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नयी किताब: शायराना गुलदस्ता

दुनिया भर में आज भी सबसे ज्यादा गजलें और शे’र ही मुहब्बत के साथ पढ़े और सुनाये जाते हैं. इसी बात को जेहन में रखकर मंजुल प्रकाशन ने सात मशहूर शायरों की किताबों का यह गुलदस्ता तैयार किया है. गालिब, मीर और मोमिन, उर्दू शायरी के तीन ऐसे स्तंभ शायर हैं, जिनका कोई सानी नहीं […]

दुनिया भर में आज भी सबसे ज्यादा गजलें और शे’र ही मुहब्बत के साथ पढ़े और सुनाये जाते हैं. इसी बात को जेहन में रखकर मंजुल प्रकाशन ने सात मशहूर शायरों की किताबों का यह गुलदस्ता तैयार किया है.

गालिब, मीर और मोमिन, उर्दू शायरी के तीन ऐसे स्तंभ शायर हैं, जिनका कोई सानी नहीं है. वैसे तो इनके अलावा एक से बढ़कर एक शायर हैं, लेकिन उर्दू अदब के वकार को गालिब, मीर और मोमिन ने जो बुलंदी बख्शी, वह उर्दू अदब की जीनत है. यह उनकी शायरी के अलहदा अंदाज की बदौलत ही है कि वे उर्दू शायरी के चाहनेवालों के िदलों में जाकर बैठ गये. इन तीन स्तंभों के साथ ही चार अन्य उम्दा शायर- बहादुर शाह जफर, शेख इब्राहिम जौक, दाग देहलवी और अल्लामा इकबाल भी हैं, जिनकी शायरी का अपना ही अंदाज है. इन सात शायरों की चुनिंदा शायरी को इकट्ठा करके मंजुल प्रकाशन ने ‘मशहूर शायरों की नुमाइंदा शायरी’ नाम से सात किताबों का एक गुच्छा प्रकाशित किया है. जाहिर है, शायरी का शौक रखनेवालों के लिए यह एक शायराना गुलदस्ता है, जिसे तकिये के पास रखना फख्र की बात होगी.

उर्दू अदब की दुनिया में गजलों का मेयार इतना दिलकश है कि वह हर दौर में पाठकों-श्रोताओं के दिलों पर राज करती रही है. जहां गजल एक तरफ उर्दू शायरी की अनमोल विरासत है, वहीं दूसरी तरफ इसने शायरों को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दी है. यही वजह है कि आज भी सबसे ज्यादा गजलें या फिर उनके चंद अशआर ही मुहब्बत के साथ पढ़े और सुनाये जाते हैं. इसी बात को जेहन में रखकर मंजुल प्रकाशन ने आम पाठकों के लिए यह गुलदस्ता तैयार किया है. हर किताब के शुरू में शायर के बारे में एक मुख्तसर तआरुफ (परिचय) भी है, ताकि पाठक न सिर्फ उनकी शायरी पढ़ें, बल्कि उनके बारे में भी जानकारी हासिल करें.

अब बात इन सात शायरों की और उनकी शायरी की. आलमी अदब में महान शख्सियत मिर्जा गालिब ही उर्दू की आवाज हैं. गालिब जिंदगी के हर नाजुक मौके पर अपनी शायरी में फलसफा यानी दर्शन पिरो देते हैं. उर्दू के पहले सबसे बड़े शायर और ‘खुदा-ए-सुखन’ मीर तकी मीर तो जैसे अपने कलाम में दिल निकाल कर रख देते हैं. गालिब और जौक के समकालीन मोमिन खां मोमिन एक हकीम थे, जो ज्योतिषी भी करते थे और शतरंज भी खेलते थे. उनकी शायरी में जो कीमियागरी नजर आती है, वह कहीं और नहीं दिखती. खुद गालिब भी मोमिन की शायरी को बहुत पसंद करते थे. आखिरी मुगल बादशाह और गालिब-जौक के समकालीन बहादुर शाह जफर की शायरी में दर्द का अपना ही आलम है. जहां बहादुर शाह जफर के उस्ताद और राजकवि शेख इब्राहिम जौक का अंदाज भी अलहदा है. वहीं शायरी में चुस्ती, शोखी और मुहावरों के इस्तेमाल के लिए दाग का कोई सानी नहीं है. सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा लिखनेवाले इकबाल को गालिब के बाद सबसे बड़ा शायर माना जाता है. जाहिर है, इन महान शायरों की नुमाइंदा शायरी का गुलदस्ता आप अपने स्टडी टेबल पर जरूर रखना चाहेंगे.

– वसीम अकरम

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