही है.</p><p>हालांकि, कामेश्वर चौपाल बीजेपी में बाद में आए, पहले वो राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े और फिर विश्व हिंदू परिषद के बिहार प्रदेश के संगठन महामंत्री बने.</p><p>कामेश्वर चौपाल का नाम तब पहली बार सुर्ख़ियों में आया, जब 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया था.</p><p>देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हज़ारों साधु-संतों और लाखों कारससेवक इसमें जुटे थे और उस शिलान्यास कार्यक्रम में राम मंदिर निर्माण के लिए पहली शिला कामेश्वर चौपाल ने ही रखी थी. </p><figure> <img alt="बाबरी मस्जिद" src="https://c.files.bbci.co.uk/109F9/production/_110798086_gettyimages-1180745672.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>कामेश्वर चौपाल ने ही पहली ईंट क्यों रखी? </h1><p>बीबीसी से बातचीत में चौपाल कहते हैं, &quot;शिलान्यास के कार्यक्रम से पहले कुंभ का मेला लगा था. उसी मेले में साधु-संतों और धर्मगुरुओं ने मिलकर तय किया था कि किसी दलित समुदाय के आदमी से ही शिलान्यास कराया जाएगा. मैं उस कार्यक्रम में बतौर कारसेवक तो मौजूद था ही, इसके अलावा विश्व हिंदू परिषद का बिहार प्रदेश संगठन मंत्री होने के नाते भी मौजूद था. संयोगवश धर्मगुरुओं ने अपने पहले के निर्णय पर विचार करते हुए मुझे ही पहली ईंट रखने के लिए आमंत्रित किया.&quot;</p><p>कामेश्वर चौपाल बताते हैं कि वो 1984 में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े. उसी साल राम मंदिर निर्माण के लिए वीएचपी की तरफ़ से दिल्ली के विज्ञान भवन में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें सैकड़ों संगठनों के प्रतिनिधि और धर्मगुरु शामिल हुए थे. चौपाल भी उस सम्मेलन में बिहार की तरफ़ से भाग लेने पहुंचे थे. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50630710?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अयोध्या में मंदिर के लिए श्रीराम जन्मभूमि न्यास के पास कितनी रकम?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51382734?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मोदी ने संसद में की राम मंदिर ट्रस्ट की घोषणा</a></li> </ul><p>वो कहते हैं, &quot; उस सम्मेलन में ये फ़ैसला लिया गया कि राम मंदिर निर्माण के लिए एक जनजागरण अभियान चलाया जाए. एक कमिटी बनी जिसके अध्यक्ष गोरक्षापीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत के. अवैद्य नाथ बने. जनजागरण की शुरुआत मिथिलांचल से हुई. इसका कारण था कि पहले लोगों के मन में यह बात आयी कि सीता राम की शक्ति हैं इसलिए उनकी जन्मभूमि जनकपुर से रथ निकाला जाए.&quot; </p><p>&quot;राम जन्मभूमि संघर्ष समिति पूरे देश में जनजागरण कार्यक्रम आयोजित करती थी. पहला संघर्ष था राम जानकी यात्रा. उस यात्रा का मैं प्रभारी था. और उसी यात्रा का परिणाम हुआ कि 1986 में एक फ़रवरी को राम जन्मभूमि का ताला खुला. हालांकि ताला कोर्ट के आदेश पर खुला था पर इसमें हमारी यात्रा का बहुत प्रभाव पड़ा था. </p><h1>आडवाणी से अलग थी वीएचपी की यात्रा</h1><p>राम जन्मभूमि आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा का भी बहुत जिक्र होता है जिसे लालू यादव की तत्कालीन बिहार सरकार के आदेश पर पटना में रोक दिया गया था. लेकिन आडवाणी की रथ यात्रा और वीएचपी की रथ यात्रा अलग-अलग थी. </p><p>चौपाल बताते हैं, &quot;आडवाणी जी की रथ यात्रा शिलान्यास कार्यक्रम के बाद शुरू हुई थी. उसके पहले हम लोग (वीएचपी) राम जानकी यात्रा के ज़रिए कई रथ यात्राएं निकाल चुके थे. आडवाणी जी ने दिल्ली के पालम से रथ यात्रा की शुरुआत हम लोगों के आंदोलन का साथ देने के लिए की थी. उड़ीसा के रास्ते बिहार पहुंचे थे. उस वक्त मैं वीएचपी का प्रदेश संगठन मंत्री था, इस नाते आडवाणी जी के साथ समस्तीपुर तक रहा भी.&quot; </p><p>कामेश्वर चौपाल मूल रूप से बिहार के सुपौल ज़िले के कमरैल गांव के निवासी हैं. यह कोसी का इलाक़ा है. </p><p>वो कहते हैं, &quot;जब मैं बच्चा था तब हमारा घर भागलपुर ज़िले में पड़ता था. फिर सहरसा ज़िले में हुआ और अब सुपौल ज़िले में माना जाता है. लेकिन हमारा इलाक़ा वो इलाक़ा है जो हर साल कोसी का तांडव झेलता है.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50359244?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">के. परासरन: जिनके घर के पते पर है श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51395859?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों को कितना जानते हैं आप?</a></li> </ul><h1>कामेश्वर चौपाल की शिक्षा-दीक्षा</h1><p>24 अप्रैल 1956 में जन्मे कामेश्वर चौपाल ने जेएन कॉलेज मधुबनी से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद मिथिला विवि दरभंगा से 1985 में एमए की डिग्री ली है.</p><p>बिहार में चौपाल जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में आती है. पान और खतवा इसकी दो उप-जातियां भी हैं. आमतौर पर ये पिछड़े और ग़रीब लोग माने जाते हैं. </p><p>कामेश्वर ख़ुद कहते हैं, &quot;बचपन बहुत अभावों में बीता. कोसी के कहर से हर साल हम लोग बिखर जाते थे. किसी तरह बड़ा हुआ. पिता धर्मपरायण थे. हमारा परिवार पहले भी वैष्णव था, आज भी वैष्णव है.&quot;</p><p>राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने को लेकर कामेश्वर कहते हैं, &quot;हम लोग मिथिला के लोग है. हमारे अंदर बचपन से ही ये भाव आ जाता है कि भले ही संसार के लिए राम भगवान हों, मगर हमारे लिए लिए तो वो पाहुन (दामाद) ही हैं. मेरी मां रोज़ सुबह-शाम अपनी मातृभाषा में राम के ये गीत गुनगुनाया करती थीं. फिर छात्र जीवन में संघ से जुड़ गए. इस तरह परिवार से लेकर विद्यालय तक हर जगह हिंदुत्व और हिंदू संस्कृति के माहौल में ही बड़ा होते हुए मैं इस आंदोलन से जुड़ गया.&quot;</p><p>राम मंदिर निर्माण के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाए गए ट्रस्ट को लेकर नाराज़गी भी सामने आने लगी है. उत्तर प्रदेश से हमारे सहयोगी समीरात्मज मिश्र बताते हैं कि मंहत परमहंसदास धरने पर बैठ गए हैं. संतों की मांग है कि मंदिर आंदोलन से जुड़े संतों को भी ट्रस्ट में जगह दी जाए. </p><h1>ट्रस्ट में शामिल होने पर क्या कहते हैं चौपाल?</h1><p>ट्रस्ट में बतौर एक दलित सदस्य चौपाल अपने शामिल होने पर कहते हैं, &quot;देश की आबादी डेढ़ अरब से ज़्यादा है. हज़ारों जातियां हैं. अगर जाति के आधार से सबको भागीदारी देनी होगी तब तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरे ख़याल से मोदी सरकार ने ट्रस्ट में उन्हें ही शामिल किया है जिन्हें संत परंपरा और जिनको हिंदू धर्म और हिंदुत्व में गहरा अनुराग है.&quot;</p><p>वो आगे कहते हैं, &quot;बीजेपी का संकल्प भी है कि हम सबको साथ लेकर सबका विकास करेंगे. और मेरे शामिल होने का मतलब केवल दलित समुदाय से होना ही नहीं लगाया जाना चाहिए. हम बहुत प्रारंभ से इसस जुड़े थे. मेरी महात्वाकांक्षा थी कि जिसका शिलान्यास किया हो, वो मंदिर मेरे आंखो के सामने बनकर खड़ा हो जाए. ट्रस्ट में सभी लोग अच्छे हैं. सबकी भावना कमिटी के साथ है. अगर मैं हूं तो ठीक ही है, नहीं होता तो और भी ठीक होता. इतनी चर्चा ही नहीं होती.&quot;</p><p>कामेश्वर चौपाल के अनुसार सरकार की तरफ़ से ट्रस्ट में शामिल किए जाने को लेकर इसके पहले उनसे किसी ने बात नहीं की थी.</p><p>प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की घोषणा के बाद ही पहली बार उन्हें भी इसकी जानकारी मिली. वो अब चाहते हैं कि मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द हो जाए. </p><p>कामेश्वर चौपाल को राम मंदिर ट्रस्ट में शामिल किए जाने के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं क्योंकि चौपाल ख़ुद एक सक्रिय राजनीतिक व्यक्ति हैं. </p><p>शिलान्यास कार्यक्रम के बाद जब वे देश भर में चर्चा में आ गए थे तब बीजेपी ने उन्हें विधिवत ख़ुद की पार्टी में शामिल कर लिया था.उनकी लोकप्रियता को देखते हुए साल 1991 में रोसड़ा सुरक्षित लोकसभा सीट से बीजेपी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. लेकिन वे चुनाव हार गए. </p><p>साल 1995 में वे बेगूसराय की बखरी विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़े पर वहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2002 में वो बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. 2014 तक वो विधान परिषद के सदस्य रहे. </p><p>साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के स्टार प्रचारकों में शामिल थे. उस चुनाव में उन्होंने नारा दिया, &quot;रोटी के साथ राम&quot;. </p><p>2014 में भारतीय जनता पार्टी ने कामेश्वर चौहान को सुपौल लोकसभा का उम्मीदवार बनाया. लेकिन वो अपने गृह ज़िले सुपौल में भी चुनाव हार गए. इसके बाद से चौपाल की राजनीतिक सक्रियता में ज़रूर कमी आयी. </p><p>वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं, &quot;ये बीजेपी का दलित कार्ड भी हो सकता है. हालांकि वो राम मंदिर आंदोलन से भी जुड़े थे इसमें कोई सवाल नहीं है. लेकिन बीते दिनों में लोग इनको भूल गए थे. एक बार फिर से दलित चेहरे के रूप में इनके नाम की चर्चा होने लगी है तो ज़ाहिर है इसका फ़ायदा बीजेपी को मिलेगा.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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