भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा ज़िले में आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ़ के कम से कम 40 जवानों के मारे जाने के तीन दिन बाद रविवार को प्रशासन ने पांच अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली है.
जिन अलगाववादियों से सुरक्षा वापस ली गई है, उनमें मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़, अब्दुल गनी बट, बिलाल लोन, हाशिम क़ुरैशी और शबीर शाह शामिल हैं, हालाँकि इस सरकारी आदेश में सैयद अली शाह गिलानी का जिक्र नहीं है.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से कहा है कि किसी भी अलगाववादी नेता को सरकार सुरक्षा मुहैया नहीं कराएगी. आदेश में कहा गया है कि रविवार की शाम तक इन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा हटा ली जाएगी.
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को एक उच्चस्तरीय बैठक की थी और उस बैठक के बाद ही फ़ैसला लिया गया है.
इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, गृह सचिव राजीव गउबा और इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक राजीव जैन शामिल थे.
इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा हालात और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ठोस क़दम उठाने को लेकर चर्चा हुई.
राजनाथ ने दिए थे संकेत
शुक्रवार को श्रीनगर में प्रेस कॉन्फ़्रेंस में राजनाथ सिंह ने कहा था कि जो पाकिस्तान और आईएसआई से फंड लेते हैं उन्हें मिली सरकारी सुरक्षा की समीक्षा की जाएगी. राजनाथ सिंह ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे तत्व हैं जिनका संबंध आतंकी संगठनों से है.
जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह सचिव ने अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा की समीक्षा की. ज़्यादातर अलगाववादी नेताओं को सुरक्षा राज्य पुलिस की मिली हुई है.
हुर्रियत नेताओं में मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़, अब्दुल गनी बट और मौलाना अब्बास अंसारी को राज्य पुलिस की सुरक्षा मिली हुई है.
इस हमले के लिए अलगाववादी नेताओं ने कश्मीर समस्या के समाधान में हो रही देरी को भी ज़िम्मेदार ठहराया था.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश सचिव रहे कंवल सिब्बल ने भी बीबीसी से बातचीत में अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस लेने की मांग की थी.
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