<figure> <img alt="अमित शाह, नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7D8C/production/_108304123_hi054161874.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>भारत सरकार ने साल 2019-20 के लिए अपनी कंपनियों में विनिवेश का लक्ष्य 1.05 लाख करोड़ रुपये का रखा है. कैबिनेट ने 24 सरकारी कंपनियों में विनिवेश और निजीकरण की मंज़ूरी दे दी है. इसकी प्रक्रिया जल्द शुरू होगी.</p><p>विनिवेश में सरकार अपनी कपनियों के कुछ हिस्से को निजी क्षेत्र को बेचती है या शेयर बाज़ारों में अपनी कंपनियों के स्टॉक को फ़्लोट करती है. </p><p>निजीकरण और विनिवेश को अक्सर एक साथ इस्तेमाल किया जाता है लेकिन निजीकरण इससे अलग है. इसमें सरकार अपनी कंपनी में 51 प्रतिशत से अधिक हिस्सा निजी कंपनी को बेचती है जिसके कारण कंपनी का मैनेजमेंट सरकार से हटकर ख़रीदार के पास चला जाता है. </p><figure> <img alt="वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण" src="https://c.files.bbci.co.uk/2F6C/production/_108304121_0e3e1994-9817-4276-8de7-02d2782ec5f5.jpg" height="407" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>सरकार निजीकरण और विनिवेश के ज़रिये पैसे जुटाती है जिससे वो बजट के घाटे को कम करती है या फिर कल्याण के कामों में लगाती है.</p><p>तो क्या मोदी सरकार का इस साल का विनिवेश का ये विशाल लक्ष्य पूरा हो सकेगा? </p><p>पिछले दो साल में मोदी सरकार ने विनिवेश के अपने लक्ष्य से भी अधिक पैसे जुटाए हैं. इसलिए इसे उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष का लक्ष्य भी पूरा हो जाएगा.</p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/CAC9/production/_108131915_rajiv_kumar.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार</figcaption> </figure><p>भारत सरकार की पॉलिसी थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, "ये लक्ष्य हम तीन तरीक़े से पूरा करेंगे- विनिवेश, निजीकरण और सरकारी संपत्ति का मुद्रीकरण. हमें पूरी उम्मीद है हम एक लाख पांच हज़ार करोड़ रुपये के लक्ष्य को आसानी से पूरा करेंगे". </p><p>नीति आयोग का एक अहम काम है, सरकारी कंपनियों और संपत्तियों की शिनाख़्त करके उनके विनिवेश के लिए केंद्र सरकार को सलाह देना. इसके उपाध्यक्ष के नाते राजीव कुमार की इसमें एक अहम भूमिका होती है. वो कहते हैं कि विनिवेश की प्रक्रिया जल्द ही तेज़ी से शुरू होने वाली है.</p><p>राजीव कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि नीति आयोग ने विनिवेश या बिक्री के लिए केंद्र सरकार को 46 कंपनियों की एक लिस्ट दी है. कैबिनेट ने इनमें 24 के विनिवेश को मंज़ूरी दे दी है.</p><p>उन्होंने कहा, "आप देख रहे हैं कि एयर इंडिया के निजीकरण की बात काफ़ी ज़ोर से चल रही है. आप देखेंगे कि जल्द ही एक नया पैकेज सामने आएगा."</p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/118E9/production/_108131917_3a7c32fc-e604-4ddd-8b7c-183b2f673a73.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p><strong>'</strong><strong>महाराजा ऑन सेल</strong><strong>'</strong></p><p>इस साल का सब से महत्वपूर्ण विनिवेश या निजीकरण एयर इंडिया का होना है. पिछले साल मोदी सरकार को क़र्ज़ों में डूबी और घाटे में चल रही एयर इंडिया और इससे जुड़ी छोटी कंपनियों का कोई निजी सेक्टर में ख़रीदार नहीं मिला था. </p><p>इसे ख़रीदने में दिलचस्पी लेनी वाली कंपनियों के अनुसार सरकार की शर्तें ऐसी थीं कि कोई इसे ख़रीदने को तैयार नहीं था. आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ विवेक कौल के अनुसार, सरकार की एक शर्त थी कि इसका ख़रीदार पांच साल तक कर्मचारियों और स्टाफ़ को निकाल नहीं सकता.</p><p>इस बार सरकार ने शर्तें आसान कर दी हैं और पैकेज को आकर्षक बनाने की कोशिश की है. नीति आयोग के राजीव कुमार कहते हैं, "हमने पिछले साल की नाकामी से सबक़ सीखा है. इस बार वो ग़लतियाँ नहीं दोहराएंगे". विमानन मंत्रालय ने इस पैकेज को तैयार किया है. </p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/16709/production/_108131919_c1102d8c-196c-478e-84d5-2f520ca49f84.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>सरकार को एयर इंडिया की बिक्री से 70 हज़ार करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है. सूत्रों के मुताबिक़ सरकार इसे बेचने की प्रक्रिया अगले महीने शुरू कर सकती है. लेकिन सूत्र कहते हैं कि कुछ फ़ैसले अब भी लिए जाने हैं, जैसे कि ये मुद्दा कि पिछली बार की तरह सरकार 74 प्रतिशत विनिवेश करे या 100 प्रतिशत निजीकरण?</p><p>इसका निर्णय गृहमंत्री अमित शाह के हाथ में है. वो पांच मंत्रियों वाली उस समिति के अध्यक्ष हैं जो विनिवेश की शर्तों और नियमों को तय करती है. अरुण जेटली के रिटायरमेंट के बाद ये ज़िम्मेदारी अमित शाह के कंधों पर आ गई है.</p><p>लेकिन सरकार के विनिवेश के तरीकों पर अर्थशास्त्रियों के बीच मतभेद है. विनिवेश में आम तौर से सरकार अपनी कंपनी के कुछ हिस्से को बेचती है, जिसे निजी कंपनियां खरीदती हैं. मैनेजमेंट कंट्रोल सरकार के पास ही रहता है. </p><p>लेकिन मोदी सरकार ने अक्सर एक सरकारी कंपनी के शेयर को सेल पर लगाया और दूसरी सरकारी कंपनी से उसे ख़रीदने पर मजबूर किया.</p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/17EB/production/_108132160_c7f52f4c-fae6-4eb5-a8c0-2ef553b948af.jpg" height="351" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>सरकारी कंपनी के शेयर दूसरी सरकारी कंपनी ख़रीदे तो?</h1><p>हाल में सब से बड़ा विनिवेश तेल और प्राकृतिक गैस कंपनी एचपीसीएल का हुआ था जिसके कंट्रोलिंग स्टेक को (51 प्रतिशत से कुछ अधिक) तेल और प्राकृतिक गैस की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी ओएनजीसी ने लगभग 37 हज़ार करोड़ रुपये में ख़रीदा था. इसके लिए कैश रिच और बग़ैर क़र्ज़ वाली कंपनी ओएनजीसी को 24 हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ लेना पड़ा था. </p><p>दोनों कंपनियों की मालिक केंद्र सरकार है. तो क्या इसे सही मायने में विनिवेश कह सकते हैं? </p><p>मुंबई में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ विवेक कॉल कहते हैं, "विनिवेश जो है वो एक ड्रामा होता है या कह लीजिये कि सरकार के लिए पैसा इकठा करने का एक आसान तरीक़ा है. इससे कुछ होता नहीं है." </p><p>नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार इससे सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं, "ये दक्षता बढ़ाता है. दूसरे ये भी आवश्यक नहीं है कि आपको हर क्षेत्र में एक निजी ख़रीदार मिलेगा." </p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/3EFB/production/_108132161_6cac9961-fb77-4733-be74-a5c180c2f28a.jpg" height="351" width="624" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि विनिवेश के अधिकतर मामलों में इस साल भी ऐसा ही होगा. लेकिन हक़ीक़त ये है कि 1991 से शुरू होने वाले निजीकरण के दौर से ही ये सिलसिला जारी है कि विनिवेश की प्रक्रिया में एक सरकारी कंपनी दूसरी सरकारी कंपनी को ख़रीदती है. </p><h1>विनिवेश की रफ़्तार तेज़ या धीमी?</h1><p>ये ज़रूर है कि पिछले दो सालों में विनिवेश की प्रक्रिया बढ़ी है, इसकी रफ़्तार तेज़ हुई है. लेकिन इसके लिए सरकार को बधाई दी जाए या इसकी आलोचना की जाए, इस पर वैचारिक मतभेद है. </p><p>वो लोग जो निजीकरण के हामी हैं और जिनके अनुसार कंपनियां चलाना सरकार का काम नहीं है वो मोदी सरकार के विनिवेश की रफ़्तार को काफ़ी धीमी मानते हैं. वो चाहते हैं कि सरकार अपनी कंपनियों को बेचकर जनता को मकान, स्वास्थ्य, रोज़गार और बिजली देने के काम में ध्यान अधिक दे. </p><p>विवेक कौल के अनुसार सरकार जितनी जल्दी अपनी कंपनियों का विनिवेश करे उतना ही अच्छा है. लेकिन वो चाहते हैं कि सरकार निजी कंपनियों के हाथों अपनी कंपनियां बेचे.</p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/660B/production/_108132162_4484b425-60a3-4e92-abb8-9047b664563f.jpg" height="351" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>लेकिन वो विशेषज्ञ जो सरकारी कंपनियों और सम्पत्तियों को निजी हाथों में देने के ख़िलाफ़ हैं वो मोदी सरकार के विनिवेश की रफ़्तार से भयभीत हैं. </p><p>आर्थिक मुद्दों से संबंधित स्वदेशी जागरण मंच जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक सहयोगी संस्था है और जो मंत्रियों पर आर्थिक मुद्दों पर दबाव डालती है, कहती है कि वो सरकरी संपत्ति को निजी हाथों में बेचने के ख़िलाफ़ है. </p><p>इस संस्था के अनुसार पिछले दो साल में विनिवेश की गति में काफ़ी तेज़ी आयी है. स्वदेशी जागरण मंच के अरुण ओझा कहते हैं, "हम विनिवेश का पूरी तरह से विरोध नहीं करते हैं. हम रणनीतिक बिक्री के ख़िलाफ़ हैं. विनिवेश जनता में शेयर जारी करके हो सकता है". </p><p><strong>पढ़ें</strong></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48961605?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कैसे पूरा होगा विनिवेश का लक्ष्य?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48874702?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बजट 2019: कॉर्पोरेट और आम लोगों के बीच संतुलन साधने की चुनौती</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49299954?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">किस दिशा में जा रही है भारत की आर्थिक दशा ?</a></p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/085C/production/_108304120_305825b1-c0bc-4314-a1f5-d1c324f98641.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><h1>पूँजी कहाँ से आये? </h1><p>पिछली तिमाही में आर्थिक विकास दर घटकर 5.8 प्रतिशत रह गई. एक समय में, यानी 2003 से 2012 तक, निर्यात की बढ़ोतरी की दर 13-14 प्रतिशत हुआ करती थी. आज ये दर दो प्रतिशत से कम पर आ गयी है. </p><p>नीति आयोग के राजीव कुमार कहते हैं कि सरकार इस बारे में चिंतित है, "हमें इस बारे में बड़ी चिंता है. पूरी सरकार इस समय इस बात के लिए जुटी हुई है कि ये स्लो डाउन ज़्यादा दिनों तक न चले."</p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/8D1B/production/_108132163_76d949ad-6cf6-46d7-9cad-84d198f361f3.jpg" height="351" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>देश में पूँजी की सख्त कमी है. घरेलू कंपनियों के पास पूँजी नहीं है. इनमे से अधिकतर क़र्ज़दार भी हैं. बैंकों की हालत भी ढीली है. ऐसे में विदेशी निवेश पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है. </p><p>मोदी सरकार ने व्यापार और निवेश में सुधार लाने की कोशिश की है और इसके लिए अच्छी खबर ये है कि साल 2018-19 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) की राशि रिकॉर्ड 64. 37 अरब डॉलर की रही. विशेषज्ञों के अनुसार निजीकरण और विनिवेश में विदेशी कंपनियों के निवेशकों को लुभाना ज़रूरी है.</p><p>भारत सरकार 257 कंपनियों की मालिक है और 70 से अधिक कंपनियां लांच होनी हैं. इसके इलावा रेल और इसकी तमाम संपत्ति की मालिक भी केंद्र सरकार है. और तो और, सरकारी बैंकों में भी इसकी मिल्कियत करीब 57 प्रतिशत है. राजीव कुमार इस बात की वकालत करते हैं कि पब्लिक सेक्टर कंपनी का स्टेटस खोए बग़ैर सरकार 51 प्रतिशत से ऊपर सरकारी बैंकों में अपने शेयर का विनिवेश कर सकती है. </p><figure> <img alt="विनिवेश" src="https://c.files.bbci.co.uk/B42B/production/_108132164_8dcf67df-7436-4a47-a773-e6b15a4bdb2c.jpg" height="990" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>लेकिन कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक से अधिक सरकारी मिल्कियत को बेचने के लिए या इसके निजीकरण के लिए सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति ज़रूरी है. विवेक कौल को खेद इस बात का है कि मोदी सरकार की आर्थिक नीति पिछली सरकारों से अलग नहीं है. वो मानते हैं कि इसे समाजवाद से छुटकारा अब तक नहीं मिल पाया है. उनके अनुसार, मोदी की आर्थिक नीति इंदिरा गाँधी से मिलती-जुलती है.</p><p>उधर अमरीका के राष्ट्रपति ने "अमरीका फर्स्ट या अमरीका पहले" की संरक्षणवादी नीति अपनाकर वैश्वीकरण के दौर पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. मोदी सरकार के भीतर भी ये दुविधा बनी हुई है कि राष्ट्रीय हित को पहले देखा जाए या पूँजी की ज़रूरत को तरजीह देते हुए निजीकरण का रास्ता पहले अपनाया जाए. </p><p>नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि भारत सरकार ने वैश्वीकरण के दौर में भी राष्ट्रीय हित को हमेशा सामने रखा है. उनके अनुसार रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में निजीकरण करते समय सरकार खास तौर से राष्ट्रीय हित का ख्याल रखेगी. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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मोदी सरकार अपनी कंपनियों से जुटा पाएगी एक लाख करोड़ रुपये?
<figure> <img alt="अमित शाह, नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7D8C/production/_108304123_hi054161874.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>भारत सरकार ने साल 2019-20 के लिए अपनी कंपनियों में विनिवेश का लक्ष्य 1.05 लाख करोड़ रुपये का रखा है. कैबिनेट ने 24 सरकारी कंपनियों में विनिवेश और निजीकरण की मंज़ूरी दे दी है. इसकी प्रक्रिया जल्द शुरू होगी.</p><p>विनिवेश में सरकार अपनी कपनियों के […]
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