<figure> <img alt="प्रतीकात्मक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/C06E/production/_109726294_gettyimages-1184426265.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>भारत में 17 यूनिकॉर्न कंपनियां हैं</figcaption> </figure><p>दुनिया में जितनी भी ‘यूनिकॉर्न’ कंपनियां हैं, उनका एक बड़ा हिस्सा भारत में कारोबार करता है.</p><p>’यूनिकॉर्न’, ये शब्द उन स्टार्टअप कंपनियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो किसी देश के शेयर बाज़ार में लिस्टेड या सूचीबद्ध नहीं होती हैं और जिनकी हैसियत एक अरब डॉलर से भी ज़्यादा होती है.</p><p>साल 2013 में जब ऐलीन ली ने पहली बार ‘यूनिकॉर्न’ का इस्तेमाल किया था तो उनका इशारा एक अरब डॉलर वाली कंपनी खड़ी करने में आने वाली दुश्वारियों की तरफ़ था.</p><p>ली ने पाया कि 2003 से 2013 के बीच अमरीका में मात्र 39 कंपनियां थीं जो यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल कर पाई थीं. </p><p><a href="https://www.cbinsights.com/research-unicorn-companies">सीबी इनसाइट्स के आंकड़ों</a> के अऩुसार, आज दुनिया भर में 418 यूनिकॉर्न कंपनियां हैं जिनमें से 18 भारत की हैं. इस तरह से अमरीका, चीन और ब्रिटेन के बाद भारत चौथा ऐसा देश है जहां सबसे ज़्यादा यूनिकॉर्न कंपनियां पैदा हो रही हैं.</p><p>इन 418 में से एक चौथाई ने इसी साल यूनिकॉर्न का दर्जा पाया है. इनमें पांच भारतीय कंपनियां भी हैं. </p><figure> <img alt="ज़ोमैटो" src="https://c.files.bbci.co.uk/13E89/production/_110154518_019a1481-bfa2-4bd6-bd16-cfcb81d1e82d.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><h1>सफलता की नई इबारत</h1><p>भारत में स्टार्टअप शुरू करने को लेकर वैसा ही आकर्षण देखा जा रहा है जैसा आकर्षण पिछली पीढ़ी के लोगों के बीच कॉर्पोरेट करियर की ओर था या फिर उससे पहले लोग सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षित होते थे. </p><p>एक सफल स्टार्टअप चलाने से संपत्ति और पहचान तो मिलती ही है, साथ ही ताक़त और प्रभाव में भी बढ़ोतरी होती है.</p><p>भारत की यूनिकॉर्न कंपनियों के झुंड का नेतृत्व दो डेकाकॉर्न कंपनियां करती हैं जो 10 बिलियन डॉलर से अधिक हैसियत रखती हैं. ये हैं वन97 कम्यूनिकेशंस जो पेटीएम ब्रैंड से डिजिटल वॉलट चलाती है और दूसरी है सस्ते होटलों का एग्रीगेटर ओयो रूम्स जो 18 देशों के 800 से अधिक शहरों में काम कर रही है.</p><p>अन्य जाने-पहचाने नाम हैं टैक्सी एग्रीगेटर ओला कैब्स, खाना डिलीवरी और रेस्तरां की रेटिंग करने वाली ज़ोमैटो और ऑनलाइन लर्निंग ऐप बाइजूज़.</p> <ul> <li><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/06/150607_stolen_mobile_sold_online_bihar_pm?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बचिए मोबाइल चोरों के ई-कॉमर्स से</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-45472820?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जैक मा को जैक मा बनाने वाली 5 ख़ास बातें </a></li> </ul><figure> <img alt="ओला कैब ड्राइवर" src="https://c.files.bbci.co.uk/131B6/production/_109726287_gettyimages-1168245558.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>वैसे तो भारत की अधिकतर यूनिकॉर्न कंपनियां सीधे ग्राहकों से जुड़ी हैं और इंटरनेट पर आधारित हैं, मगर कुछ अपवाद भी हैं. जैसे कि ‘रीन्यू पावर’ एक सोलर और विंड एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी है जिसमें गोल्डमन सैक्स और आबु धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी जैसी कंपनियों का निवेश है. </p><p>डेलीवरी (Delhivery) साल 2019 में यूनिकॉर्न बनने वाली पहली भारतीय कंपनी है जो पार्सल लाने-ले जाने का काम करती है.</p><h3>क्या है मॉडल</h3><p>भारत की पूर्व अग्रणी यूनिकॉर्न और मुख्य ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का वॉलमार्ट ने 2018 में 16 बिलियन डॉलर में अधिग्रहण कर लिया था. यह इस क्षेत्र में किया गया दुनिया का सबसे बड़ा अधिग्रहण था.</p><p>इस अधिग्रहण से मिली <a href="https://knowledge.wharton.upenn.edu/article/wheres-value-inside-look-walmarts-flipkart-deal/">रकम का अधिकतर हिस्सा मुख्य निवेशकों</a> के पास गया जिनमें जापान का सॉफ्टबैंक और अमरीकी कंपनियां टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट और एक्सेल पार्टनर्स शामिल हैं.</p><p>इन कंपनियां के अलावा कुछ अन्य कंपनियों, जैसे कि चीन के अलीबाबा समूह और सक्वोया कैपिटल ने कई भारतीय यूनिकॉर्न में निवेश किया है.</p><p>अजय शाह और अविरुप बोस के साथ लिखे<a href="https://www.nipfp.org.in/media/medialibrary/2017/04/WP_2017_194.pdf"> एक पेपर में</a> हमने इस बात का ज़िक्र किया है कि निवेश करने वाले इन बड़ी कंपनियों ने किस आधार पर चयन किया कि किस भारतीय स्टार्टअप में निवेश करना है. पेपर में इस विषय पर भी बात की गई है कि निवेशकों से मिले पैसे के आधार पर छूट देने और अपना खर्च चलाने वाली कंपनियों का बिज़नस मॉडल कब तक व्यावहारिक रहेगा. </p><p>रोचक बात यह है कि भारतीय स्टार्टअप के लिए फ़डिंग का बड़ा हिस्सा भले ही विदेशी स्रोतों से आता है, लेकिन इससे उन्हें कंपनी के मामलों और रणनीति पर अपना नियंत्रण रखने में मदद मिलती है.</p><p>इसके पीछे विचार यह है कि जब तक संस्थापक भारतीय होते हैं, कंपनी भारतीय स्वामित्व वाली रहती है और इस तरह से वे भारतीय हितों को अच्छे से आगे रख पाती है.</p> <ul> <li><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2016/08/160811_ola_uber_hc_akd?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’ओला, उबर ज्यादा पैसे नहीं चार्ज कर सकेंगे'</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-39189892?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पेटीएम पर चीनी कंपनी का नियंत्रण और बढ़ा</a></li> </ul><h1>बढ़ता प्रभाव</h1><p>यह बात इन कंपनियों के बढ़े प्रभाव के साथ भी ठीक बैठती है, ख़ासकर जब बात नीतियां बनाए जाने की हो. उदाहरण के लिए पिछले साल सरकार ने राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति सुझाने के लिए एक थिंक-टैंक बनाया था. यह बात सामने आई थी कि कुल 16 ई-कॉमर्स कंपनियों को इस पहल में शामिल होने का न्योता भेजा गया था. इनमें बड़ी वैश्विक फ़ंडिंग वाली भारतीय यूनिकॉर्न और अन्य बड़ी घरेलू कंपनियां शामिल थीं.</p><p>कंपनियों को ऐसी ही भागीदारी तब मिली थी जब देश के प्रतियोगिता क़ानून में सुधार सुझाने के लिए सरकार ने कमेटी बनाई थी. इस कमेटी को जिन विषयों पर काम करना था, उनमें ‘नए बाज़ारों और डेटा’ का क्षेत्र भी था. इसमें भारत की पांच यूनिकॉर्न कंपनियों को शामिल किया गया था. छोटी स्टार्टअप या बड़ी कंपनियों की इसमें कोई भूमिका नहीं थी.</p><p>लेकिन पहले से अच्छी तरह जमी कंपनियों के छोटे से समूह से पूरे सेक्टर के हितों के प्रतिनिधित्व की उम्मीद करने से ग़लत नतीजे देखने को मिल सकते हैं. इसी तरह से, यह ध्यान भी रखना चाहिए ई-कॉमर्स सेक्टर में काउंटर लॉबीइंग करने वाले समूहों के दबाव में आकर अचानक प्रतिक्रियात्मक नियम न बनाए जाएं.</p><figure> <img alt="ज़ोमैटो" src="https://c.files.bbci.co.uk/17FD6/production/_109726289_gettyimages-1170202969.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>कल शुरू हुए नए कारोबार जब आज अचानक बाज़ार के बड़े खिलाड़ी बन जाएं तो उनके द्वारा अपने बढ़े हुए प्रभाव के दुरुपयोग की आशंका अपने आप पैदा हो जाती है. </p><p>ओला, स्नैपडील और फ़्लिपकार्ट जैसी ऑनलाइन कंपनियों के ख़िलाफ़ कई शिकायतें कंपिटीशन कमिशन ऑफ़ इंडिया (सीसीआई) के पास पहले से आई हुई हैं.</p><p>भले ही अब तक, सीसीआई ने इन मामलों में ग़ैर-प्रतियोगी आचरण नहीं पाया है लेकिन उसे पूरे सेक्टर की ओर से असहज करने देने वाली स्थिति का सामना करना पड़ रहा है.</p><p>इस साल अगस्त में, सीसीआई ने ई-कॉमर्स सेक्टर पर अपने शोध के अंतरिम नतीजे जारी किए थे. इनमें कारोबारियों और बिज़नस पार्टनर्स द्वारा ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों के ख़िलाफ़ जताई गई कई चिंताओं का ज़िक्र किया गया है.</p><p>इनमें पक्षपात, बहुत कम कीमत और कॉन्ट्रैक्ट वगैरह की अन्यायपूर्ण शर्तें शामिल हैं. दूसरी तरफ़ ई-कॉमर्स कंपनियां अपने क्षेत्र में होने वाली स्पर्धा और ग्राहकों के फ़ायदे का तर्क देकर अपना बचाव करती हैं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-45698199?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इस कंपनी के निवेशकों को 9200 करोड़ की चपत</a></li> </ul> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-50559586?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दुनिया के 5G नेटवर्क पर चीन का होगा कब्ज़ा?</a></li> </ul><figure> <img alt="फ़्लिपकार्ट" src="https://c.files.bbci.co.uk/09F1/production/_110154520_c86dd822-1737-48dc-9aa2-b471f396b77c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><h1>सावधानी ज़रूरी</h1><p>भारत की यूनिकॉर्न कंपनियों की सफलता से आर्थिक निधि से लेकर रोगज़ार के मौक़ों तक की बढ़ोतरी हुई है. वैश्विक कारोबारी नक्शे में भारत की जगह भी मज़बूत हुई है और देश में इनोवेशन व उद्यमशीलता की संस्कृति को बढ़ाने में भी इनका योगदान रहा है.</p><p>ये योगदान बहुत महत्वपूर्ण हैं मगर हमकी आड़ में ऐसा न हो कि हम यह समझने लगें कि कुछ बड़ी और अब स्थापित हो चुकी कंपनियां ही भारत के आर्थिक हितों के लिए महत्वपूर्ण हैं.</p><p>सोच यह होनी चाहिए कि सबको उभरने का मौक़ा दिया जाए. कारोबार और निवेश के मौक़े भी दिए जाएं और नीतियां बनाने की बात आए तो प्रक्रिया में उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए.</p><p><em>(स्मृति पारशीरा दिल्ली में टेक्नोलॉजी पॉलिसी रिसर्चर हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)</em></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a 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पेटीएम, ज़ोमैटो जैसी यूनिकॉर्न कंपनियां क्या ज़्यादा शक्तिशाली हो गई हैं – नज़रिया
<figure> <img alt="प्रतीकात्मक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/C06E/production/_109726294_gettyimages-1184426265.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>भारत में 17 यूनिकॉर्न कंपनियां हैं</figcaption> </figure><p>दुनिया में जितनी भी ‘यूनिकॉर्न’ कंपनियां हैं, उनका एक बड़ा हिस्सा भारत में कारोबार करता है.</p><p>’यूनिकॉर्न’, ये शब्द उन स्टार्टअप कंपनियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो किसी देश के शेयर बाज़ार में लिस्टेड या सूचीबद्ध नहीं होती […]
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