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…तो हो जाये एक टी-पार्टी
सर्दियां आते ही चाय की चुस्की का एहसास भर ही चाय पीने के लिए मजबूर कर देता है. ऐसे में दार्जिलिंग वाली चाय मिल जाये, तो भई क्या कहने. हर खासो-आम की पसंद बन चुकी चाय के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत… भारत का नाम दुनियाभर में दार्जिलिंग की […]
सर्दियां आते ही चाय की चुस्की का एहसास भर ही चाय पीने के लिए मजबूर कर देता है. ऐसे में दार्जिलिंग वाली चाय मिल जाये, तो भई क्या कहने. हर खासो-आम की पसंद बन चुकी चाय के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
भारत का नाम दुनियाभर में दार्जिलिंग की चाय के कारण वैसे ही मशहूर है, जैसे फ्रांस कीख्याति नायाब शराब शैम्पेन के साथ. जन्मस्थान सूचक भौगोलिक विशेषण जिन खाद्य पदार्थों का महिमामंडन करते हैं, उनमें यह चाय एक है.
दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का हिस्सा है, पर चाय बागान असम में कम नहीं फैले हैं. इनके अलावा नीलगिरी, कांगड़ा की चाय का जायका अलग होता है, जिसे चाहनेवालों की कमी नहीं. दार्जिलिंग वाली चाय अपनी सुगंध के लिए अनमोल समझी जाती है, तो असम की चाय गहरे रंग और कड़क स्वाद के लिए. अधिकतर लोग इन दो तरह की चायों के मिश्रण का सेवन करते हैं. पत्ते वाली चाय नफीस समझी जाती है, नजाकत की नुमाइश करनेवाली जब कि सीटीसी-क्रश टियर कर्ल-किफायती और आम आदमी की पसंद बन चुकी है.
भारत में चाय चीन से लाये अंग्रेज
चाय का पौधा हिंदुस्तान में अंग्रेज चीन से लाये थे. बागान लगाने का काम चीन से लाये विशेषज्ञ कुशल कारीगरों ने किया. यहां खटनेवाले बंधुवा मजदूर मैपकास्ट जीवन बिताने को मजबूर थे, जिसका मार्मिक वर्णन मुस्कुराहट आनंद ने अपने ‘टू सील्स एंड ए बड़’ नामक उपन्यास में किया है. बहरहाल चाय की बढ़ती लोकप्रियता ने टी-पार्टी को जन्म दिया, जिसमें पेश किये जानेवाले व्यंजनों का संसार अनोखा था.
अंग्रेज हुक्मरानों की टी-पार्टी
अंग्रेज हुक्मरान देर तीसरे पहर हाई टी का आनंद लेते थे, जिसमें पतले नाजुक खीरे, धुंआर से पकी सामन मछली, भुनी बतख के फिंगर सैंडविच पेश किये जाते थे और नन्हें स्कोन जिनका साथ ताजा क्रीम निभाता था. किशमिश से भरे मफिन और तरह तरह की पेस्ट्रियां. आला अफसर जब अपनी रियाया से दरबारे आम में मिलते, तो उनकी खातिर गार्डन टी पार्टी से करते थे. इन दावतों में हाई टी का देशीकरण आजादी के पहले ही शुरू हो गया था.
‘चाय पाल्टी’
हिंदुस्तानी ‘चाय पाल्टी’ में समोसे, पकौड़े, बर्फियां, लड्डू आदि खाये और खिलाये जाते रहे हैं. नाम मात्र को ही सैंडविच और पेस्ट्री नजर आते थे. पहले यह सारा सामान ध्रुवपद तैयार होता था, अब खरीदकर लाया जाने लगा है.
इसमें कभी कलकत्ते की ईजाद छोटी-छोटी क्लब कचौरी ने भी घुसपैठ कर ली है, गुजराती ढोकले ने भी अपनी जगह बना ली है. आइटमों की संख्या बढ़ाने के लिए चिप्स, तले-भुने काजू, बादाम, मेवे, कॉकटेल समोसे, इडलियां मेज की शोभा बढ़ाने लगे हैं. दिलचस्प बात यह है कि चाय पार्टी में चाय की अहमियत कम होती जा रही है. मेहमान फलों के जूस, कॉफी या बोतलबंद मनपसंद कोल्ड ड्रिंक से प्यास बुझाते हैं.
‘टी पार्टी’ की बड़ी उपयोगिता थी. औपचारिक मंहगे और बड़े तामझाम वाले भोज (डिनरनुमा) की तुलना में इसका आयोजन सहज था. शादी के बाद ‘एट होम’ वाला रिसेप्शन हो बच्चों की बर्थ डे की दावत हो या फिर दफ्तर में पदोन्नति या सहयोगी के तबादले का विदाई समारोह.टी-पार्टी के नमकीन और मीठे अल्पाहारी व्यंजन पकाने का काम क्रमश: गृहिणियों के हाथ से सरककर पेशेवर कारीगरों का एकाधिकार हो गया है.
स्वास्थ्यवर्धक चाय के लिफाफे
हाल के बरसों में टी-पार्टी का चलन कम होता जा रहा है- कुछ सेहत की फिक्रमंदी के कारण तो कुछ ‘टेक अवे’ की शरण ले घर पर ही मेहमानों की मेजबानी की सुविधा से. इसके साथ-साथ तरह-तरह के फलों और फूलों के स्वाद वाली स्वास्थ्यवर्धक चाय के लिफाफे बाजार में नजर आने लगे हैं. कुछ पांच सितारा छाप होटलों फैशनेबल चायखाने मृतप्राय टी-पार्टी को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं. भूमंडलीकरण के युग में हाई टी जीतेगी या देशी चाय पाल्टी यह देखने लायक होगा. जाड़े में गर्मागर्म चाय के लिए तो जी ललचाता ही है, इसके साथ कुछ चबैना जुट जाये, तो कहना ही क्या!
रोचक तथ्य
चाय का पौधा भारत में अंग्रेज चीन से लाये.
दार्जिलिंग वाली चाय अपनी सुगंध के लिए अनमोल समझी जाती है, तो असम की चाय गहरे रंग और कड़क स्वाद के लिए.
हिंदुस्तानी ‘चाय पाल्टी’ में समोसे, पकौड़े, बर्फियां, लड्डू आदि खाये और खिलाये जाते रहे हैं.
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