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वॉन गॉग और सप्तर्षि मंडल!
अशोक भौमिक चित्रकार आसमान में असंख्य तारों को जगमगाते देखना किसे आकर्षित नहीं करता होगा. उसी प्रकार हम अपने आस-पास फैले प्रकृति के सौंदर्य को देखते हुए ही कलाकार या कलाप्रेमी बनते हैं. भारतीय मिथकों और पौराणिक कथाओं में प्रकृति और जीव-जगत के सभी प्राणियों के साथ भांति-भांति की कथाएं जुड़ी हुई हैं. हमारे यहां […]
अशोक भौमिक
चित्रकार
आसमान में असंख्य तारों को जगमगाते देखना किसे आकर्षित नहीं करता होगा. उसी प्रकार हम अपने आस-पास फैले प्रकृति के सौंदर्य को देखते हुए ही कलाकार या कलाप्रेमी बनते हैं. भारतीय मिथकों और पौराणिक कथाओं में प्रकृति और जीव-जगत के सभी प्राणियों के साथ भांति-भांति की कथाएं जुड़ी हुई हैं. हमारे यहां पर्वतों, नदियों और वनों को लेकर जहां अनेक कथाएं हैं, वहीं फूलों, वृक्षों और फलों को लेकर भी तमाम कहानियां हैं. इन्हीं कथा-कहानियों से केवल हमारी मान्यताएं और संस्कार ही नहीं बने हैं, बल्कि हमारे समाज की अनेक अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच-समझ के पीछे ऐसी तमाम कथाएं ही हैं.
गणेश के जन्म के साथ जुड़ी कथा सुनने में आकर्षक लग सकती है, पर इस कथा से यदि हम यह मान लें कि शल्य-चिकित्सा का विकास आज से हजारों वर्षों पूर्व हुआ था, तो यह उचित नहीं. अगर समुद्र के पानी के खारा होने के पीछे अगस्त मुनि द्वारा समुद्र पी जाने जैसी कथाओं को हम सच मानने लगें, तो समाज में वैज्ञानिक चेतना का ह्रास हो जायेगा और हम दुनिया के अन्य प्रांत के लोगों की आधुनिक सोच से बहुत पीछे रह जायेंगे.
ऐसी ही कथाओं पर विश्वास करते हुए, आसमान पर असंख्य चमकते तारों के बीच सात तारों के उस मंडल की खूबसूरती शायद हमसे छूट जाती है और हम वेदों में वर्णित सप्तर्षियों की कथाओं में उलझकर रह जाते हैं.
हमें इन सात तारों में सात दाढ़ी-मूछों वाले ऋषियों की कथाएं याद तो आती हैं, लेकिन इन सात तारों के मंडल की विशिष्ट संरचना का सौंदर्य हम उस तरह से नहीं देख पाते. वहीं इसके ठीक विपरीत कहें, तो हमारे समाज में जो लोग भी ऐसी पौराणिक कथाओं से मुक्त हैं, वे निश्चय ही सृष्टि के इस सौंदर्य का सही अर्थों में आनंद ले पाते हैं.
यूरोप के जिन मशहूर चित्रकारों के नामों से हम परिचित हैं, उसमें विन्सेंट वॉन गॉग (1853-1890) का नाम प्रमुख है. प्रकृति के सौंदर्य को एक चित्रकार किस प्रकार से आत्मसात करके अपने चित्र में किस हद तक समाहित कर पता है, इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है 1988 में वॉन गॉग द्वारा बनाया गया चित्र ‘रोन नदी पर तारों भरी रात’ (स्टारी नाइट ओवर रोन)!
इस चित्र में हम आकाश और आसमान को दो हिस्सों में बांटते हुए एक सड़क को पाते हैं, जहां गैस की रोशनी के खंभों की कतार दिख रही है. इस प्रकार चित्र में प्राकृतिक (तारों) और कृत्रिम (गैस लाइट) दो सर्वथा भिन्न प्रकाश स्रोतों को देख पाते हैं. आसमान में जहां एक रात अद्भुत ठहराव है, वहीं नदी पर गैस लाइटों से बने लंबायमान प्रतिबिंबों की एक कतार है.
रोन नदी के पानी की सतह पर लहरों के चलते इन प्रतिबिंबों में एक खास थिरकन है, जो आकाश के ठहराव से भिन्न होते हुए भी चित्र की खामोशी को एक विस्तार देता है. चित्र के नीचे के हिस्से में एक प्रेमी जोड़ा इस पूरे दृश्य को देख रहा है, या कि मानो हम इनकी नजरों से रोन नदी पर तारों भरी रात को देख रहे हैं.
इस चित्र को देखते हुए हम चित्र में सप्तर्षि (उर्सा मेजर) मंडल की उपस्थिति को अलग किसी संदर्भ में नहीं देख पाते हैं, जबकि गैस लाइटों और इन सात तारों के रंगों में भिन्नता है. दो प्रेमियों के लिए मध्य-रात्रि के आकाश पर इन सात तारों की अद्भुत संरचना को देखते हुए जाहिर है पौराणिक कथाओं के सात ऋषियों का संदर्भ तो नहीं ही आया होगा और शायद इसीलिए यह चित्र, कला जगत की एक कालजयी कृति है.
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