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उन्नाव रेप: क्या पीड़िता को सुरक्षा सिर्फ़ दिखावे के लिए थी?

उन्नाव में रेप पीड़ित लड़की को मिली सुरक्षा और सुरक्षाकर्मियों के ड्यूटी के तरीक़े और उनकी निगरानी को लेकर भी तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं. पीड़ित लड़की की सुरक्षा में उत्तर प्रदेश पुलिस के तीन सिपाही हर वक़्त तैनात रहते हैं, जिनमें दो महिला पुलिसकर्मी और एक पुरुष गार्ड होता है. तीन पुलिस […]

उन्नाव में रेप पीड़ित लड़की को मिली सुरक्षा और सुरक्षाकर्मियों के ड्यूटी के तरीक़े और उनकी निगरानी को लेकर भी तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं.

पीड़ित लड़की की सुरक्षा में उत्तर प्रदेश पुलिस के तीन सिपाही हर वक़्त तैनात रहते हैं, जिनमें दो महिला पुलिसकर्मी और एक पुरुष गार्ड होता है.

तीन पुलिस गार्ड हर समय घर पर भी तैनात रहते हैं. लेकिन रविवार को पीड़ित लड़की की कार की टक्कर जब ट्रक से हुई, उस वक़्त उनके साथ एक भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था.

पीड़ित लड़की की मां ने बताया कि सुरक्षाकर्मी के घर में किसी की तबीयत ख़राब थी इसलिए वो चला गया था. उनका कहना था, "इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं थी. उन्होंने जब बताया तो हम बोले को रहने दो हम अकेले ही चले जाएंगे. शाम को तो वापस आ ही जाना है."

लेकिन उस समय ड्यूटी पर तैनात एक गार्ड सुरेश कुमार ने घटना के अगले दिन मीडिया से बातचीत में कहा था कि पीड़ित लड़की और उनके परिवार वाले ख़ुद ही उन्हें साथ नहीं ले गए थे.

सुरेश कुमार के मुताबिक, "वे लोग बोले कि गाड़ी में जगह नहीं है और हम लोग दिन भर में ही लौट आएंगे, इसलिए आप मत चलिए. हम तो दिन भर से यहीं हैं."

पुलिस का तर्क

सोमवार को एडीजी लखनऊ ज़ोन राजीव कृष्ण ने भी घटना के दिन कोई सुरक्षाकर्मी न होने की बात स्वीकार की थी और कहा था कि इस मामले की जांच कराई जा रही है.

उन्होंने भी इसके पीछे यही वजह बताई थी जो सुरेश कुमार ने बताई थी. उन्होंने कहा, "पीड़ित लड़की की सुरक्षा में नौ पुलिसकर्मी लगे हैं जो तीन शिफ़्ट में ड्यूटी करते हैं. घटना के समय वो क्यों साथ नहीं थे, एएसपी उन्नाव को इसकी जांच के आदेश दिए गए हैं. वो जल्द ही अपनी रिपोर्ट देंगे."

जानकारों के मुताबिक़, जिन्हें सुरक्षा मिली हुई है, यदि वो सुरक्षाकर्मी को साथ ले चलने से मना करते हैं तो इसकी सूचना सुरक्षाकर्मी को अपने अधिकारियों को देनी चाहिए, लेकिन आमतौर पर इसका पालन शायद ही होता हो. हां, जहां सुरक्षा उच्च स्तरीय होती है, वहां ज़रूर पालन होता है.

लखनऊ में क्राइम की ख़बरों को लंबे समय से कवर कर रहे पत्रकार विवेक त्रिपाठी कहते हैं, "पीड़ित परिवार ने अगर साथ चलने से मना कर दिया तो गार्ड कर भी क्या सकता है. ज़बरदस्ती भी नहीं कर सकता. हां, उसकी ये ग़लती ज़रूर रही कि उसने इस बारे में उच्च अधिकारियों को नहीं बताया. लेकिन सच्चाई ये है कि ऐसी स्थितियां आए दिन आती रहती हैं. गार्ड कितनी बार उच्च अधिकारियों को फ़ोन करेगा."

वहीं दूसरी ओर, माखी गांव में पीड़ित परिवार के घर में तैनात सुरक्षाकर्मियों और उनकी सक्रियता को लेकर भी कई मत देखे गए. गांव और आस-पास के लोगों का कहना था कि सुरक्षाकर्मी हर समय मौजूद रहते थे लेकिन पीड़ित परिवार के कुछ रिश्तेदार इस पर सवाल उठाते हैं.

स्थानीय लोग क्या कहते हैं?

पीड़ित लड़की के एक मामा ने पत्रकारों को बताया, "उसके घर में तैनात पुलिसकर्मी कभी दिखते थे, कभी नहीं दिखते थे. मैं तो जब भी आया यहां किसी को भी नहीं देखा."

लेकिन उनकी इस बात की तस्दीक गांव के और लोग नहीं करते. गांव में ही किराने की दुकान चलाने वाली चंदा देवी कहती हैं, "पुलिस वाले तो हमारी दुकान से ही कई सामान ख़रीदकर ले जाते हैं."

पिछले साल अप्रैल में जब पीड़ित लड़की के पिता की हिरासत में मौत हुई थी और उसके बाद ये पूरा मामला सुर्खियों में आ गया था, उसी समय सरकार ने पीड़ित लड़की की सुरक्षा में कुछ पुलिसकर्मी तैनात कर दिए थे.

माखी गांव हसनगंज थाने में आता है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "पुलिसकर्मियों के अलावा पीड़िता के घर पर पीएसी के भी कुछ जवान हमेशा से तैनात रहते थे. सुरक्षा में कोई कमी नहीं थी."

पड़ोसियों के मुताबिक, चूंकि पीड़ित लड़की और परिवार के लोग अक़्सर दिल्ली और दूसरी जगहों पर भी जाते रहते थे, इसलिए जिन सिपाहियों की ड्यूटी उनके घर पर रहती थी, उनकी अनुपस्थिति में वो इधर-उधर हो जाते थे. लेकिन आमतौर पर वो यहीं रहते थे.

यहां यह सवाल ज़रूर उठता है कि पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाने वाले क्या इस बात की निगरानी भी करते हैं कि जिनकी ड्यूटी लगाई गई है, वो लोग उसे ठीक से निभा रहे हैं या नहीं. इस सवाल के जवाब में स्थानीय पुलिस के अधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं.

घरवालों का क्या कहना है?

एक पुलिस अधिकारी का कहना था, "जब ऊपर से जांच के आदेश दे दिए गए हैं तो इस पर हम लोग कुछ भी नहीं कह सकते. हमें अपनी ओर से कुछ भी बोलने से मना कर दिया गया है."

एडीजी ने यह भी बताया था कि पीड़ित लड़की को यह सुरक्षा सरकारी ख़र्च पर मिली हुई है. जबकि पीड़ित की मां और परिवार के दूसरे लोगों का कहना था कि पुलिस वालों को तमाम सुविधाएं और कभी-कभी खाना-पीना भी उन्हीं लोगों को मुहैया कराना पड़ता था.

लेकिन स्थानीय पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, ये सब सही नहीं है.

गांव के रहने वाले एक बुज़ुर्ग अमरनाथ का घर वहीं है जहां से विधायक कुलदीप सिंह का घर और कॉलेज क़रीब तीन सौ मीटर दूर है.

अमरनाथ कहते हैं, "हमने तो अक़्सर ही लड़की और उसकी मां को अकेले ही जाते देखा है. गार्ड कई बार साथ रहते भी थे और कई बार नहीं भी रहते थे."

हालांकि सुरक्षा में चूक संबंधी मामले को लेकर पुलिस और प्रशासन के उच्च अधिकारियों में काफ़ी नाराज़गी देखी जा रही है.

उन्नाव पीड़िता का परिवार जब आपबीती बताते हुए रो पड़ा

क्या जानकारी लीक हुई?

बताया जा रहा है कि घटना के सामने आने के बाद ही लखनऊ के आईजी ज़ोन एसके भगत सोमवार देर रात उन्नाव में एसपी कार्यालय पहुंचे. वहां उन्होंने एसपी, एएसपी और अन्य अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत की और जानकारी ली.

इस बीच, पीड़ित लड़की के परिवार वालों ने ये आरोप भी लगाया है कि सुरक्षाकर्मियों में से ही कुछ लोग उनकी गतिविधियों और आने-जाने की सूचना विधायक कुलदीप सेंगर और उनके लोगों तक पहुंचाया करते थे.

परिवार वालों के मुताबिक, रविवार को हुई दुर्घटना की जानकारी भी विधायक और उनके लोगों को थी.

जानकारों के मुताबिक, अगर किसी को गनर और सुरक्षाकर्मी मिले हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि सुरक्षा पाया व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से उनका इस्तेमाल करे और जब चाहे, उसे छोड़ दे.

ऐसी स्थिति में क्या सुरक्षा पाए व्यक्ति के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई हो सकती, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना था, "क्यों नहीं?"

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