अर्चना शर्मा लेखिका
इरशाद कामिल एक ऐसे गीतकार हैं, जिनके गानों के बोल दिल के भीतर तक ठहर जाते हैं. एहसासों की नरमी और शब्दों की खूबसूरती का अनूठा मेल इनके गानों में दिखता है. बॉलीवुड के शीर्षस्थ गीतकार होने के साथ-साथ इन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं. इन्हें फिल्म फेयर के अलावा अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. पत्रकारिता से बॉलीवुड के उनके सफर पर उनसे बातचीत की है अर्चना शर्मा ने…
-एक सवाल जो अक्सर उठता है कि आज के गानों में वह बात नहीं रही, या कि जितनी जल्दी ये आते हैं, उतनी हीं जल्दी गायब भी हो जाते हैं, इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
हां यह बात अक्सर उठती है और इसके पीछे कई वजहें हैं. एक तो यह कि आजकल गानों की भरमार है. दूसरी बात, आज इंटरटेनमेंट के ढेरों साधन हैं. तीसरी, हमारे पास समय की कमी हो चली है. चौथी, बेवजह यह मान लिया गया है कि आज के गानों में वह बात नहीं है. किसी भी दौर में सारे के सारे गाने उतने अच्छे नहीं बनते थे. आजकल चूंकि ज्यादातर लोग अपने मोबाइल पर गाने सुनते हैं, जिसकी वजह से पता नहीं चलता कि कौन किस तरह के गाने सुनता है. जाहिर है, सबकी अपनी खास पसंद है.
-क्या आजकल अच्छा पढ़ना कम हो गया है, क्योंकि अब अच्छा लिखा नहीं जा रहा है?
आज के समय में ऐसा नहीं है कि अच्छा पढ़ने या लिखने की कोशिश नहीं हो रही है, पर क्या करें, हर क्षेत्र में व्यवसायीकरण हावी है. फिर भी उम्मीद और कोशिश बदस्तूर जारी है.
-आपकी किताब ‘एक महीना नज्मों का’ आयी थी. नज्मों के लिए सिर्फ एक महीना ही क्यों?
आप सिर्फ एक महीने तक नज्मों की उस किताब को पढ़िये, आपका सारा साल गजल हो जायेगा. यथार्थ के धरातल पर प्रेम में पगी नज्में हैं इसमें, जो सबकी और सबके लिए हैं.
-आजकल राष्ट्रवाद की बात हर जगह होती है, इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
हमारा काम गीत लिखना और मोहब्बत का पैगाम पहुंचाना है. बाकी किसी और बात पर हम क्या बोलें.
-लेखन रचनात्मकता का असल सुख किस विधा में मिलता है? कहानी में, नाटक में, नज्म लिखने में या फिर फिल्मी गीत लिखने में?
लिखना मेरा शौक है. जिन भी विधाओं का आपने नाम लिया है, वे सब लेखन से ही जुड़ी हुई हैं. हर विधा से मुझे प्रेम है, इसलिए समझ लीजिये कि ये मेरी प्रेमिकायें हैं.
-फिल्मी गानों को रचने में सिचुएशन, संवेदना और कैरेक्टर, इन तीनों के बीच कैसे मेल करा पाते हैं आप?
मैंने एक किताब लिखी है, ‘काली औरत का ख्वाब’, जिसमें मैंने गाने लिखने के प्रयास और प्रक्रिया का खासा जिक्र किया है. कुछ कहानी से, कुछ धुन से, कभी किसी खास शब्द से किरदार की डोर थामे गीत निकल पड़ते हैं. कोई सोची-समझी तकनीक नहीं होती. यह तो सृजन का सफर है, जिसमें मेरा संघर्ष, सपने, आशाएं, निराशाएं बहुत कुछ पिरोया गया है.
-अखबार की नौकरी से मुंबई फिल्म उद्योग का सफर, इसके बीच क्या कुछ घटा?
वह सब बताने के लिए एक अखबार के कम-से-कम सौ पन्ने चाहिए. छोटे में इतना समझ लीजिये कि जो कुछ घटा, वह सब बुरा कम अच्छा ज्यादा था. इसीलिए आज मैं इरशाद कामिल हो पाया हूं.
-इंक बैंड, कविताओं और गीतों की कैसी स्याही बिखेर रहा है, कुछ इसके बारे में बताइये?
कविताओं को संगीत से समझने की कोशिश है इंक बैंड. यह युवाओं तक गीत, संगीत के माध्यम से पहुंचने का प्रयास है. युवा जिस कविता को ऐसे न पढ़े, उसे इंक बैंड के जरिये उसके भीतर उतारने की एक कोशिश है.