<p>बिहार के समृद्ध माने जाने वाले शहर मुज़फ़्फ़रपुर में बीते 15 दिनों में मस्तिष्क ज्वर के साथ-साथ एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से 93 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. </p><p>केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने रविवार को मुज़फ़्फ़रपुर मेडिकल कॉलेज का दौरा किया और बच्चों की मौत पर संवेदना ज़ाहिर की.</p><p>इसके साथ ही हर्षवर्धन ने आने वाले समय में ऐसी बीमारियों के प्रकोप से निपटने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम करने का आश्वासन भी दिया.</p><p>हालांकि इसके बाद भी कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं. </p><h1>सवाल 1: क्या इन बच्चों की जान बच सकती थी?</h1><p>केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बच्चों की जान बचाने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं और उन वजहों की ओर भी इशारा किया जिनसे बच्चों की जान जाती है.</p><p>हर्षवर्धन ने कहा, "साल 2014 में जब मैंने यहां का दौरा किया था तो मैंने कहा था कि सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में ग्लूकोमीटर होना चाहिए जो कि अब उपलब्ध है. इससे बीमार बच्चों के शरीर में ग्लूकोज़ की स्थिति का पता लगाया जा सकता है. अगर ग्लूकोज़ कम है तो उन्हें उसका डोज दिया जाना चाहिए. मैंने मंत्री जी से निवेदन किया है कि आने वाले समय में ‘इन तीन महीनों में’ पीएचसी में डॉक्टर मौजूद रहने चाहिए ताकि ऐसी स्थितियों से निपटा जा सके."</p><p>हर्षवर्धन ने इसके साथ ही कहा कि कभी-कभी ऐसा होता है कि पीएचसी में बच्चों को मदद न मिलने पर उनके अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही उनका ब्रेन डैमेज़ हो जाता है.</p><p>ऐसे में एक सवाल उठता है कि अगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर सभी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होतीं तो क्या बच्चों को बचाया जा सकता था?</p><h1>सवाल 2: क्या ये बुखार लीची खाने की वजह से हुआ?</h1><p>मुज़फ़्फ़रपुर में 93 बच्चों की मौत की वजह क्या है, इसे लेकर अब तक विशेषज्ञों के बीच एक राय नहीं बन पाई है.</p><p>कुछ चिकित्सा विशेषज्ञ मानते हैं कि खाली पेट लीची खाने से शरीर में ग्लूकोज़ की कमी हो जाती है जिससे बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. </p><p>साल 2014 में भी बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में 122 बच्चों की मौत हुई थी. </p><p>भारत और अमरीका के वैज्ञानिकों ने साथ मिलकर इन बच्चों की मौत के कारण जानने की कोशिश की थी. </p><p>इसके बाद संयुक्त शोध में सामने आया था कि खाली पेट ज़्यादा लीची खाने के कारण ये बीमारी हुई है.</p><p>वैज्ञानिकों के मुताबिक, लीची में हाइपोग्लिसीन ए और मिथाइल एन्साइक्लोप्रोपाइल्गिसीन नाम का ज़हरीला तत्व होता है.</p><p>अस्पताल में भर्ती हुए ज़्यादातर बच्चों के खून और पेशाब की जांच से पता चला कि उनमें इन तत्वों की मात्रा मौजूद थी.</p><p>ज़्यादातर बच्चों ने शाम का भोजन नहीं किया था और सुबह ज़्यादा मात्रा में लीची खाई थी. ऐसी स्थिति में इन तत्वों का असर ज़्यादा घातक होता है.</p><p>बच्चों में कुपोषण और पहले से बीमार होने की वजह भी ज़्यादा लीची खाने पर इस बीमारी का खतरा बढ़ा देती है.</p><p>डॉक्टरों ने इलाक़े के बच्चों को सीमित मात्रा में लीची खाने और उसके पहले संतुलित भोजन लेने की सलाह दी थी. भारत सरकार ने इस बारे में एक निर्देश भी जारी किया था.</p><p>बीबीसी संवाददाता प्रियंका दुबे ने लंबे समय से वायरस और इंफ़ेक्शन पर काम कर रहीं वरिष्ठ डॉक्टर माला कनेरिया से बात करके ये जानने का प्रयास किया कि इस साल बच्चों की मौत के कारणों को समझने की कोशिश की.</p><p>डॉ. कनेरिया के मुताबिक़, "बच्चों की मौत एईएस की वजह से हो रही है या सामान्य दिमाग़ी बुखार या फिर जापानी इनसेफ़िलाइटिस की वजह से, यह पुख़्ता तौर पर कह पाना बहुत मुश्किल है. क्योंकि इन मौतों के पीछे कई कारण हो सकते हैं."</p><p>"कच्चे लीची फल से निकलने वाले टॉक्सिन, बच्चों में कुपोषण, उनके शरीर में शुगर के साथ-साथ सोडियम का कम स्तर, शरीर में इलेक्ट्रोलाइट स्तर का बिगड़ जाना इत्यादि. जब बच्चे रात को भूखे पेट सो जाते हैं और सुबह उठकर लीची खा लेते हैं तो ग्लूकोज़ का स्तर कम होने की वजह से आसानी से इस बुखार का शिकार हो जाते हैं. लेकिन लीची इकलौती वजह नहीं है. मुज़फ़्फ़रपुर में इनसेफ़िलाइटिस से हो रही मौतें के पीछे एक नहीं, कई कारण हो सकते हैं."</p><p><strong>पढ़ें</strong><strong>:</strong></p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48653440?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मुज़फ़्फ़रपुरः ‘बच्चे बीमार आ रहे हैं, मरकर जा रहे हैं'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48651968?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अपने मरते बच्चों के सामने इतना बेबस क्यों है भारत</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-42653347?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मांओं का दर्द- हमार बाबू अब कुछ बोलत नाहि</a></li> </ul><figure> <img alt="मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत" src="https://c.files.bbci.co.uk/852A/production/_107409043_fc870d12-f2f6-4879-9aa8-1c26250b214f.jpg" height="496" width="624" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>सवाल 3: क्या अस्पताल में दवाओं की कमी थी?</h1><p>रविवार को पत्रकारों ने केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन से ज़ोरदार सवाल-जवाब किए.</p><p>इन सवालों में से एक सवाल अस्पताल में दवाओं और उपकरणों की कमी से जुड़ा हुआ था.</p><p>एक पत्रकार ने सवाल किया कि एक डॉक्टर से उन्हें अस्पताल में दवाओं, ज़रूरी सुविधाओं और प्रशिक्षित स्टाफ़ की कमी के बारे में पता चला है.</p><p>उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि आईसीयू के डॉक्टर ने किस आधार पर ये जानकारी आप तक पहुंचाई है लेकिन दवाओं की कमी नहीं है और इस बात की जांच की जानी चाहिए.</p><p>केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने सुविधाओं की कमी को लेकर आश्वासन दिया है कि आने वाले समय में एक नया पीडियाट्रिक आईसीयू वार्ड बनाया जाएगा.</p><figure> <img alt="मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत" src="https://c.files.bbci.co.uk/AC3A/production/_107409044_a301533f-2c5a-443f-a3c3-80ca2cb7d47f.jpg" height="465" width="624" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>सवाल 4: बच्चों की मौत कुछ ख़ास इलाक़ों में ही क्यों होती है?</h1><p>अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो ये पहला मौका नहीं है जब मुज़फ़्फ़रपुर में एक ही समय में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हुई हो. </p><p>इससे पहले 2014 और 1991 में भी मुज़फ़्फरपुर में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. </p><p>इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और पश्चिम बंगाल के माल्दा में भी ऐसे ही मामले सामने आए थे. </p><p>इस बीमारी में तेज बुखार और गले में दिक्कत जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं और ठीक इलाज न मिलने पर हफ़्ते भर के भीतर जान जा सकती है. पहले इस बीमारी का ज़िम्मेदार मच्छरों को ही माना जाता था, लेकिन बाद में हुए परीक्षणों से पता चला कि कई मामलों में जलजनित एंटेरो वायरस की मौजूदगी थी. वैज्ञानिकों ने इसे एईएस यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का नाम दिया.</p><p>लेकिन यह सवाल अब तक एक गुत्थी है कि ये बीमारियां कुछ ख़ास जगहों पर ही बच्चों को अपना शिकार क्यों बनाती हैं.</p><p><a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/3273436949336720/">https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/3273436949336720/</a></p><p><strong>सवाल </strong><strong>5</strong><strong>: क्या ये </strong><strong>जागरूकता </strong><strong>अभियानों की असफलता है?</strong></p><p>विशेषज्ञ मानते हैं कि जापानी बुख़ार या एईएस के ख़िलाफ़ पोलियो की तरह एक अभियान चलाकर खत्म करना होगा और इसके लिए न सिर्फ सरकार और डॉक्टरों को काम करना होगा, बल्कि लोगों को भी जागरूक करना जरूरी है. </p><p>सरकार भी ऐसी बीमारियों से लोगों को जागरूक करने के लिए कई अभियान चला रही है. लेकिन राजनीतिक तबक़ों में जागरुकता अभियानों के सफल नतीजे हासिल करने का जुनून नहीं दिखता. </p><p>जागरूकता के अभाव में मां-बाप भी बीमारी के जोखिम को ठीक-ठीक नहीं आंक पाते.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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मुज़फ़्फ़रपुर: बच्चों की मौत से जुड़े 5 अनसुलझे सवाल
<p>बिहार के समृद्ध माने जाने वाले शहर मुज़फ़्फ़रपुर में बीते 15 दिनों में मस्तिष्क ज्वर के साथ-साथ एक्यूट इनसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से 93 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. </p><p>केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने रविवार को मुज़फ़्फ़रपुर मेडिकल कॉलेज का दौरा किया और बच्चों की मौत पर संवेदना ज़ाहिर की.</p><p>इसके साथ ही हर्षवर्धन […]
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