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लोकसभा चुनाव 2019: लालू के पुराने साथी रघुवंश प्रसाद का वैशाली में दावा कितना मज़बूत

बिहार के चुनावी घमासान में छठे चरण की जिन आठ सीटों पर मतदान होना है, उसमें सबसे अहम है वैशाली. भारतीय इतिहास के सबसे पुराने गणतंत्र की पहचान वाले इस इलाक़े में इस बार सबसे बड़ा सवाल यही है कि दो राजपूतों की टक्कर में बाज़ी किसके नाम होगी. एक ओर हैं लालू प्रसाद यादव […]

बिहार के चुनावी घमासान में छठे चरण की जिन आठ सीटों पर मतदान होना है, उसमें सबसे अहम है वैशाली.

भारतीय इतिहास के सबसे पुराने गणतंत्र की पहचान वाले इस इलाक़े में इस बार सबसे बड़ा सवाल यही है कि दो राजपूतों की टक्कर में बाज़ी किसके नाम होगी. एक ओर हैं लालू प्रसाद यादव के सबसे पुराने साथी रघुवंश प्रसाद सिंह तो वहीं दूसरी ओर हैं राम विलास पासवान की पार्टी लोकतांत्रिक जनता पार्टी (लोजपा) की वीणा देवी. वीणा देवी जेडीयू के एमएलसी दिनेश चंद्र सिंह की पत्नी हैं.

यह बिहार की उन चुनिंदा सीटों में है जहां दो सवर्ण उम्मीदवारों के बीच सीधी टक्कर है और दोनों की क़िस्मत की चाभी एक तीसरे सवर्ण समुदाय भूमिहार के हाथों में है.

इस लिहाज़ से देखें तो वैशाली का चुनाव अपने आप में बेहद दिलचस्प होने वाला है. रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 से इस इलाक़े का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, हालांकि 2014 की मोदी लहर में लोजपा के राम किशोर सिंह के ख़िलाफ़ उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

2008 के परिसीमन के बाद वैशाली लोकसभा की पांच विधानसभाएं, मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में शामिल हो गईं.

रघुवंश प्रसाद का समर्थन

वैशाली के भगवानपुर से क़रीब आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मरवन स्कूल के पीछे ताज़े ताज़े कटे गेहूं के खेत में नौ बजे से पंडाल में लोगों का पहुंचना शुरू हो चुका था. दस बजे के आसपास ही आसमान का पारा गर्म था और स्टेज के सामने बने पंडाल में भीड़ जमा थी.

छोटी सभा में भी पंडाल खचाखच भर गया था. पंडाल के बाहर पेड़ पौधों की छांह में भी लोग मौजूद थे. सबको इंतज़ार था तेजस्वी यादव का.

दस बजे की सभा में देरी होने लगी थी, लेकिन लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. फिर रघुवंश प्रसाद आए तो उन्होंने सबसे पहले बीच खेत में बने हैलिपैड और हैलिपैड से मंच तक के रास्ते का जायज़ा लिया कि तेजस्वी के लिए सब ठीक है या नहीं.

इस बीच में वे दावा करते रहे कि इस बार लोगों से कोई ग़लती नहीं हो रही है, हर जाति के लोगों का समर्थन उन्हें मिल रहा है, कहीं कोई टक्कर में नहीं है.

उनके इस दावे को थोड़ा बल तब मिलता है जब सभा के मंच से वैश्य समाज के स्थानीय नेता ‘रघुवंश बाबू को जीतना है’ के नारे लगाते हुए ब्राह्मण समुदाय के स्थानीय नेता परशुराम झा को आमंत्रित करते हैं बोलने के लिए.

परशुराम झा आते ही कहते हैं, ब्राह्मण हमेशा उसके साथ रहा है जो उसका सम्मान करना जानता हो. रघुवंश बाबू ने हम सबका हमेशा सम्मान किया है, इनको जिताना है.

पास वाली सड़क से एक अधेड़ व्यक्ति अपनी मोटर साइकिल रोक कर उसी पर बैठा सभा को देख रहा है. मेरे पूछने पर उस सज्जन ने बताया, ‘हमलोग तो भूमिहार हैं, बीजेपी को वोट देते आए हैं, पिछली बार हमलोगों ने लोजपा के उम्मीदवार को जिताया था, इस बार बीजेपी को ये सीट अपने पास रखनी चाहिए थी. लोजपा की उम्मीदवार वीणा देवी की वजह से हमलोगों में विचार बन रहा है कि क्यों ना रघुवंश बाबू को ही इस बार वोट दिया जाए.’

भूमिहार समुदाय का वोट

रघुवंश प्रसाद सिंह की पार्टी आरजेडी इस इलाक़े में भूमिहारों के वोट की अहमियत को ख़ूब समझती है, लिहाज़ा चुनाव से ठीक पहले उसने कांग्रेसी ख़ेमे से बाहुबली विधायक अनंत सिंह का रोड शो का आयोजन कराया ताकि भूमिहारों का वोट रघुवंश बाबू को मिल सके.

गाड़ियों के क़ाफिले में रोड शो निकालने वाले अनंत सिंह ने कहा, ‘रघुवंश बाबू हमरे गार्जियन हैं, हम लोग उनके समर्थन में वोट मांगने आए हैं, अपने समाज के लोगों से अपील करेंगे कि उनको जिताएं. उनका उम्र हो चुका है, एक तरह से उनका आख़िरी ही चुनाव है.’

पूरे बिहार में भूमिहार समुदाय, लालू यादव और आरजेडी की सबसे मुखर विरोधी रहा है लेकिन इस बार इस समुदाय के कई लोगों को यह मानना है कि उनकी वफ़ादारी का इनाम भारतीय जनता पार्टी ने नहीं दिया है.

पिछले दिनों इस समुदाय के लोगों का एक वीडियो भी आया है जिसमें वे लोग नोटा दबाने की बात कह रहे हैं लेकिन अनंत सिंह दावा करते हैं कि इन लोगों का वोट रघुवंश बाबू को ही मिलेगा क्योंकि उनके जैसा कोई नेता ही नहीं है. बावजूद इन सबके भूमिहारों का रघुवंश प्रसाद सिंह का समर्थन चौंकाने वाला संकेत तो है.

राजपूतों का दांव

चुनावी सभा में शामिल इसी समुदाय से आने वाले एक शख्स ने बताया, ‘रघुवंश बाबू की असली चुनौती वैशाली में भूमिहार नहीं हैं बल्कि राजपूत हैं. अगर उन्हें अपने समुदाय का समर्थन मिल गया तो उनकी जीत पक्की है.’

1952 में अस्तित्व में आए वैशाली संसदीय सीट पर 1977 तक दिग्विजय सिंह चुनाव जीतते आए. लंगट सिंह के परिवार से संबंध रखने वाले दिग्विजय सिंह लगातार छह बार चुनाव जीते. 1977 के बाद से अब तक हुए 12 चुनावों में दस बार राजपूत उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है, जबकि दो बार भूमिहार समुदाय का उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब रहा है.

लोजपा की वीणा देवी भी इस पहलू को ख़ूब समझ रही हैं, लिहाज़ा आख़िरी दिनों में वे केंद्रीय गृह मंत्री और राजपूतों के बड़े नेता राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और फायरब्रैंड नेता योगी आदित्यनाथ की सभा कराने की कोशिशों में जुटी हैं.

वीणा देवी ये दावा भी करती हैं कि वे स्थानीय उम्मीदवार हैं. उन्होंने बताया, ‘मैं तो यहां की स्थानीय उम्मीदवार हूं, बेटी भी हूं और बहू भी हूं. हर आदमी का साथ मुझे मिल रहा है.’

‘दो-तीन सीटों पर सिमट जाएगा एनडीए’

बहरहाल, 2004 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के तौर पर मनरेगा जैसी योजना को लागू कराने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह का कांफिडेंस इस बार बढ़ा हुआ है, लिहाज़ा वे ये भी दावा करते हैं एनडीए की बिहार में अभी जो 32 सीट है, वो इस बार दो-तीन रह जाएगीं.

लेकिन ऐसा होने के लिए ज़रूरी है कि वो अपनी सीट पर जीत हासिल करें. पिछली बार लोजपा के राम किशोर सिंह को रघुवंश प्रसाद सिंह की तुलना में 10 फीसदी वोट ज्यादा मिले थे.

इस बड़े अंतर को देखते हुए ही वीणा देवी का पलड़ा मज़बूत आंकने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है. वैशाली के ही अजीतपुर बाज़ार के आसपास के घरों में अपना डोर टू डोर कैंपन चला रहीं वीणा देवी कहती हैं, ‘मोदी जी के कामों के चलते नेता से ज्यादा लोगबाग ही मुझे वोट देने को उत्सुक दिख रहे हैं.’

https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/320049512020755/

तेजस्वी की सभा

दो घंटे की देरी से तेजस्वी यादव का हेलिकॉप्टर जब मंडराने लगा और अचानक से पंडाल की भीड़ बढ़ गई. ज्यादा से ज्यादा लोग तेजस्वी के क़रीब पहुंचने की कोशिश करते हैं और ना पहुंचने पर मोबाइल से फोटो बनाने की कोशिशें.

तेजस्वी यादव ने मंच पर आते ही, सबसे पहले लोगों को देरी की वजह बताई. उन्होंने कहा कि उन्हें पटना से ही उड़ान भरने की अनुमति नहीं मिल रही थी. उन्होंने फिर से दोहराया कि उनके पिता को किस तरह से फंसाकर जेल में रखा जा रहा है. उन्होंने लोगों से ये भी कहा कि ये ग़रीबों के एकजुट होने की लड़ाई है.

तेजस्वी बहुत नहीं बोले और अंत में लोगों से रघुवंश बाबू को जिताने की अपील करते हुए कहा कि पहले से लेट हो चुका हूं और आगे कई सभाएं करनी हैं.

इस सभा में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग आरजेडी के समर्थक नज़र आए. एक युवा ने कहा, ‘मोदी जी अब विकास की बात नहीं कर रहे हैं, विनाश की बात कर रहे हैं.’

लालू का असर

रैली में आई एक महिला ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी जी ने हमरा सब के आग लगा के मुआ देलकिन. कौनो काम नहीं हो रहल. वोट देबए ताकि लालू जी को जेल से निकाले जेतिन ताकि हमरा सब के ज़िंदा रखतिन.’

वैशाली की छह में से तीन विधानसभा सीटों पर आरजेडी के विधायक हैं और तीनों के तीनों यादव हैं.

रघुवंश प्रसाद सिंह को भरोसा है कि 12 मई को चुनाव के दिन महागठबंधन के पक्ष में ये सब लोग मतदान करेंगे. वे कहते हैं, ‘मोदी सरकार ने लोगों को क्या दिया है, केवल झूठ बोलने और थेथरई करने से लोग बार बार नहीं ठगाएंगे.’

रघुवंश बाबू ये भी दावा करते हैं कि देश भर में नरेंद्र मोदी और बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्ष का गठबंधन बन जाएगा, उसमें कोई मुश्किल नहीं होगी.

वहीं दूसरी ओर वीणा देवी को भी भरोसा है कि बीजेपी के सवर्ण समर्थकों के साथ-साथ राम विलास पासवान की पार्टी के अपने वोट बैंक के चलते वह आसानी से चुनाव जीत जाएंगी.

वैशाली का ख़ास कनेक्शन

वैसे परंपरागत तौर पर दो ऐसी बातें भी वैशाली से जुड़ी हैं जो रघुवंश प्रसाद सिंह को परेशानी में डालने वाली हैं. एक तो वैशाली महिलाओं के लिए पसंदीदा चुनाव मैदान रहा है. यहां से चार बार महिलाएं लोकसभा में पहुंचने में कामयाब रही हैं.

इन चार में तीन बार तो महिलाओं के बीच ही आमने-सामने की टक्कर थी. 1980 और 1984 का चुनाव किशोरी सिन्हा ने जीता था, जबकि 1989 में जनता दल की उषा सिन्हा और 1994 में बीजेपी के टिकट पर लवली आनंद ने चुनाव जीता था.

इसके अलावा एक और बात है, यहां एक बार चुनाव हारने वाले दिग्गज नेताओं का सियासी करियर संकट में आ जाता है. उनके लिए सक्रिय राजनीति में फिर से जगह बना पाना मुश्किल होता आया है. तारकेश्वरी सिन्हा, ऊषा सिन्हा, किशोरी सिन्हा, नवल किशोर सिंह और वृषण पटेल जैसे नेता हार के बाद वापसी नहीं कर पाए.

ऐसे में 2014 का चुनाव हार चुके रघुवंश बाबू के सामने इस इतिहास को बदलने का दारोमदार भी होगा.

रघवुंश प्रसाद सिंह के पक्ष में एक अच्छी बात ये है कि पांच बार सांसद रहने और वैशाली के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाने के बावजूद उनकी छवि बेदाग़ बनी हुई है और लोग उन्हें सम्मान से देखते हैं.

वहीं दूसरी ओर बीजेपी की विधायक रहीं वीणा देवी जेडीयू के एमएलसी दिनेश चंद्र सिंह की पत्नी हैं. उनका नामांकन रद्द कराने के लिए रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले दिनों ज़िलाधिकारी दफ्तर के सामने धरने पर भी बैठ गए थे. वीणा देवी पर आपराधिक जानकारी छुपाने का आरोप था.

वीणा देवी इस मुद्दे पर कहती हैं, ‘ऐसा रघुवंश प्रसाद हार के डर से कर रहे थे और मैं तो 1991 से सक्रिय राजनीति में हूं, इतने लंबे समय तक तो किसी ने ऐसे आरोप मुझ पर नहीं लगाए थे.’

किसका पलड़ा कितना मज़बूत

वैसे वीणा सिंह के पति दिनेश चंद्र सिंह पर भी कई आरोप लगते रहे हैं. दिनेश चंद्र सिंह एक दौर में रघुवंश बाबू के चुनाव प्रबंधन का काम भी देखा करते थे. लिहाज़ा उन्हें ये तो पता होगा कि सेंधमारी कैसे की जा सकती हैं.

तो साफ़ है कि वैशाली के चुनाव में वो सब समीकरण गड्मड् हो जाते हैं, जो बिहार की बाक़ी सीटों का रुझान बताने के लिए कहे-सुने जा रहे हैं. इसे आप चाहें तो विश्व के पहले लोकतंत्र की ख़ूबसूरती मान लें चाहें तो बिहार की पॉलिटिक्स का वो कॉकटेल, जिससे राजनीतिक पंडितों का दिमाग़ चकरा सकता है.

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